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अमृत दूध बना जहर, कार्यकर्ताओं के सूझबूझ से बची बच्चों की जान

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Sep 15, 2017

गरियाबंद : अमृत दूध की गुणवत्ता पर कई सवाल उठे रहे हैं। एक्सपायरी डेट से पहले ही दूध खराब हो गया। गरियाबंद में आंगनबाडी के हजारों बच्चे बाल-बाल बच गए। महिला एवं बाल विकास विभाग ने आंगनबाड़ियों में वितरित किए गए अमृत दूध को वापिस मंगाया।

गरियाबंद में आंगनबाड़ी के हजारों बच्चों की जान बच गई। बच्चों को पिलाए जाने वाला अमृत दूध समय से पहले ही खराब हो गया। दूध बच्चों को पिलाया जाता इससे पहले ही जिला प्रशासन को दूध खराब होने की भनक लग गई और बच्चों को दूध पिलाने से मना कर दिया गया।

यही नहीं दुग्ध संघ द्वारा गरियाबंद जिले को सितंबर माह के लिए एलॉट किया गया 6250 लीटर अमृत दूध सभी आंगनबाड़ी केन्द्रों से वापिस मंगवाया लिया गया। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के मुताबिक दूध के पैकेट अपने आप ही फुलने के बाद फटने शुरू हो गए हैं।

दूध से दुर्गन्ध भी आ रही हैं, जिला प्रशासन द्वारा बिना किसी जांच पड़ताल के ये दूध बच्चों को पिलाने के लिए आंगनबाड़ियों में वितरित कर दिया था, मगर दूध खराब होने की जानकारी मिलते ही जिला प्रशासन ने आंगनबाड़ियों को वितरित किया गया सारा दूध वापिस मंगवा लिया।

राहत की बात ये रही कि समय रहते दूध खराब होने की जानकारी मिल गई और किसी भी बच्चों को दूध नहीं पिलाया गया। आंगनबाड़ी कार्यकार्ताओं की सूझबूझ से जिले में हजारों मासूमों की जान बच गई।

दूध खराब होने की जानकारी उस समय लगी जब एसडीएम बीआर साहू ने देवभोग परियोजना कार्यालय का आकस्मिक निरीक्षण किया और वहां रखे 30 कार्टून दूध में से बदबू आने की जानकारी मिली।

आनन-फानन में जिले के अधिकारियों को मामले की जानकारी दी गई और आंगनबाड़ियों में सप्लाई किए गए अमृत दूध की स्थिति की जानकारी ली गई। वहां भी दूध में से बदबू आने की खबरे मिली, तो बच्चों को दूध नहीं पिलाने के हिदायत देते हुए दूध को वापिस मंगाया गया।

महिला बाल विकास विभाग के मुताबिक दूध के पैकटों पर अगस्त माह की मैनुफैक्चरिंग डेट लिखा हुआ हैं, जो तीन महीने तक सेफ रहता हैं, मगर ये दूध एक माह में ही खराब हो गया हैं और बच्चों को पिलाने के लायक नहीं हैं।

प्रदेश की आंगनबाड़ियों में पढ़ने वाले लाखों बच्चों को तंदरुस्त बनाने के लिए सरकार द्वारा उन्हें अमृत दूध पिलाने की योजना शुरू की हैं। दूध सही हैं या नहीं इसकी जांच के लिए आंगनबाड़ियों में कोई व्यवस्था नहीं हैं।

आंगनबाडी तो दूर जिला स्तर पर भी कोई प्रयोगशाला नहीं हैं। इतनी बड़ी योजना में इतनी बड़ी लापरवाही कभी भी जानलेवा साबित हो सकती हैं। बेहतर होगा कि बच्चों की तंदरुस्ती के साथ-साथ सरकार उनकी जान की भी सही ढंग से हिफाजत करे।