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चम्बल के बीहड़ के सबसे खौफनाक डकैत मोहर सिंह का निधन, 92 वर्ष की उम्र में ली अंतिम सांस

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May 5, 2020

दिनेश शर्मा : मेहगांव-चम्बल के बीहड़ से आज एक और डकैत का अंत हो गया। पूर्व दस्यु सम्राट मोहर सिंह ने आज सुबह 9 बजे अपने निज निवास पर 92 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली। मोहर सिंह बीमारी से ग्रसित चल रहे थे। वे भिंड जिले के मेहगांव तहसील में अपने परिवार के साथ रहते थे। 
बता दें कि, चंबल में पचास के दशक में जैसे बागियों की एक पूरी बाढ़ आई थी। चम्बल में खूंखार डकैतों में एक नाम ऐसा उभरा जिसने बाकी सब नामों की चमक को फीका कर दिया। ये नाम था मोहर सिंह का। चंबल के बीहड़ों ने हजारों डाकुओं को पनाह दी होगी। सैंकड़ों गांवों की दुश्मनियां चंबल में पनपी होंगी और उन दुश्मनियों से जन्में होंगे हजारों डाकू। लेकिन एक दुश्मनी की कहानी ऐसी बनी कि दुश्मनी गुम हो गई, दुश्मन फना हो गए लेकिन दुश्मनी से जनमा डाकू चंबल का बादशाह बन बैठा। ऐसा बादशाह जिसके पास चंबल में अबतक की सबसे बड़ी डाकुओं की फौज खड़ी हो गई।

चंबल घाटी का सबसे बड़ा नाम था मोहर सिंह
मानसिंह के बाद चंबल घाटी का सबसे बड़ा नाम था मोहर सिंह का। मोहर सिंह जिसके पास डेढ़ सौं से ज्यादा डाकू थे। मोहर सिंह चंबल घाटी में उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान की पुलिस फाईलों में E-1 यानि दुश्मन नंबर एक के तौर पर दर्ज था। साठ के दशक में चंबल में मोहर सिंह की बंदूक ही फैसला थी और मोहर सिंह की आवाज ही चंबल का कानून। 
चंबल में पुलिस रिकॉर्ड़ चैक करे तो 1960 में अपराध की शुरूआत करने वाले मोहर सिंह ने इतना आतंक मचा दिया था कि पुलिस चंबल में घुसने तक से खौंफ खाने लगी थी। एनकाउंटर में मोहर सिंह के डाकू आसानी से पुलिस को चकमा देकर निकल जाते थे। मोहर सिंह का नेटवर्क इतना बड़ा था कि पुलिस के चंबल में पांव रखते ही उसको खबर हो जाती थी और मोहर सिंह अपनी रणनीति बदल देता था। 

मोहर सिंह के अपराधों का लंबा सफर
1958 में पहला अपराध कर पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज होने वाला मोहर सिंह ने जब अपने कंधें से बंदूक उतारी तब तक वो ऑफिसियल रिकॉर्ड में दो लाख रूपए का ईनामी था और उसका गैंग 12 लाख रूपए का इनामी गैंग था। 1970 में इस रकम को आज के हिसाब से देंखें तो ये रकम करोड़ों का हिसाब पार कर सकती है। पुलिस फाईल में 315 मामले मोहर सिंह के सिर थे और 85 कत्ल का जिम्मेदार मोहर सिंह था। मोहर सिंह के अपराधों का एक लंबा सफर था लेकिन अचानक ही इस खूंखार डाकुओं ने बंदूकों को रखने का फैसला कर लिया। 

मोहर की जिंदगी में भी अपनी छोटी सी जमीन को बचाने की जंग थी और नाकामयाब मोहर सिंह की जिंदगी बीहड़ में भटक गई। झाड़ियां ही झाड़ियां और बीच में एक सफेद रंग से पुता हुआ एक मंदिर। ये सत्तर साल पहले एक भरा-पूरा गांव था। लेकिन अब सिर्फ बीहड़ ही बीहड़ है। गांव अब इससे लगभग एक किलोमीटर दूर जाकर बस गया है और पुराना गांव बिसुली नदी के कछार में समा गया है। लेकिन इसी गांव से शुरू हुई एक डाकू मोहर सिंह की कहानी।

