Loading...
अभी-अभी:

बीते 5 सालों में 285 अधिकारियों के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस ने नहीं किया चालान पेश

image

Jun 13, 2018

मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार में फंसे अधिकारियों को राहत पहुंचाने का काम कोई और नहीं बल्कि उन का मूल विभाग ही कर रहा है ताजा मामला लोकायुक्त से जुड़ा हुआ है। जिसमें यह निकलकर सामने आया है। बीते 5 सालों में 285 अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस कोर्ट में चालान ही पेश नहीं कर पाई है। जबकि चालान 90 दिनों में पेश कर देना चाहिए जिसकी वजह भ्रष्टाचारी अधिकारी मौज काट रहे है। ऐसे में कांग्रेस लोकायुक्त से लेकर सरकार पर निशाना साध रही है।

लोकायुक्त पुलिस भ्रष्टाचार से जुड़े आधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई तो कर रही है लेकिन उसकी कार्रवाई भ्रष्ट्राचारी अधिकारियों को सलाखों के पीछे नही पहुंचा पा रही है। हालत ये है कि ग्वालियर नगर निगम के पूर्व निगम आय़ुक्त विवेक सिंंह के मामले में बीते 5 सालों से 8 मामलों में चालान पेश नही किया जा सका है। जबकि एक ही मामले में उनके खिलाफ चालान पेश हुआ है। ऐसे में लोकायुक्त के वकील के पास तर्क है, कि सरकार ने अब नियमों बदलाव कर दिया है। जिस विभाग का कर्मचारी होता है, उसकी अनुमति लेने होती है, जो कई मामलों में नही आ पा रही है।

मध्य प्रदेश में 250 से ज्यादा मामले पेंडिग
अरविंद श्रीवास्तव, लोकायुक्त के वकील का कहना है कि मध्य प्रदेश में 250 से ज्यादा मामले पेंडिग है ग्वालियर में भी मामले है। लेकिन विभागों के द्वारा स्वीकृति नही मिल पायी है, इसीलिए कुछ मामलों में चालान पेश नही हो रहे जिसका फायदा भ्रष्ट आधिकारियों को मिल रहा है।

मध्य प्रदेश के लोकायुक्त को सौपेगें ज्ञापन 
भ्रष्ट्र अधिकारी और कर्मचारियों का ये कोई एक पहला मामला नही है बल्कि पूरे प्रदेश में बीते 5 सालों में 285 भ्रष्ट्र आधिकारी और कर्माचरियों के खिलाफ भी चालान पेश नही हो सकेंगे। ऐसे में खुद लोकायुक्त पुलिस के वकील मान रहे है। इसकी वजह से भ्रष्ट अधिकारियों को फायदा पहुंच रहा है। वहीं इस मामले में कांग्रेस भी कूद गयी है। कांग्रेस का कहना है कि ये एक सोची समझी साजिश के तहत भ्रष्ट अधिकारियों को लाभ पहुंचाया जा रहा है। जिसको लेकर वह अब मध्य प्रदेश के लोकायुक्त को ज्ञापन सौपेगें।

चालान 90 दिन में हो पेश 
आंनद शर्मा,प्रवक्ता का कहना है कि चालान 90 दिन में पेश होना चाहिए लेकिन लोकायुक्त पुलिस की कार्रवाई संदेह के घेरे में है। आज तक सुनने में नही आ रहा है कि किसी को सजा हुई है। निगम के कई आधिकारी भ्रष्टाचार के मामलों में फंसे हुए हैं लेकिन किसी को सजा नही हुई है।

भ्रष्ट आधिकारी कब पहुंचेंगे सलाखों के पीछे
लोकायुक्त पुलिस द्वारा जिन लोगों के खिलाफ जांच पूरी कर उनके विभाग में अभियोजन स्वीकृति के लिए भेजे गए हैं। उनमें चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से लेकर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी भी शामिल हैं। लेकिन इन सभी को 2014 में दिए गए आदेश का फायदा मिल रहा है। जिसमें अभियोजन की स्वीकृति के लिए संबंधित विभाग की अनुमति अनिवार्य कर दिया गयी है। ऐसे में भ्रष्ट आधिकारी कब सलाखों के पीछे पहुंचेगें ये कह पाना मुश्किल है।