Oct 18, 2019
अगर श्रीराम जन्मभूमि विवाद में दशकों बाद मुस्लिम पक्ष सुलह समझौते के लिए आगे आये तो ये हैरानी नहीं परेशानी खड़ा करने वाला कदम है। कल तक जो सिवाय अदालती फैसले के कुछ भी मंज़ूर करने को तैयार नहीं था, वो अचानक समझौते पर उतर आए तो ये बात पचती नहीं है, और फिर पचे भी क्यो, अदालती निर्देश पर बनी समझौते समिति की भी सारी कोशिश फेल होने के बाद तो सुनवाई दोबारा से शुरू हुई थी और जब सब कुछ तय हो गया, फैसला लिखा जाना भर बस बाकी है तब मुस्लिम पक्ष का समझौते पर उतर आना बहुत से सवालों को जन्म देता है।
दशकों बाद मुस्लिम पक्ष कर रही सहृदयता का ढोंग
गंगा जमुनी तहजीब की दुहाई देने वाली एक छद्म संस्कृति और तुष्टिकरण के संपोषक गिरोह को शायद ये समझ में आ गया था कि अदालत में उनके हाथ से बाज़ी फिसल चुकी है। मुस्लिम पक्ष अब सुलह समझौते की बात करके अयोध्या के बाद, काशी मथुरा की बारी को न आने दे, उसे रोक ले वाली नीति अपनाना चाहते हैं। एक नए विवाद को फसाद बनने से रोकने के लिए अब सहृदयता का ढोंग कर लिया जाए या इसी बहाने अन्तर्राष्ट्रीय सहानुभूति भी बटोर लिया जाए। मगर ये सवाल हमेशा खड़ा रहेगा कि अगर समझौता करना ही था तो सबूत दलील की आड़ में मामले को लम्बा खींचा ही क्यों?