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बैतूलः जहां रावण को मानते हैं आराध्य, होती है मेघनाथ की पूजा

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Mar 30, 2019

शंकर राय- बैतूल के भैंसदेही शहर में सालों से चली आ रही एक आस्था की परम्परा है, जहां अपने आराध्य देव रावण के पुत्र मेघनाथ की पूजा करते हैं। इसके लिए अलग-अलग गांव में मेले का आयोजन होता रहता है, इन मेघनाथ मेलों में पचास से नब्बे फीट लम्बे चिकने खम्बो पर आदिवासी युवक चढ़ कर जैरी तोड़ने के प्रयास करते हैं।

पूजा सामग्री उतारने की प्रतियोगिता में युवक

दरअसल, प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिला बैतूल में इन दिनों अपने आराध्य देव रावन के पुत्र मेघनाथ की पूजा करते हैं। इसके लिए अलग-अलग गांव में मेले का आयोजन होता है। इसमें वहां पर लगे लम्बे खम्बों जिसे जैरी कहते है, उस पर चढ़ कर तना पर रखा पूजा का सामान लेकर आते हैं। लेकिन इन पचास से नब्बे फीट लम्बे खम्बों पर आसानी से कोई चढ़ न सके इसके लिए आयोजन समिति खम्बे पर ग्रीस और आयल लगा देते हैं जिससे जैरी तोड़ने वाले युवकों को खम्बे पर चढ़ने मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

देवता को खुश करने के लिए आदिवासी युवक इस साहस का परिचय

आपको बता दें, कि भैंसदेही शहर में 100 सालों से भी ज्यादा समय से मेघनाथ मेले का आयोजन हो रहा है। इस मेले में अपने देवता को खुश करने के लिए आदिवासी युवक इस साहस का परिचय देते हैं। उन्हें भी मालूम होता है कि अगर पैर फिसल गया तो जान पर बन सकती है क्योंकि जब इस फिसलन वाले खम्बे पर युवक को चढ़ता देख लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। लेकिन ईनाम की राशि को लेकर उन्हें दुःख भी होता है कि जान की बाजी पर मात्र 200 रूपये का इनाम दिया जाता है। दर्शक मानते हैं कि समय के हिसाब से राशि ज्यादा होनी चाहिए।

आयोजन में सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं 

मेघनाथ मेले की व्यवस्था ये नगर परिषद करती है लेकिन इस जोखिम भरे आयोजन को लेकर सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं होते। पुलिस कर्मी भी इस पूरे खतरनाक खेल का तमाशा देखते हैं। एक ओर मेघनाथ पूजा को सुनकर लोग हैरान रह जाते हैं कि जिस देश में राम को पूजा जाता है, वहीं राक्षस कुल के मेघनाथ की भी पूजा हो रही है। भैंसदेही के आदिवासी व अन्य सम्प्रदाय के लोग आज भी भोले नाथ के प्रकोप से बचने के लिए उनके विशेष भक्त मेघनाथ की पूजा अर्चना करना नहीं भूलते हैं।