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जमीन के भीतर का सूख रहा पानी, पड़ रही दरार

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Jun 17, 2017

बिलासपुर। हालात चिंताजनक नहीं भयावह हैं, इतने गंभीर कि यदि तत्काल पानी बचाने के प्रयास शुरू नहीं हुए तो छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के बिल्हा ब्लाक देश के उन चुनिंदा ब्लाक में शामिल हो जाएगा जहां की जमीन के भीतर का पूरा पानी सूख चुका है और  इको बैलेंस गड़बड़ा रहा है। जहां की मिट्टी से नमी खत्म हो रही है। स्थिति यह है कि अंडर वाटर सर्वे डिपार्टमेंट जिन तालाबों, कुओं, ट्यूबवेल को मानक मान कर रीडिंग लेता रहा है वो सभी सूख गए हैं। जमीन में पड़ी दरारों को देखकर बिल्हा ब्लाक के रहवासी हैरान परेशान है। बरसात के दो तीन महीनों में यहां के तालाबों में पानी रहता है, लेकिन बाद में ये सूखे पड़ जाते हैं। गर्मियों के चार पांच महीनें तो इलाके के पूरे तालाब सूख जाते हैं। कुछ साल पहले तक स्थिति इतनी भयावह नहीं थी।

बिल्हा ब्लाक को लगी नजर

मनियारी और शिवनाथ नदी के किनारे स्थित इस ब्लाक में पानी, हरियाली, दोहरी फसल किसी भी बात की कमी नहीं थी, लेकिन पिछले छह सालों से यहा की स्थिती भयावह होती जा रही है। रहवासियों का कहना है कि यहां पर किसी की नजर लग गई है। पूरा इलाका धीरे - धीरे सूखे इलाके में तब्दील होता जा रहा है। पहली बार ये तथ्य तीन साल पहले सेंट्रल वाटर कमीशन की एक स्टडी में सामने आया था, जिसमें छत्तीसगढ़ के बिल्हा और कुरूद ब्लाक को क्रिटिकल केटेगरी में रखा गया था, मतलब एसे इलाके जहां जमीन के भीतर की अपर लेयर का 80 फीसदी से ज्यादा ग्राउंड वाटर ट्यूब वेल के जरिए निकाल लिया जाता है, या फिर पानी जमीन के भीतर बनी चट्टानों से नीचे पाताल में चला जाता है। बिल्हा के विधायक सियाराम कौशिक इसके लिए नदियों में अंधाधुंध एनीकट बनाते समय जमीन की भीतरी चट्टानों को हुआ नुकसान, इलाके में अवैध ईंटभट्ठों, उद्योग, फैक्ट्रियों द्वारा कई कई ट्यूब वेल लगाकर चौबीस घंटे पानी निकालने का कारण बताते हैं। वे कहते हैं कि उन्होंने प्रदेश सरकार से मांग की है कि शिवनाथ नदी के सरफेस वाटर को फिल्टर कर बिल्हा में पीने के लिए सप्लाई करें।

पानी को बचाने के लिए जुटी सरकार

स्टडी के मुताबिक बिल्हा का 93 फीसदी अंडरग्राउंड वाटर गर्मियों में खत्म हो जाता है, इसे देखते हुए यहां के तालाब में एक परकोलेशन टैंक, रिचार्ज शाफ्ट और रिचार्जिंग स्ट्रक्चर बनाए गए थे, इससे रीडिंग लेकर स्टडी की जानी थी लेकिन पिछले दो साल से भीषण गर्मी के कारण ये टैंक और स्टडी के लिए बनाए गए डग वेल ही सूख गए, लिहाजा अब अंडरग्राउंड वाटर सर्वे डिपार्टमेंट को सरकार से अपनी स्टडी के लिए बोरिंग कराने की डिमांड करनी पड़ी है। इस बोरिंग के साथ आटोमेटिक रीडर लगाए जाएंगे जिससे पूरे साल का वाटर लेवल स्टडी किया जाएगा। अब इस स्टडी और बिल्हा की हालत देखने के बाद प्रदेश सरकार और जनता दोनों को संभल जाना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि जमीन से पानी निकालने के साथ-साथ जमीन में पानी देने का भी प्रयास करें, नहीं तो जिस तेजी से कांक्रीटीकरण हो रहा है, पेड़ कट रहे हैं पूरा प्रदेश बिल्हा और कुरूद की लिस्ट में जुड़ जाएगा।

पानी के लिए बरसात का इंतजार

अब बरसात के पानी का ही इंतज़ार किसानों और ग्रामीणों पर आश टिकी हुई है। क्योंकि पानी की समस्या ने इन्हें काफी परेशान कर रखा है। अब देखना होगा और कितने दिन इन्हें पानी के लिए इंतज़ार करना होगा। ताकि वाटर रिचार्ज होकर इन्हें पानी की समस्या से निजात मिल सके। इस बरसात के पानी को हमें एक मटके के समान समझना होगा। जिस तरह हम मटके में पानी भरते है तो कुछ देर बाद वही मटका हमें पानी को ठंडा कर वापस दे देता है। उसी तरह बरसात के पानी से वाटर लेबल ऊपर आएगा। फिर वही पानी हमें उपयोग करने के लिए मिलेगा।