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खुल गये केदारनाथ धाम के कपाट, पीएम मोदी ने किये दर्शन

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May 3, 2017

लखनऊ। विश्व प्रसिद्ध केदारानाथ धाम के कपाट आज खुल गए हैं। मंदिर में लाखों की संख्या में श्रद्धालू भगवान शिव के दर्शन कर रहे हैं। इन सब के बीच भारत के पीएम नरेंद्र मोदी ने भी भगवान शिव के दर्शन किए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंदिर के गर्भगृह में बाबा केदारनाथ का रुद्राभिषेक किया। वह करीब 30 मिनट तक मंदिर के गर्भगृह में रहे। पूजा के बाद पीएम मोदी श्रद्धालुओं के बीच गए। उन्‍होंने हाथ हिलाकर लोगों का अभिवादन स्‍वीकार किया। प्रोटोकाल तोड़कर पीएम मोदी श्रद्धालुओं की कतार में जाकर अभिवादन किया। वहीं, केदारनाथ मंदिर के रावल भीमाशंकर लिंग ने पीएम मोदी को केदारनाथ मंदिर की प्रतिकृति भेंट की। इसके बाद उन्‍होंने मंदिर की परिक्रमा की।

इससे पहले जौलीग्रांट में प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत, राज्यपाल केके पॉल सहित कई केंद्रीय मंत्री, विधायक व सांसद ने उनका स्वागत किया। कुछ देर बाद उन्‍होंने केरादनाथ के लिए हेलीकॉप्टर से उड़ान भरी। करीब नौ बजे वह केदारनाथ पहुंचे। वहीं, ढाई हजार से ज्यादा श्रद्धालु केदारनाथ पहुंच गए हैं। इस ऐतिहासिक अवसर के लिए मंदिर को दस कुंतल गेंदे के फूलों से सजाया गया है। इस बीच शाम को उत्सव डोली भी केदारनाथ पहुंच गई है। वैदिक मंत्रोच्चारण और पौराणिक रीति-रिवाजों के साथ मंदिर के कपाट सुबह 8.50 पर श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए।

बता दें कि हर वर्ष की तरह इस बार भी केदारनाथ धाम के कपाट तीन मई को और बद्रीनाथ मंदिर के कपाट छह मई को श्रद्धालुओं के लिये खुलेंगे। वहीं इससे पहले 28 मई को अक्षय तृतीया पर उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शन के लिये खोल दिये गये जिसके साथ ही सालाना चारधाम यात्रा का भी शुभारंभ हो गया।

केदारनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। यहां की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मन्दिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्‍य ही दर्शन के लिए खुलता है। पत्‍थरों से बने कत्यूरी शैली से बने इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डव वंश के जनमेजय ने कराया था। यहां स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है। आदि शंकराचार्य ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया।

