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'वन नेशन-वन इलेक्शन' कराने में अभी इतनी चुनौतियां बाकी है , मोदी कैबिनेट ने कर लिया है प्रस्ताव मंजूर

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Sep 19, 2024

One nation One Election : लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराने की तैयारियां शुरू हो गई हैं. वन नेशन वन इलेक्शन पर पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया गया है, इस समिति ने अपनी रिपोर्ट केंद्रीय कैबिनेट को सौंप दी है. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में कैबिनेट की बैठक हुई, जिसमें कमेटी की रिपोर्ट को स्वीकार कर मंजूरी दे दी गई. मोदी सरकार के मौजूदा कार्यकाल में वन नेशन वन इलेक्शन को मंजूरी मिलने की अटकलों के बीच समिति की इस रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया है.

वन नेशन , वन इलेक्शन कैसे बनेगा कानून ?

कमेटी की रिपोर्ट को कैबिनेट ने स्वीकार कर लिया है, अब इसके आधार पर कानून में संशोधन का बिल तैयार किया जाएगा, जिसे लोकसभा और राज्यसभा में भेजा जाएगा. यह बिल अगले शीतकालीन सत्र में पेश किया जा सकता है. अगर इसे मंजूरी मिल गई और कानून बन गया तो साल 2029 में लोकसभा चुनाव के साथ-साथ विधानसभा चुनाव भी हो सकते हैं. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में बनी कमेटी ने इसी साल मार्च में मौजूदा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को रिपोर्ट सौंपी थी. 18 हजार से ज्यादा पन्नों की इस रिपोर्ट में लोकसभा, विधानसभाओं के साथ-साथ नगर परिषदों के भी चुनाव कराने की सिफारिश की गई है. समिति ने दो चरणों में एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की.

सिफारिशों के मुताबिक पहले चरण में लोकसभा के साथ-साथ सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव भी कराए जाएं और इसकी शुरुआत साल 2029 से की जा सकती है. दूसरे चरण में लोकसभा-विधानसभा चुनाव होने के 100 दिनों के भीतर इस दूसरे चरण को कवर करने की सिफारिश की गई है.  इस संशोधन के लिए संविधान में अनुच्छेद 82 जोड़ा जाना चाहिए, ऐसा करने से लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ कराना संभव है. साथ ही, इस संशोधन के लिए राज्य विधानसभाओं की मंजूरी की आवश्यकता नहीं होगी, केंद्र सरकार सीधे संविधान में संशोधन कर सकती है.

वर्तमान में संविधान में लोकसभा चुनाव के अनुच्छेद 83 और विधान सभा चुनाव के अनुच्छेद 172 में परिभाषित किया गया है कि कार्यालय का कार्यकाल पांच वर्ष होगा. अब अगर इसमें अनुच्छेद 82A जोड़ दिया जाए तो दोनों चुनाव एक साथ कराना संभव है. हालाँकि, यदि नगर निगमों और पंचायतों को उनके पाँच साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले भंग करना है, तो संविधान के अनुच्छेद 325 में संशोधन करना होगा और यह संशोधन तभी लागू किया जा सकता है, जब कम से कम 15 राज्य इसे अपने विधानमंडल में मंजूरी दें.  यानी कि भले ही यह बिल केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा और राज्यसभा में पारित कर दिया जाए, लेकिन बिल को कम से कम 15 राज्य विधानसभाओं की मंजूरी की आवश्यकता होगी.  जिसके बाद राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही इसे लागू किया जा सकेगा.

मूल समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए जुमले

नई दिल्ली: केंद्र सरकार सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव लोकसभा के साथ कराना चाहती है, हालांकि इसका सबसे ज्यादा विरोध कांग्रेस कर रही है. इसके अलावा सपा, आप, वामपंथी समेत करीब 15 पार्टियां इस निर्माण के विरोध में हैं.  जबकि करीब 15 पार्टियों ने कोई जवाब नहीं दिया है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि एक साथ चुनाव कराना संभव नहीं है, बीजेपी एक साथ चुनाव कराने का मुद्दा उठाकर देश के मूल मुद्दों से ध्यान भटकाना चाहती है.

जब बंगाल की सत्ताधारी टीएमसी के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि ये बीजेपी का घटिया स्टंट है, एक तरफ केंद्र एक साथ चुनाव कराने की बात कर रही है तो दूसरी तरफ उसने बदलाव का फैसला किया है. महाराष्ट्र और हरियाणा चुनावों की तारीखें, जो एक साथ हो रही थीं, और अब उन्हें अलग-अलग आयोजित किया जाएगा.  जम्मू कश्मीर, हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे तीन राज्यों के चुनाव एक साथ नहीं हो सकते और वे पूरे देश के चुनाव एक साथ कराने की बात कर रहे हैं. एक राष्ट्र, एक चुनाव एक क्लासिक मोदी-शाह जुमला है.  इससे पहले ममता बनर्जी भी इस फैसले का विरोध कर चुकी हैं.

एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराने से देश का ढांचा नष्ट हो जाएगा. हमारे देश के संविधान की नींव लोकतंत्र और देश की संरचना है.  जिसे केंद्र नष्ट कर देगा. चूंकि नरेंद्र मोदी और अमित शाह को बार-बार अलग-अलग चुनावों में प्रचार करना पड़ता है, इसलिए वे एक साथ चुनाव कराना चाहते हैं. आप सांसद संदीप पाठक ने कहा कि महाराष्ट्र में हरियाणा और जम्मू कश्मीर के साथ चुनाव कराना संभव नहीं है तो फिर सभी चुनाव एक साथ कराना कैसे संभव होगा? झारखंड मुक्ति मोर्चा की सांसद महुआ माजी ने कहा कि बीजेपी देश की एकमात्र पार्टी बनना चाहती है और इसलिए एक साथ चुनाव कराना चाहती है.

एक साथ चुनाव कराने की प्रमुख चुनौतियाँ

1 संविधान में संशोधन करना होगा जिसके लिए संसद के साथ-साथ राज्यों की मंजूरी लेनी होगी.

2 यदि लोकसभा या राज्य विधानसभा कार्यकाल से पहले भंग हो जाती है, तो एक साथ चुनाव कराने के आदेश को बनाए रखना मुश्किल होता है.

3 चुनाव केवल ईवीएम और वीवीपैट द्वारा कराए जाते हैं, जिनकी संख्या बहुत सीमित है, चूंकि विधानसभा-लोकसभा चुनाव अलग-अलग होते हैं, इसलिए कई ईवीएम की आवश्यकता होगी.

4 एक साथ चुनाव कराने के लिए बड़ी संख्या में प्रशासनिक अधिकारियों, सुरक्षा बलों और अन्य कर्मियों की आवश्यकता होगी.

5 केंद्र के लिए सबसे बड़ी चुनौती विपक्ष शासित राज्यों के साथ-साथ स्थानीय पार्टियों को भी समझाना है.

6 यदि देश में सभी चुनाव एक साथ कराए जाएं तो एक पार्टी को ज्यादा बढ़त मिल सकती है.  इसलिए राज्यों और केंद्र में एक ही पार्टी का वर्चस्व बढ़ सकता है.

Report By:
Devashish Upadhyay.