Loading...
अभी-अभी:

NCTE ने बीएड व एमएड कॉलेजों को भेजा नोटिस

image

Oct 4, 2017

ग्वालियर : चंबल अंचल के बीएड व एमएड कॉलेजों ने राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) को ऑनलाइन मैंडेटरी एफिडेविट सिस्टम के तहत जानकारी नहीं दी हैं। ऐसे कॉलेजों की मान्यता खत्म करने के लिए एनसीटीई अधिनियम 1933 की धारा 17 के तहत कारण बताओ नोटिस जारी किया गया हैं। अंचल के ऐसे कॉलेजों की संख्या 40 से अधिक हैं, जिन्हें नोटिस जारी हुए हैं। एनसीटीई ने कॉलेजों से नोटिस का जवाब 23 अक्टूबर तक मांगा हैं।  

राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद यानि एनसीटीई ने बीएड कॉलेजों को नोटिस जारी कर मैंडेटरी एफिडेविट सिस्टम के तहत जानकारी मांगी थी। जानकारी ऑनलाइन भरनी थी। जिसमें तीन साल के दौरान एडमिशन लेने वाले छात्रों की संख्या, जॉब पाने वाले छात्रों की संख्या, शिक्षक व अन्य स्टाफ के साथ लैब व लाइब्रेरी की जानकारी शामिल थी, लेकिन अंचल के 180 बीएड कॉलेजों में से अधिकांश ने यह जानकारी नहीं दी।

जीवाजी विवि के पीआरओ प्रो शांतिदेव सिसौदिया ने बताया कि  एनसीटीई ने ऑनलाइन मैंडेटरी एफिडेविट सिस्टम के तहत जानकारी नहीं दी हैं। ऐसे कॉलेजों की मान्यता खत्म करने के लिए एनसीटीई अधिनियम 1933 की धारा 17 के तहत कारण बताओ नोटिस जारी किया गया हैं। अंचल के 40 से ज्यादा कॉलेज इसमें शामिल हैं, जो जानकारी नहीं दे रहे हैं, ऐसे में उनकी मान्यता खत्म कर दी जाएगी।

वहीं चंबल अंचल के बीएड और एमएड कॉलेज संचालकों का कहना हैं कि एनसीटीई ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विरुद्ध जाकर बीएड कॉलेजों को नोटिस जारी कर कार्रवाई कर रही हैं। सभी एनसीटीई के नोटिस को न्यायालय में चुनौती देंगे, क्योंकि एनसीटीई ने पहले क्यूसीआई से ग्रेडेशन के नाम पर ऐसी ही जानकारी मांगी थी, लेकिन कॉलेजों ने कोर्ट में याचिका दायर कर दी। इससे कोर्ट ने स्टे दे दिया। अब नाम बदलकर मैंडेटरी एफिडेविट के नाम पर जानकारी मांगी गई हैं। इसलिए कॉलेजों ने जानकारी नहीं दी। जिस पर कॉलेज संचालक कोर्ट में चुनौती देने के लिए याचिका दायर कर चुके हैं।  

ग्वालियर अंचल के बीएड और एमएड कॉलेज नैक की तरह अब एनसीटीई क्यूसीआई निजी एजेंसी से कॉलेजों का निरीक्षण कर ग्रेडिंग कराना चाहती हैं। इसमें ऐसे कॉलेज भी एनसीटीई ने शामिल कर लिए थे।  जिन्हें पहले नैक से ग्रेडिंग मिल चुकी हैं। इसके चलते कॉलेज संचालक नाराज हो गए। कॉलेजों का कहना हैं कि ग्रेडिंग कराने के नाम पर 1.50 लाख रुपए से अधिक फीस ली जा रही हैं। साथ ही निजी एजेंसी कॉलेजों का निरीक्षण कर ग्रेडिंग तय करेगी। इसके लिए वह तैयार नहीं हैं, क्योंकि इससे पारदर्शिता प्रभावित होगी।