Jul 28, 2025
जब स्नेह और सुरक्षा एक डोर में बंधते हैं- रक्षाबंधन की कहानी
रक्षाबंधन हिंदू धर्म के प्रमुख और पावन त्योहारों में से एक है। यह पर्व भाई और बहन के स्नेह, विश्वास और सुरक्षा के बंधन को दर्शाता है। हर साल सावन मास की पूर्णिमा को यह पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल यह पावन पर्व 9 अगस्त सुबह 5’39 से दोपहर के 1’24 तक मनाया जाएगा। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती है और भाई उसकी रक्षा करने का संकल्प लेता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि रक्षाबंधन की परंपरा की शुरुआत कब और कैसे हुई? तो जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथाएं और ऐतिहासिक संदर्भ...
इंद्राणी ने दिया रक्षासूत्र का पहला प्रमाण
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, एक समय देवताओं और असुरों के बीच भीषण युद्ध चल रहा था। युद्ध में देवताओं के राजा इंद्र, राक्षस राजा बलि से हार गए थे। तब इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। विष्णु जी ने उन्हें एक पवित्र रक्षा धागा प्रदान किया और कहा कि वह इसे इंद्र की कलाई पर बांध दें। इंद्राणी ने वैसा ही किया और आश्चर्यजनक रूप से इंद्र उस युद्ध में विजय प्राप्त कर सके। इसी घटना को रक्षा सूत्र की परंपरा की शुरुआत माना जाता है।
महाभारत में भी मिलता है रक्षासूत्र का उल्लेख
महाभारत के एक प्रसंग में जब युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से संकट से मुक्ति का उपाय पूछा, तो श्रीकृष्ण ने उन्हें सुझाव दिया कि वे अपनी सेना के योद्धाओं को रक्षा सूत्र बांधें। युधिष्ठिर ने ऐसा ही किया और उसकी सेना को युद्ध में जीत मिली। यह घटना दर्शाती है कि रक्षा सूत्र केवल भाई-बहन तक सीमित नहीं, बल्कि यह सुरक्षा और विश्वास का प्रतीक है।
द्रौपदी और श्रीकृष्ण की अमर कथा
रक्षाबंधन से जुड़ी एक और प्रचलित कथा द्रौपदी और श्रीकृष्ण की है। जब श्रीकृष्ण ने शिशुपाल वध किया था, तब उनके हाथ में चोट लग गई थी। यह देख द्रौपदी ने अपनी साड़ी का टुकड़ा फाड़कर उनके घाव पर बांध दिया। इस भावनात्मक क्षण में श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को जीवनभर उसकी रक्षा करने का वचन दिया। यही कारण है कि जब द्रौपदी का चीरहरण हुआ, तो श्रीकृष्ण ने उसकी लाज बचाई, यह रक्षा का सबसे सुंदर उदाहरण बन गया ।
तो इस रक्षाबंधन, सिर्फ धागा नहीं, रिश्तों का विश्वास भी बांधिए।