मोहर सिंह की कहानी
मोहर सिंह इसी गांव का रहने वाला एक छोटा सा किसान था। गांव में छोटी सी जमीन थी। जिंदगी मजे से चल रही थी। लेकिन चंबल के इलाके का इतिहास बताता है कि किसानों की जमीनों में फसल के साथ साथ दुश्मनियां भी उगती है। जमीन के कब्जें को मोहर के कुनबे में एक झगड़ा शुरू हुआ। और इसी झगड़े में मोहर सिंह की जमीन का कुछ हिस्सा दूसरे परिवार ने दबा लिया। गांव में झगड़ा हुआ। पुलिस के पास मामला गया और पुलिस ने उस समय की चंबल में चल रही रवायत के मुताबिक पैसे वाले का साथ दिया। केस चलता रहा। इस मामले में मोहर सिंह गवाह था। गांव में मुकदमें में गवाही देना दुश्मनी पालना होता है। जटपुरा में एक दिन मोहर सिंह को उसके मुखालिफों ने पकड़ कर गवाही न देने का दवाब डाला। कसरत और पहलवानी करने के शौंकीन मोहर सिंह ने ये बात ठुकरा दी तो फिर उसके दुश्मनों ने उसकी बुरी तरह पिटाई कर दी। घायल मोहर सिंह ने पुलिस की गुहार लगाई लेकिन थाने में उसकी आवाज सुनने की बजाय उस पर ही केस थोप दिया गया। बुरी तरह से अपमानित मोहर सिंह को कोई और रास्ता नहीं सूझा और उसने चंबल की राह पकड़ ली। 1958 में गांव में अपने इसी मंदिर पर मोहर सिंह ने अपने दुश्मनों को धूल में मिला देने की कसम खाई और चंबल में कूद पड़ा।  मोहर सिंह ने पहला शिकार अपने गांव के दुश्मन को किया। उसके बाद बंदूक के साथ मोहर सिंह जंगलों में घूम रहा था। शुरू में उसने बाकि बागियों के गैंग में शामिल होने की कोशिश की। दो साल तक जंगलों में भटकते हुए मोहर सिंह की किसी गैंग में पटरी नहीं बैठी तो मोहर सिंह ने फैसला कर लिया कि वो खुद का गैंग बनाएंगा और गैंग भी ऐसा जिससे चंबल थर्रा उठे। 

कत्लों की कहानी का सिलसिला
गांव में ताकतवर लोगों से बदला लेने में ना कानून साथ देता है, ना भगवान और न ही अदालत की चौखट। चंबल में हर कमजोर के लिए ताकत हासिल करने का एक ही शॉर्टकट है और वो है चंबल की डांग में बैठकर राईफलों के सहारे अपने दुश्मनों पर निशाना साधना। मोहर सिंह की बदूंकें आग उगल रही थी और निशाना बन रहे थे दुश्मन। मोहर सिंह को इन्ही के बीच अपना रास्ता बनाना था। मोहर सिंह ने अपने साथियों के साथ पहले छोटी छोटी वारदात करना शुरू किया और पुलिस के रिकॉर्ड में उसकी एंट्री शुरू हुई। मेहगांव थाने में 140/60 पहला अपराध था जो मोहर सिंह गैंग के खिलाफ पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज हुआ। 1960 में ही गौहद थाने में दूसरा अपराध दर्ज हुआ हत्या के प्रयास का। 1961 में गौहद में पहला कत्ल का केस दर्ज हुआ और इसके बाद की कहानी कत्लों का एक सिलसिला है।

