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ग्वालियर में 50 फ़र्ज़ी NGO संचालित, 61 संस्थाओं के पते-ठिकाने गलत

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Aug 2, 2019

विनोद शर्मा : मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में बुजुर्गों और दिव्यांगों की सेवा करने व नशामुक्ति केंद्रों का बड़ा फर्जीवाड़ा समाने आया है। सामाजिक न्याय विभाग से 87 संस्थाओं ने मान्यता ली थी। लेकिन फर्जीवाड़ा किए जाने की शिकायतें मिलने के बाद जब विभाग ने जांच कराई तो सिर्फ 26 संस्थाएं ही काम करती मिलीं। शेष 61 के पते-ठिकाने ही गलत निकले। हैरत की बात ये है कि इन संस्थाओं को एक दशक में 8 करोड़ रुपए का सरकारी अनुदान मिल चुका है। वहीं अगर सूबे की बात करें तो 100 से ज्यादा NGO फ़र्ज़ी है, जिनमें अकेले ग्वालियर में 50 फ़र्ज़ी NGO संचालित है। 

अनुदान और जमीन के लालच में ग्वालियर जिले के 61 संस्थाओं ने सामाजिक न्याय विभाग से मान्यता ली थी। लेकिन इनके रिकॉर्ड की जांच में पता चला कि इन्होंने सामाजिक क्षेत्र में कोई काम नहीं किया। ये कागजी संस्थाएं थीं, इसलिए इन्हें न अनुदान मिला, न ही जमीन। अब इन संस्थाओं की मान्यता खत्म की जा रही है। वहीं खुद को सक्रिय दिखाने वाली 26 संस्थाओं में से कुछ ने अपने आश्रमों को बंद करने के लिए आवेदन किया है। 

ये हैं वे संस्थाएं, जिनके नहीं मिल रहे पते-ठिकाने....। 

• गौतम बुद्ध समिति मुरार, 

• जनहित शिक्षा एवं कल्याण समिति लश्कर, 

• महात्मा गांधी नशाबंदी समिति लाला का बाजार, 

• बाल महिला विकास समिति पड़ाव, 

• प्रतिशोध शिक्षा समिति सरस्वती नगर, 

• देव शिक्षा समिति मामा का बाजार, 

• स्वदेश शिक्षा समिति सिंधी कॉलोनी, 

• नशा निवारण परिषद बिरला नगर, 

• पूजा महिला एवं बाल विकास समिति बालाजीपुरम, 

• जय गुरुदेव समिति फोर्ट व्यू कॉलोनी सहित कुल 61 संस्थाएं हैं। 

• जिन्हें सामाजिक न्याय विभाग उनके बताए हुए पते-ठिकाने पर तलाशता रहा, लेकिन इन संस्थाओं के आश्रम कहीं नहीं मिले।  

ग्वालियर के कांचमिल में आश्रम शांति निकेतन और लक्ष्मीगंज स्थित माधव बाल निकेतन ने बीते अप्रैल-मई में आश्रम बंद करने का आवेदन महिला बाल विकास विभाग को दिया। आश्रम शांति निकेतन में 28 बालिका और माधव बाल निकेतन में 27 बालिकाएं रह रही हैं। लेकिन आश्रम शांति निकेतन ने पर्याप्त फंड न मिलने और माधव बाल निकेतन के प्रबंधन ने आश्रम चलाने में दिलचस्पी नहीं होने के कारण देकर आश्रम बंद करने के पत्र भेजे हैं। जिस आश्रम शांति निकेतन ने पर्याप्त फंड न मिलने का हवाला दिया, उसे साल 2015 से 2017 तक 50 से 75 लाख रुपए तक का अनुदान मिला था। लेकिन अनियमितताएं बरतने की वजह से इस संस्था को दिया जाने वाला अनुदान पिछले दो साल से बंद कर दिया। ऐसे में जिला कलेक्टर न कहा है कि वह ऐसी संस्थाओं को चिंहित कर रहे है, जिन्होनें ग्रांड का सही उपयोग नही किया है।

वैसे जिन संस्थाओं की खामियों के चलते अनुदान मिलना बंद हो गया तो संस्था ने तालाबंदी के लिए आवेदन दे दिया है। माधव बाल निकेतन का प्रबंधन भी मनमाफिक अनुदान न मिलने की वजह से आश्रम चलाने से इनकार कर रहा है। माधव अंधाश्रम का संचालन तो जिला प्रशासन स्वयं कर रहा है। लेकिन आश्रम की सुध लेने की फुर्सत अधिकारियों को नहीं है। इसी कारण आश्रम की 10 बीघा जमीन में से 4 बीघा पर अवैध कब्जा हो गया। आश्रम को 6 लाख रुपए सालाना अनुदान मिलने के बावजूद यहां के 48 बालकों को पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं है। जल्द यहां की व्यवस्थाएं सुधारी नहीं गईं तो यहां भी तालाबंदी की नौबत आ जाएगी। ऐसे में खुद सोशल वर्कर भी उन पर एनजीओ पर सवालियां निशान लगा रहे है।

ग्वालियर की ये वो संस्थाएं है, जो कागजों को काम कर रही थी.... लेकिन जब इनको ग्रांड मिलना बद हुई है, तो इन्होनें काम करना बंद कर दिया है। लेकिन प्रशासन अब इनके पुराने इतिहास को खंखाल रहा है, कि इन्होनें वास्तव में काम किया है, ये नही।

इन संस्थाओं को अनुदान मिलना बंद हुआ तो आश्रम भी बंद हो गए..

• गुरु तेगबहादुर समिति, नौगजा रोड Rs.8 से 10 लाख सालाना 7 साल तक मिला। 

• असीम ज्योति शिक्षा समिति, फूलबाग Rs.8 से 10 लाख सालाना 5 साल तक तक मिला।  

• आदर्श समाज सेवा समिति, मुरार Rs.5 से 6 लाख सालाना 7 साल तक तक मिला।  

• प्राकृतिक चिकित्सालय समिति, पड़ाव Rs.5 से 6 लाख सालाना 8 साल तक तक मिला। 

• सिर्फ इन 4 संस्थाओं ने पिछले 7 से 10 सालों में 2 करोड़ 10 लाख रुपए अनुदान ले लिया। 

• इन जैसी 26 संस्थाओं को पिछले 10 साल में करोड़ों रुपए का अनुदान मिला है। 

• अगर किसी ऑडिट संस्था से पिछले 10 साल के दौरान संस्थाओं को दिए गए अनुदान की जांच करा ली जाए तो यह आंकड़ा 8 से 10 करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है।