Nov 10, 2019
संतोष राजपूत : आज जब पूरा देश अयोध्या मामले के फैसले का अपडेट जानने में मशगूल था तब शुजालपुर में मदद की एक बेमिसाल कहानी घटी, जिसमे एक हिन्दू रोगी के लिए मुस्लिम,सिक्ख व ईसाई सम्प्रदाय के चार युवकों ने खून देकर उसकी जान बचाई और मानवता को ही मंदिर-मस्जिद की असली सीख बताया। देखिये ये ख़ास रिपोर्ट
सोशल मीडिया पर रक्तदान के लिए मैसेज वायरल
एमपी के शाजापुर जिले के शुजालपुर में डेंगू होने के बाद ग्राम चितोड़ा निवासी 90 वर्षीय जगन्नाथ कुशवाह को परिजन निजी अस्पताल में लेकर पहुंचे। जांच में डेंगू की पुष्टि होने के साथ ही परिजनों को चिकित्सक ने बताया कि रोगी के प्लटलेट्स तेजी से कम हो रहे है और उन्हे तत्काल ए पॉजीटिव रक्त लगाने के साथ ही उपचार शुरू करना होगा। 6 पुत्र व 4 पुत्रियों के साथ करीब सौं सदस्यीय परिवार के सबसे उम्रदराज मुखिया जगन्नाथ को खून देने के लिए तत्काल परिवार का कोई सदस्य नहीं पहुंच सका तो रक्तदान के लिए समाजसेवी अभिषेक सक्सेना ने सोशल मीडिया पर मैसेज वायरल किया। जिसे देख सबसे पहले अस्पताल में अकोदिया नाका निवासी रईस खां व सिटी निवासी खलील खां पहुंचे और रक्तदान के लिए परिजनों से मिले। इनकी रक्तदान पूर्व जांच चल ही रही थी कि गुरूनानक जयंती के लिए बाजार में खरीदी कर रहे जसमीत रजपाल मैसेज देखकर सीधे अस्पताल पहुंचे व अकोदिया नाका निवासी सोनू मसीह ने भी पहुंचकर रक्तदान किया। जिससे प्रभावित होकर परिजनों ने माला पहनाकर मददगारों का धन्यवाद दिया है।
सोनू मसीह अब तक 7 बार कर चुके हैं रक्तदान
सिख युवक जसमीत गुरूनानक जयंती के लिए खरीददारी करने बाजार में थे तभी रक्तदान की जानकारी लगी। गुरू का वचन अव्वल अल्लाह नूर पाया, कुदरत के सब बंदे। एक नूर से सब जग उबिया, कौन भले सब कौन मंदे और खून देने आ गए। सोनू मसीह पहले एम्बुलेंस चलाते थे और मरिजों को कई बार खून के लिए परेशान होते देखा है, इसलिए रक्तदान कर मदद करते है। अब तक सात बार रक्तदान कर चुके है।
रक्तदान के पीछे की कहानी
खून देने पहुंचे चारों मददगारों की रक्तदान के पीछे भी एक कहानी है, खलील खान की बेटी जोया खान की दो वर्ष की उम्र में सरकारी मदद से हार्ट सर्जरी हुई और तब से ही उन्होंने भी मरीजों के लिए रक्तदान का संकल्प लेकर कई बार खून दिया है। वे मानवता को ही मंदिर-मस्जिद की दुआ बताते है। अयोध्या फैसले के दिन रईस ने पहली बार खून दिया और इन्होने कहा अयोध्या फैसले के दिन पहली बार किया रक्तदान जीवन भर याद रहेगा और आपसी सहयोग ही असली प्रार्थना-दुआ है।