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गौतमपुराः हिंगोट युद्ध का महा संग्राम, जिसमें फैंके जाते हैं एक दूसरे पर आग के गोले

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Oct 29, 2019

अंकित जैन - हिंगोट युद्ध, यह नाम है उस युद्ध का जिसे आस्था और परम्परा के नाम पर सैकड़ों सालों से खेला जा रहा है। एक दूसरे पर आग फेंकने का यह खेल परंपरागत रूप से खेला जाता है। इंदौर से 55 किलोमीटर दूर गौतमपुरा नगर में इस युद्ध बनाम खेल में सैकड़ों लोग भाग लेते हैं और एक दूसरे पर आग बरसाते हिंगोट यानी की आग के गोले फेंकते हैं। अपने बचाव के लिए उनके हाथ में होता है एक ढाल। इस युद्ध का मंजर काफी रोमांचकारी होता है जिसमें हर साल कई लोग जख्मी भी होते हैं, पर इस वर्ष प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इन्तेजाम किये। जिससे मात्र 22 लोगों के घायल होने की सूचना है, जिन्हें मामूली चोटें आई हैं। इस  खेल को देखने हजारों लोग दूर-दूर से गौतमपुरा नगर पहुंचे। प्रशासन की तरफ से यहाँ पर एम्बुलेंस और डाक्टरों की व्यवस्था पूर्ण रूप की गई थी। इस युद्ध में इस बार 20-22 लोग ही घायल हुये। आस्था और परम्परा के नाम पर होने वाले एक दूसरे पर आग फेंकने के इस खेल को प्रशासन ने रोकने के कई प्रयास किये, पर इस परंपरा के आगे प्रशासन को हर बार झुकना पड़ा।

हजारों की तादाद में इस युद्ध का रोमांच देखने देश भर से यहां आते हैं लोग

इंदौर जिले के गौतमपुरा नगर में हिंगोट मैदान पर रुणजी और गौतमपुरा नगर के 100 से अधिक योद्धा आमने सामने जमा हुए। इस हिंगोट युद्ध में रुणजी गाँव के योद्धाओं को तुर्रा और गौतमपुरा गाँव के योद्धाओं को कलगी नाम से जाना जाता है। दरअसल एक दूसरे पर हिंगोट फेंकने की इस परम्परा को मनाये जाने की वजह की सदियों से कोई पता नहीं लगा पाया। वहीं इस युद्ध बनाम खेल का न कोई आयोजक है और ना ही कोई प्रयोजक। फिर भी हजारों की तादाद में इस युद्ध का रोमांच देखने देश भर से लोग यहाँ आते हैं। एक दूसरे पर आग फेंकने की इस परम्परा को मनाये जाने की वजह किसी को नहीं पता है क्योंकि यह परंपरा कब से खेली जा रही है और निभाई जा रही है, यह भी किसी को नहीं पता।

प्रशासन ने किये पूरी मुस्तेदी और सुरक्षा के तमाम उपाय

योद्धा का बस यही कहना है कि हमारे दादा परदादा खेलते थे तो बस हम हमारे पूर्वजों की इस परम्परा को निभा रहे हैं। इसे हिंगोट युद्ध के नाम से जाना जाता है। इंदौर के गौतमपूरा में इस बार भी हिंगोट युद्ध खेला गया। प्रशासन ने पूरी मुस्तेदी और सुरक्षा के तमाम उपाय किये थे। उसी के चलते इस बार सिर्फ 25 लोग इस खेल में घायल हुये। जबकि प्रतिवर्ष यह आंकड़ा 80-100 के पार जाता था। मैदान पर दोनों ही टीमे कलंगी और तुर्रा के सदस्य हाथों में ढाल और हिंगोट नाम का अग्नि अस्त्र लिए मैदान पर डट गए और उसके बाद इशारा होते ही एक दूसरे पर आग के गोले फेंकते रहे। हालांकि गौतमपुरा के बसिंदे इसे सहास और वीरता से जुडी हुई परंपरा मानते हैं, जिसके आगे प्रशासन को नतमस्तक होना पड़ा है।