Apr 22, 2024
लोकसभा चुनाव 2024: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव के लिए 'अब की बार 400 पार' का नारा दिया है. बीजेपी को लेकर यह भी कयास लगाया जा रहा है कि वह इस बार 370 के पार जाएगी. ऐसे में यह लक्ष्य बेहद महत्वाकांक्षी लगता है, लेकिन पहले चरण के मतदान के बाद की स्थिति पर नजर डालें तो बीजेपी को नुकसान भी हो सकता है.
पहले चरण में सिर्फ 63 फीसदी वोटिंग हुई
लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 102 सीटों पर सिर्फ 63 फीसदी मतदान हुआ. जिसमें इस बार यूपी में सात फीसदी, बिहार और मध्य प्रदेश में छह फीसदी और पश्चिम बंगाल में चार फीसदी कम वोटिंग देखने को मिली है. अब इस कम मतदान से किसे फायदा और किसे नुकसान ये तो अलग बात है, लेकिन ये पूरा मामला बीजेपी के लिए चिंता का विषय बन गया है.
क्या अत्यधिक मतदान से कोई नुकसान होगा?
हालात को देखते हुए पहले चरण में ही एनडीए बड़ी बढ़त में दिख रही है और कोई विरोध भी नहीं है. लेकिन जब उम्मीद से कम मतदान होता है तो सवाल उठता है कि क्या ये कम मतदान कोई नुकसान पहुंचाएगा? अत्यधिक मतदान का अर्थ है जब मतदान आवश्यकता से बहुत अधिक या कम हो।
उत्तर प्रदेश की सीटों पर वोटिंग में 10 फीसदी तक की गिरावट
इस पहले चरण के चुनाव में उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर मतदान में 10 फीसदी तक की गिरावट देखी गई है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस वोट को अत्यधिक मतदान में शामिल किया जाना चाहिए या नहीं. अगर ऐसा होता है तो ये भी बीजेपी के लिए अच्छी खबर नहीं है.
2014 में स्वतंत्र भारत के बाद से सबसे अधिक मतदान
आजकल जब मोदी लहर चल रही है तो लोग वोटिंग को लेकर भी उत्साहित हैं. जो सर्वेक्षणों की संख्या से स्पष्ट भी है। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान यूपीए सरकार के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूटा था. इस तरह 66.40 फीसदी वोटिंग हुई, जो आजाद भारत के बाद सबसे ज्यादा थी. उससे यह अंदाजा लगाया गया कि उस समय सरकार बदलने के लिए बदलाव को देखते हुए ज्यादा वोटिंग हुई थी.
2019 में 67.40 फीसदी वोटिंग
2019 के लोकसभा चुनाव में 67.40 फीसदी मतदान हुआ था. जिसे रिकॉर्ड मतदान कहा जा सकता है. क्योंकि चुनाव से ठीक पहले भारतीय वायुसेना की ओर से बालाकोट में एयर स्ट्राइक की गई थी. यह मुद्दा लोगों के मन में था और भाजपा ने भी राष्ट्रवाद की पिच पर मजबूत भूमिका निभाई और एनडीए ने 352 सीटें जीतीं।
जबकि इस साल पहले चरण में 63 फीसदी वोटिंग हुई है. जो पिछले चुनाव से कम मतदान है. विशेषज्ञों का मानना है कि इस साल चुनाव से पहले कोई बड़ा आयोजन नहीं है जो लोगों को आकर्षित कर सके.
क्या बीजेपी पर भारी पड़ा 400 पार का नारा?
वैसे तो अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बन चुका है, लेकिन ये काम साल की शुरुआत में ही हो गया था. जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है वैसे-वैसे इस मुद्दे में लोगों की दिलचस्पी कम होती जा रही है. ऐसे लोग क्या सोचते हैं और किस आधार पर वोट करते हैं यह भी एक बड़ा सवाल है. सवाल ये भी है कि क्या 400 पार का नारा बीजेपी के लिए भारी पड़ेगा?
यह विश्वास कि पार्टी जीतेगी ही लापरवाही पैदा करती है
विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर कोई पार्टी जरूरत से ज्यादा बड़ा लक्ष्य तय करके सकारात्मक माहौल बनाती है तो अक्सर मतदाता उस पार्टी को हल्के में लेते हैं और आश्वस्त हो जाते हैं कि वह जीत जाएगी। यह आश्वासन ही उन्हें पोलिंग बूथ तक जाने नहीं देता और यही असावधानी सत्ता परिवर्तन का आधार बन सकती है.
2004 के लोकसभा चुनाव में भी ऐसा ही ट्रेंड देखने को मिला था. जिसमें हर तरफ वाजपेयी के काम की तारीफ हो रही थी. हालांकि यूपीए की जीत और एनडीए की हार देखने को मिली.
वोट प्रतिशत सरकार के लिए चिंता का बड़ा कारण है
इस साल पीएम मोदी रैलियों में 400 पार का नारा भी दे रहे हैं और कह रहे हैं, 'मैंने तीसरे कार्यकाल की तैयारी शुरू कर दी है. जीत के बाद पहले 100 दिनों में किए जाने वाले कार्यों का रोडमैप भी तैयार किया गया है. तो 400 पार का ये नारा लोगों के मन में सवाल पैदा कर रहा है कि अगर इस बार भी मोदी जीत गए तो वोट देने का क्या फायदा?
साथ ही विपक्ष कह रहा है कि बीजेपी को लोगों के वोट की जरूरत नहीं है. वह बिना वोट के जीत जायेंगे. ऐसे में विपक्ष का आरोप पूरी तरह गलत साबित नहीं हो सकता. अरविंद केजरीवाल ने लोकसभा चुनाव रैली में कहा, 'मोदी को आपका वोट नहीं चाहिए, वह 400 प्लस लाने की बात कर रहे हैं, मुझे आपका वोट चाहिए, मैं आपके वोट की कीमत रखता हूं।'
अगर पूरा विपक्ष यह नैरेटिव स्थापित करने में सफल हो गया कि बीजेपी को लोगों के वोटों की परवाह नहीं है, तो आने वाले दौर में उसे नुकसान हो सकता है. अब तक कम वोट प्रतिशत सरकार के लिए चिंता का बड़ा कारण रहा है