केदारनाथ धाम के साथ-साथ चार स्थान और हैं, जो पंच केदार कहलाते हैं।
1 केदारनाथ धाम
समुद्र की सतह से करीब साढ़े 12 हजार फीट की ऊंचाई पर केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। बारह ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ धाम का सर्वोच्य स्थान है। साथ ही यह पंच केदार में से एक है। केदारनाथ धाम में भगवान शिव के पृष्ट भाग के दर्शन होते हैं। त्रिकोणात्मक स्वरूप में यहां पर भगवान का विग्रह है। केदार का अर्थ दलदल है। पत्थरों से बने कत्यूरी शैली के मंदिर के बारे में मान्यता है कि इसका निर्माण पांडवों ने कराया था। जबकि आदि शंकराचार्य ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। मंदिर की विशेषता यह है कि 2013 की भीषण आपदा में भी मंदिर को आंच तक नहीं पहुंची थी। मंदिर के कपाट अप्रैल से नवंबर माह के मध्य ही दर्शन के लिए खुलते हैं।
2 मद्महेश्वर मंदिर
मद्महेश्वर मंदिर बारह हजार फीट की ऊंचाई पर चौखंभा शिखर की तलहटी में स्थित है। मद्महेश्वर द्वितीय केदार है, यहां भगवान शंकर के मध्य भाग के दर्शन होते है। दक्षिण भारत के शेव पुजारी केदारनाथ की तरह यहां भी पूजा करते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार नैसर्गिक सुंदरता के कारण ही शिव-पार्वती ने मधुचंद्र रात्रि यहीं मनाई थी। मान्यता है कि यहां का जल पवित्र है। इसकी कुछ बूंदें ही मोक्ष के लिए पर्याप्त हैं। शीतकाल में छह माह यहां पर भी कपाट बंद होते हैं। कपाट खुलने पर यहां पूजा अर्चना होती है।
3 तुंगनाथ मंदिर
तुंगनाथ भारत का सबसे ऊंचाई पर स्थित मंदिर है। तृतीय केदार के रूप में प्रसिद्ध तुंगनाथ मंदिर समुद्र तल से 3680 मीटर की ऊंचाई पर है। यहां भगवान शिव की भूजा के रूप में आराधना होती है। चंद्रशिला चोटी के नीचे काले पत्थरों से निर्मित यह मंदिर बहुत रमणीक स्थल पर निर्मित है। कथाओं के अनुसार, भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पांडवों ने मंदिर का निर्माण कराया। इस मंदिर को 1000 वर्ष से भी अधिक पुराना माना जाता है। मक्कूमठ के मैठाणी ब्राह्मण यहां के पुजारी होते हैं। शीतकाल में यहां भी छह माह कपाट बंद होते हैं। शीतकाल के दौरान मक्कूमठ में भगवान तुंगनाथ की पूजा होती है।
4 रुद्रनाथ मंदिर
चतुर्थ केदार के रूप में भगवान रुद्रनाथ विख्यात हैं। यह मंदिर समुद्र तल से 2286 मीटर की ऊंचाई पर एक गुफा में स्थित है। बुग्यालों के बीच गुफा में भगवान शिव के मुखर विंद अर्थात चेहरे के दर्शन में होते हैं। भारत में यह अकेला स्थान है, जहां भगवान शिव के चेहरे की पूजा होती है। एकानन के रूप में रुद्रनाथ में, चतुरानन के रूप में पशुपति नेपाल में पंचानन विग्रह के रूप में इंडोनेशिया में भगवानशिव के दर्शन होते हैं। रुद्रनाथ के लिए एक रास्ता उर्गम घाटी के दमुक गांव से गुजरता है, लेकिन बेहद दुर्गम होने के कारण श्रद्धालुओं को यहां पहुंचने में दो दिन लग जाते हैं। इसलिए ज्यादातर श्रद्धालु गोपेश्वर के निकट सगर गांव से यहां के लिए यात्रा शुरू करते हैं। शीतकाल में रुद्रनाथ मंदिर के भी कपाट बंद रहते हैं। इस दौरान गोपेश्वर में भगवान रुद्रनाथ की पूजा-अर्चना की जाती है।
5 कल्पेश्वर मंदिर
पंचम केदार के रूप में कल्पेश्वर मंदिर विख्यात हैं। इसे कल्पनाथ नाम से भी जाना जाता है। यहां भगवान की जटा के दर्शन होते हैं, बारहों महीने यहां भगवान शिव के दर्शन होते है। कहते हैं कि इस स्थल पर दुर्वासा ऋषि ने कल्प वृक्ष के नीचे घोर तपस्या की थी। तभी से यह स्थान ‘कल्पेश्वर या ‘कल्पनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अन्य कथा के अनुसार देवताओं ने असुरों के अत्याचारों से त्रस्त होकर कल्पस्थल में नारायणस्तुति की और भगवान शिव के दर्शन कर अभय का वरदान प्राप्त किया था। 2134 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मंदिर तक पहुंचने के लिए 10 किमी पैदल चलना होता है। यहां श्रद्धालु भगवान शिव की जटा जैसी प्रतीत होने वाली चट्टान तक पहुचते हैं। गर्भगृह का रास्ता एक गुफा से होकर जाता है। कल्पेश्वर मंदिर के कपाट सालभर खुले रहते हैं।