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आखिर कन्या भ्रूण हत्या पर कैसे लगेगी रोक

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Sep 25, 2018

रमेश सर्राफ धमोरा

आगामी माह नवरात्री आने वाले हैं। हमारे देश में नवरात्री को मातृ शक्ति के पर्व के रूप में मनाया जाता है। नवरात्री के नो दिनो तक मातृ शक्ति के रूप में सर्वत्र मा दुर्गा की पूजा की जाती है। इस दौरान कन्याओं को भोजन करवाकर उनकी चरण वन्दना की जाती है। उनका पूजन, अभिनन्दन किया जाता है। वैसे भी हम साल भर प्रत्येक शुभ कार्य में कन्या पूजन करते हैं। लेकिन बड़ा सवाल है कि उसी कन्या को हम जन्म से पहले या जन्म के बाद मारने का पाप क्यों करते हैं ?

आज समाज के बहुत से लोग शिक्षित होने के बावजूद कन्या भ्रूण हत्या जैसे घृणित कार्य को अंजाम दे रहे हैं। जिस देश में स्त्री के त्याग और ममता की दुहाई दी जाती हो, उसी देश में कन्या के आगमन पर पूरे परिवार में मायूसी और शोक छा जाना बहुत बड़ी विडम्बना है। आज भी पुरानी सोच वाले लोग बेटियों की बजाय बेटों को ही ज्यादा तव्वजो देते हैं। बालक-बालिका दोनों प्यार के बराबर अधिकारी हैं। इनके साथ किसी भी तरह का भेद करना सृष्टि के साथ खिलवाड़ है।

कन्या भ्रूण हत्या में ज्यादा चिंता का विषय है, इसमें मां का भी भागीदार होना। एक मां जो खुद पहले स्त्री होती है, वह कैसे अपने ही अस्तित्व को नष्ट कर सकती है और यह भी तब जब वह जानती हो कि वह लडक़ी भी उसी का अंश है। औरत ही औरत के ऊपर होने वाले अत्याचार की जड़ होती है यह कथन पूरी तरह से गलत भी नहीं है। घर में सास द्वारा बहू पर अत्याचार, गर्भ में मां द्वारा बेटी की हत्या और ऐसे ही कई कारण हैं जिससे महिलाओं की स्थिति ही शक के घेरे में आ जाती है।

आज भी समाज में बेटियो को बोझ समझा जाता है। हमारे यहां आज भी बेटी पैदा होते ही उसके लालनपालन से ज्यादा उसकी शादी की चिन्ता होने लगती है। आज महंगी होती शादियों के कारण बेटी का हर बाप हर समय इस बात को लेकर फिक्रमन्द नजर आता है कि उसकी बेटी की शादी की व्यवस्था कैसे होगी। समाज में व्याप्त इसी सोच के चलते कन्या भ्रूण हत्या पर रोक नहीं लग पायी है। कोख में कन्याओ को मार देने के कारण समाज में आज लड़कियों की काफी कमी हो गयी है।

भारत में पुरुषों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। भारत में हर साल तीन से सात लाख कन्या भ्रूण नष्ट कर दिये जाते हैं। इसलिए यहां महिलाओं से पुरुषो की संख्या 5 करोड़ ज्यादा हैर्। सोनोग्राफी के प्रचलन से लडक़े की चाह रखनेवाले लोगों को वरदान मिल गया और कन्या भ्रूण की पहचान कर हत्या की शुरुआत हुई। इस प्रकार से पहचान कर कन्या भ्रूण की हत्या के कारण भारत में पुरुषों की संख्या में तेजी से उछाल आया। समाज में निरंतर परिवर्तन और कार्य बल में महिलाओं की बढ़ती भूमिका के बावजूद रूढि़वादी विचारधारा के लोग मानते हैं कि बेटा बुढ़ापे का सहारा होगा और बेटी हुई, तो वह अपने घर चली जायेगी। बेटा अगर मुखाग्नि नहीं देगा, तो कर्मकांड पूरा नहीं होगा। भारत में 1994 में महिला भ्रूण की पहचान करनेवाले मेडिकल पेशेवरों के विरुद्ध कानून बना, लेकिन आज भी आसानी से अवैध ऑपरेटर यह काम कर रहे हैं।

पिछले 50 सालों में बाल लिंगानुपात में 63 पाइन्ट की गिरावट दर्ज की गयी है। वर्ष 2001 की जनगणना में जहां छह वर्ष तक की उम्र के बच्चों में प्रति एक हजार बालक पर बालिकाओं की संख्या 927 थी लेकिन  2011 की जनगणना में यह घटकर कर 914 हो गया है। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लिंगानुपात को बढ़ाने के लिए अनेकोनेक प्रयास किये गये है लेकिन स्थिति सुधरने के बजाय बिगड़ती ही गयी है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी इस दिशा में लगातार चिंता जतायी जाती रही है। सुप्रीम कोर्ट ने गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट जैसी सर्च इंजन कम्पनियों को भ्रूण लिंग जांच से जुड़े विज्ञापन और कंटेंट दिखाने पर फटकार लगाई। कोर्ट ने इन कम्पनियों को एक विशेषज्ञ समिति बनाने के निर्देश दिया है जो भ्रूण लिंग जांच से जुड़े आपत्तिजनक शब्द पहचानकर उससे जुड़े कंटेंट ब्लॉक करेगी।

हाल ही में सम्पन्न हुये राष्ट्रमंडल व एशियाई खेलो में भारतीय महिला खिलाडिय़ो ने जो प्रदर्शन किया वो काबिले तारिफ था। हमारे देश के पुरूष खिलाडिय़ों के बराबर पदक जीत कर महिला खिलाडिय़ो ने दिखा दिया कि यदि उनको भी बराबरी का दर्जा व सुविधा मिले तो किसी भी क्षेत्र में वो पुरूषों से कम नहीं हैं। आज देश के हर क्षेत्र में महिलायें पुरूषों के साथ कंधा मिलाकर काम कर रही हैं। अब तो महिलायें सेना में जंगी जहाज भी उड़ाने लगी है।

हमारे देश की यह एक अजीब विडंबना है कि सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद समाज में कन्या भ्रूण हत्या की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। समाज में लड़कियों की इतनी अवहेलना, इतना तिरस्कार चिंताजनक और अमानवीय है। सरकार ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम की पहल की है। इस कार्यक्रम को एक राष्ट्रव्यापी जन अभियान बनाना होगा। भारत में लगातार घटते जा रहे इस बाल लिंगानुपात के कारण को गंभीरता से देखने और समझने की जरुरत है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राजस्थान के झुंझुनू में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान का शुभारम्भ करते वक्त कन्या भ्रूण हत्या जैसे घृणित कार्य को समाज पर कलंक बताया था। उन्होने कहा था कि सरकार हर सम्भव कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लगायेगी।

जाहिर है लिंगानुपात कम होने का कारण प्राकृतिक नही है। यह एक मानव निर्मित समस्या है, जो कमोबेश देश के सभी हिस्सों, जातियों, वर्गो और समुदायों में व्याप्त है। भारतीय समाज में व्याप्त लड़कियों के प्रति नजरिया, पितृसत्तात्मक सोच, सामाजिक-आर्थिक दबाव, असुरक्षा, आधुनिक तकनीक का गलत इस्तेमाल इस समस्या के प्रमुख कारण हैं।

आलेख:-

रमेश सर्राफ

झुंझुनू,राजस्थान 

स्वतंत्र पत्रकार