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उज्जैन में राजसी ठाट बाट के साथ निकली भगवान काल भैरव की सवारी

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Sep 10, 2019

अनिल बैरागी : आज भाद्रपद की ढोल ग्यारस होने के कारण उज्जैन में भगवान काल भैरव की सवारी निकाली गई। यहाँ भैरव बाबा राजसी ठाट बाट के साथ निकले। पुलिस जवान द्वारा सवारी को गॉड ऑफ़ आनर दिया गया। जिलाधीश ने काल भैरव का पूजन अर्चन किया और फिर शुरू हुई बाबा की सवारी। परंपरा अनुसार सवारी केन्द्रीय जेल भी गई जहाँ कैदीयों ने बाबा के दर्शन किए। 

कालभैरव मंदिर विश्व प्रसिद्ध 
उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर स्थित कालभैरव मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। काल भैरव मन्दिर में भगवान की चमत्कारिक प्रतिमा है। भैरव भगवान की प्रतिमा  को प्रतिदिन मदिरा का भोग लगाया जाता है और आश्चर्य की बात तो यह है की यह भैरव भगवान की प्रतिमा साक्षात् मदिरा का सेवन भी करती है। धर्म शास्त्रों के अनुसार भैरव भगवान शंकर के कोतवाल है। भगवान महाकाल को उज्जैन का राजा माना जाता है तो यहाँ भगवान भैरव को क्षेत्रपाल के रूप में पूजा जाता है। क्षेत्रपाल अर्थात सेनापति। 

वर्ष में दो बार निकलती है भैरव बाबा की सवारी
मान्यता है कि जिस प्रकार भगवान महाकाल अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए सवारी के रूप में नगर भ्रमण पर निकलते है। उसी प्रकार भैरव भगवान भी क्षेत्रपाल की भूमिका निभाते हुए प्रजा की रक्षा के लिए वर्ष में दो बार नगर भ्रमण पर निकलते है। यहाँ भैरव बाबा की वर्ष में दो सवारी निकलती है एक भाद्रपद की ढोल ग्यारस पर और दूसरी अगहन माह की भैरव अष्टमी के दूसरे दिन।
 
भैरव बाबा का होता है विशेष श्रंगार

ढोल ग्यारस के दिन यहाँ विशेष पूजन किया जाता है। यहाँ पूजन के पहले भैरव बाबा का विशेष श्रंगार किया जाता हे। यहाँ बाबा को सिंधिया राजघराने की पगड़ी पहनाई जाती है जो की विशेष तोर पर ग्वालियर से मंगवाई जाती है। यह पगड़ी मराठी शैली में होती है। शाम 4 बजे बाबा की राजसी ठाट बाट से शासकीय पूजा होती है जो की जिलाधीश द्वारा की जाती है। पूजा के बाद सवारी निकाली जाती है। यहाँ निकलने वाली सवारी देखते ही बनती है। सवारी के आगे पुलिस के घुड़सवार रहते है और उसके बाद हाथों में बन्दूक लिए पुलिस की बटालियन चलती है। सवारी राजकीय ठाट बाट के साथ गाजे बाजे से निकलते है। सवारी केन्द्रीय जेल भी पहुँचती है जहाँ सभी कैदी कालभैरव के दर्शन करते है। 

श्रद्धालुओं का उमड़ता है सैलाब
ऐसी मान्यता है कि कैदी कालभैरव बाबा से अपने गुनाहों को माफ़ करने और जल्द कारागार से मुक्ति की प्रार्थना करते है। यह सवारी दो किलो मीटर तक भ्रमण करने के बाद शिप्रा नदी के किनारे स्थित सिद्धवट मंदिर जिसे बैकुंठ धाम कहते है पर जाती है। जहाँ पूजन अर्चन के बाद पुनः मंदिर लौट आती है। सवारी को देखने दूर दूर से श्रद्धालु आते है साथ ही सवारी में शामिल भक्तगण झूमते गाते नजर आते है।