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अमरकंटक से प्रकट हुई थी माँ नर्मदा, जानें कैसे हुई थी नर्मदा की उत्पत्ति

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Feb 12, 2019

धर्म शास्त्रों के अनुसार, माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को नर्मदा जयंती का पर्व मनाया जाता है इस बार नर्मदा जयंती 12 फरवरी, मंगलवार को है नर्मदा भारत की प्रमुख नदियों में से एक है इसका वर्णन रामायण, महाभारत आदि अनेक धर्म ग्रंथों में भी मिलता है।

ऐसे हुई नर्मदा की उत्पत्ति

एक बार भगवान शंकर लोक कल्याण के लिए तपस्या करने मैकाले पर्वत पहुंचे उनके पसीने की बूंदों से इस पर्वत पर एक कुंड का निर्माण हुआ इसी कुंड में एक बालिका उत्पन्न हुई जो शांकरी व नर्मदा कहलाई शिव के आदेशानुसार वह एक नदी के रूप में देश के एक बड़े भूभाग में रव (आवाज) करती हुई प्रवाहित होने लगी रव करने के कारण इसका एक नाम रेवा भी प्रसिद्ध हुआ। मैकाले पर्वत पर उत्पन्न होने के कारण वह मैकाले सुता भी कहलाई।

ये कथा ये भी है

चंद्रवंश के राजा हिरण्यतेजा को पितरों को तर्पण करते हुए यह अहसास हुआ कि उनके पितृ अतृप्त हैं उन्होंने भगवान शिव की तपस्या की तथा उनसे वरदान स्वरूप नर्मदा को पृथ्वी पर अवतरित करवाया भगवान शिव ने माघ शुक्ल सप्तमी पर नर्मदा को लोक कल्याणार्थ पृथ्वी पर जल स्वरूप होकर प्रवाहित रहने का आदेश दिया नर्मदा द्वारा वर मांगने पर भगवान शिव ने नर्मदा के हर पत्थर को शिवलिंग सदृश्य पूजने का आशीर्वाद दिया तथा यह वर भी दिया कि तुम्हारे दर्शन से ही मनुष्य पुण्य को प्राप्त करेगा इसी दिन को हम नर्मदा जयंती के रूप में मनाते हैं।

यहां से शुरू होता है नर्मदा का सफर

अमरकंटक से प्रकट होकर लगभग 1200 किलोमीटर का सफर तय कर नर्मदा गुजरात के खंभात में अरब सागर में मिलती है विध्यांचल पर्वत श्रेणी से प्रकट होकर देश के ह्रदय क्षेत्र मध्य प्रदेश में यह प्रवाहित होती है नर्मदा के जल से मध्य प्रदेश सबसे ज्यादा लाभान्वित है यह पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है तथा डेल्टाओं को निर्माण नही करती इसकी कई सहायक नदियां भी हैं।

धर्म ग्रंथों में भी मिलता है इस नदी का वर्णन

स्कंद पुराण के अनुसार, नर्मदा प्रलय काल में भी स्थायी रहती है एवं मत्स्य पुराण के अनुसार नर्मदा के दर्शन मात्र से पवित्रता आती है इसकी गणना देश की पांच बड़ी एवं सात पवित्र नदियों में होती है गंगा, यमुना, सरस्वती एवं नर्मदा को ऋग्वेद, सामवेद, यर्जुवेद एवं अथर्ववेद के सदृश्य समझा जाता है। महर्षि मार्कण्डेय के अनुसार इसके दोनों तटों पर 60 लाख, 60 हजार तीर्थ हैं एवं इसका हर कण भगवान शंकर का रूप है इसमें स्नान, आचमन करने से पुण्य तो मिलता ही है केवल इसके दर्शन से भी पुण्य लाभ होता है।

परिक्रमा भी की जाती है नर्मदा की

यह विश्व की एक मात्र ऐसी नदी है, जिसकी परिक्रमा की जाती है क्योंकि इसके हर घाट पर पवित्रता का वास है तथा इसके घाटों पर महर्षि मार्कण्डेय, अगस्त्य, महर्षि कपिल एवं कई ऋषि-मुनियों ने तपस्या की है शंकराचार्यों ने भी इसकी महिमा का गुणगान किया है मान्यता के अनुसार इसके घाट पर ही आदि गुरु शंकराचार्य ने मंडन मिश्र को शास्त्रार्थ में पराजित किया था।

 इसके तट पर स्थित है ज्योतिर्लिंग

12 ज्योर्तिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर इसके तट पर ही स्थित है इसके अलावा भृगुक्षेत्र, शंखोद्वार, धूतताप, कोटीश्वर, ब्रह्मतीर्थ, भास्करतीर्थ, गौतमेश्वर चंद्र द्वारा तपस्या करने के कारण सोमेश्वर तीर्थ आदि 55 तीर्थ भी नर्मदा के विभिन्न घाटों पर स्थित हैं वर्तमान समय में तो कई तीर्थ गुप्त रूप में स्थित हैं।