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त्याग और वैराग्य का चमकता सूरज चंद्रगिरी में अस्त

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Feb 19, 2024

HIGHLIGHTS 

  • 26 साल की उम्र में गुरु ज्ञानसागर ने दिया आचार्य पद
  • आचार्यश्री ने हिन्दी, कन्नड़, मराठी में 72 किताबें लिखीं।
  • दुनिया का सबसे बड़ा जैन संघ, इनमें 339 साधु और साध्वी

डोंगरगढ़ (छत्तीसगढ़) - दिगंबर जैन संत आचार्यश्री विद्यासागर महाराज (77) तीन दिन की संलेखना के बाद ब्रह्मलीन हो गए। डोंगरगढ़ में चंद्रगिरी तीर्थ में शनिवार रात 2:35 बजे उन्होंने देह त्यागी। जैन समाज के 'वर्तमान के वर्धमान' कहे जाने वाले आचार्यश्री ने अखंड मौन धारण कर लिया था। उनके दर्शन के लिए भीड़ उमड़ पड़ी। रविवार दोपहर अंतिम संस्कार विधि पूरी की गई। उनके सम्मान में मप्र में आधे दिन का राजकीय शोक रहा। आचार्यश्री ने समाधि से तीन दिन पहले आचार्य पद त्यागते हुए शिष्य निर्यापक आचार्य समयसागर को सौंप दिया था। विद्यासागरजी का जन्म कर्नाटक के बेलगांव के सदलगा गांव में 10 अक्टूबर 1946 को शरद पूर्णिमा पर हुआ। उनके तीनों भाई जैन मुनि और दो बहनें आर्यिका हैं । आचार्यश्री का मध्यप्रदेश से गहरा लगाव रहा। उन्होंने 67 पंचकल्याणक किए, इनमें 52 मप्र में किए। अपने जीवनकाल के 56 चातुर्मास में से 37 उन्होंने मध्यप्रदेश में ही किए। उन्होंने देश में 67 मंदिर बनवाए। इनमें से बुंदेलखंड में 17 हैं। वे पहली बार 1976 में कुंडलपुर आए। यहां बड़ेबाबा के दर्शन के बाद उन्हें उच्चासन पर ले जाने का संकल्प लिया। दिगंबर मुनि परंपरा के आचार्यश्री इकलौते हैं, जिन्होंने 507 मुनियों को दीक्षा दी।

न खाता, न ट्रस्ट, जीवन में धन नहीं किया स्पर्श - 

अनियत विहारी आचार्यश्री विद्यासागर जीवनभर मोह-माया से दूर रहे। लोग उनके ऊपर लाखों रुपए न्योछावर कर देते थे, लेकिन उन्होंने कभी धन को स्पर्श नहीं किया। उनका कोई बैंक खाता नहीं था और न कोई ट्रस्ट बनाया।

Report BY - ANKIT TIWARI