मोहर सिंह ने बनाये थे खुद के नियम कानून
मोहर सिंह ने पहले तो भिंड और आसपास के इलाके में अपराध किए लेकिन जैसे जैसे गैंग बढ़ने लगा मोहर सिंह ने भी अपना दायरा बढ़ाना शुरू कर दिया। मोहर सिंह अपने गैंग के अनुशासन को लेकर बेहद सतर्क था। मोहर सिंह का गैंग बढ़ रहा था उधर दूसरी और पुलिस एक एक कर चंबल के दूसरे गैंग का सफाया कर रही थी। मोहर सिंह ने इसका तोड़ निकाल लिया था। मोहर सिंह ने चंबल में ऐलान कर दिया था कि जो कोई भी उनके गैंग की मुखबिरी करेंगा उसके पूरे परिवार को साफ कर दिया जाएगा और इस पर उसने कड़ाई से अमल शुरू कर दिया। मुखबिरों को निपटाने में मोहर सिंह बेहद खूंखार हो जाता था। मुखबिरों को और उनके परिवार पर मोहर सिंह शिकारी की तरह से टूट पड़ता था। मोहर सिंह के गैंग के ऊपर ज्यादातर मुखबिरों के कत्ल के मामले बन रहे थे। लेकिन चंबल में मोहर सिंह का खौफ पुलिस और उसके मुखबिरों पर लगातार बढ़ता जा रहा था और इसका फायदा मिल रहा था मोहर सिंह को। मोहर सिंह का नाम मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और राजस्थान में फैल गया था। जहां दूसरे गिरोहों को किसी भी गांव में रूकते वक्त मुखबिरी का डर रहता था वही मोहर सिंह का गैंग बेखटके अपनी बिरादरी के गांवों में ठहरता और पुलिस को खबर होने से पहले ही निकल जाता था। मोहर सिंह ने अपने गैंग को सबसे बड़ा गैंग बनाने के साथ-साथ कुछ कठोर नियम भी बना दिये थे। मोहर सिंह गैंग में किसी भी महिला डाकू को शामिल करने के खिलाफ था और इसके साथ ही उसके गैंग को सख्त हिदायत थी कि वो किसी भी लडकी और औरत की और आंख उठाकर न देखे नहीं तो मोहर सिंह उसको खुद सजा देगा। ये बात पुलिस अधिकारियों को आज भी याद है और इस बात को आज भी चवालीस साल बाद भी मोहर सिंह याद रखता है कि उसके गैंग के ऊपर किसी भी गांव में बहू-बेटी को छेड़ने या परेशान करने का कोई मामला कभी कहीं दर्ज नहीं हुआ। 

चेबल के डाकू सरदारों का सबसे बड़ा नाम मोहर सिंह
अब मोहर सिंह चंबल के डाकू सरदारों में एक प्रमुख नाम बन गया। पुलिस के साथ उसके एनकाउंटर रोजमर्रा की बात हो गये थे। लेकिन मोहर सिंह इससे बेपरवाह था क्योंकि पैसे आने के साथ ही मोहर सिंह ने पुलिस से भी बेहतर हथियार उस वक्त हासिल कर लिए थे और मोहर सिंह ने अपने गैंग को बचाने और वारदात करने के नए तरीके खोजने शुरू कर दिये। मोहर सिंह का गैंग इतना बड़ा हो चुका था कि चंबल ने इससे पहले इतना बडा़ गैंग कभी देखा नहीं था। डेढ़ सौ आदमी और वो भी हथियारबंद। एक से एक आधुनिक हथियार और मोहर सिंह का पुलिस से सीधी टक्कर लेने का दुस्साहस मोहर सिंह को चंबल का बेताज बादशाह बना चुका था। मोहर सिंह जेल में सजा काटने के बाद मेहगांव लौट आया। आज भी मोहर सिंह लोगों के बीच में खौंफ जगाने वाला नाम था और देश में सबसे बड़ा ईनाम उसके सर पर था। मोहर सिंह मेहगांव नगर पंचायत के अध्यक्ष भी रहे।