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नारी सशक्तिकरण भ्रम और सत्य

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Dec 31, 2017

सरगुजा। पूरे हिन्दुस्तान में छत्तीसगढ़ का डंका जिस महिला सशक्तिकरण के नाम पर बज रहा है अब वही महिलायें न्याय पाने के लिए भूख हड़ताल करने पर मजबूर हैं। सरगुजा में महिलाओं के सम्मान ,सुरक्षा ,और समूह बनाकर उन्हें सशक्त बनाने की बातों ने सरगुजा का नाम खूब रोशन किया पर असलियत कुछ और भी है जिससे शायद सशक्तिकरण के चमकदार रौशनी से प्रशासन की आँखे चौंधिया गईं हैं और सरकार नहीं देख पा रही है की लोग अब भी अन्धकार में भटक रहे हैं, उन तक इस भ्रष्ट तंत्र में न्याय की रौशनी अब तक नहीं पहुँच सकी है। पूरा मामला है सरगुजा जिले के लखनपुर ब्लाक का जहाँ कुछ दबंग और रसूखदार लोगों ने एक महिला को इतना मजबूर कर दिया की अब कडाके की ठण्ड में उसे तम्बू लगाकर 6 दिनों से भूखा रहना पड़ रहा है, सरकार के नुमाइंदे भी बेख़बर हैं पर किसी की हिम्मत नहीं की महिला को न्याय दिलाने कोई पहल करें। सरगुजा में नारी सशक्तिकरण की असलियत यही है साहब ,पिछले एक हप्ते से सरगुजा की कड़कड़ाती ठंढ में यह वही महिला न्याय की मांग कर रही जो नगर के ही कुछ रसूखदारों के प्रताड़ना से तंग आकर अब भूख हड़ताल करने अनशन पर बैठ गयी है। आपको जानकार अच्छा लगेगा की इन्ही महिलाओं की बदौलत सरगुजा बेहद सुर्ख़ियों में हैं, यहाँ महिलाओं की हक़ की बात करने वाली कलेक्टर भी खुद एक महिला हैं, महिला बाल विकास अधिकारी भी महिला है और तो और इस क्षेत्र की पुलिस अधिकारी भी एक महिला हैं, पर वाह रे महिलाओं की टोली, जो पिछले 4 सालों से न्याय के लिए दर-दर भटक रही है उस एक महिला से मिलने का समय न तो सरगुजा की महिला कलेक्टर को है और न हीं किसी ओहदे में बड़े नुमाइंदे को। महिला का आरोप है की नगर के कुछ रसूखदार लोगों ने इनका जीना हराम कर रखा है, जान का खतरा भी बना हुआ है, पुलिस से लेकर कोर्ट-कचहरी के चक्कर काट कर थक चुके हैं पर मजाल है की किसी के कान में जूं तक रेंगे, पुलिस से लेकर प्रशासन तक ने आँखे मुंद रखीं हैं अब भला नारी तो सशक्त है इसलिए न्याय पाने शायद इनके लिए ये ही आखिरी रास्ता बचा है सो बैठ गयी है। अनशन पर और आखिरी उम्मीद टिकी है इस बात पर की कोई तो होगा जो इनकी समस्याओं को समझकर इन्हे न्याय दिलाने सामने आएगा। प्रशासन के लोग तो यहाँ नहीं आये पर जैसे ही यहाँ मीडीया का कैमरा लोगों ने देखा तो ऐसा लगा जैसे अब हम ही सब कुछ हैं, अब भला न्याय कैसे नहीं मिलेगा पर ऐसा शायद ही होता हो की मिडिया के कैमरे की आँखों ने जो देखा वह उन अंधे और बहरे प्रशासन की आँखों को दिखे और कानो में सुनाई दे। हमने भी यहाँ आकर एस डी एम साहब को फोन लगाया, पर वह न तो फोन रिसीव किये और न ही कोई जवाब, तहसीलदार से बात की पर उच्चाधिकारी ही जवाब देंगे ऐसा कहकर उन्होंने भी फोन रख दिया ऐसे में भला पुलिस विभाग के थाने का प्रभारी कारवाई करेगा इस बात के तस्दीक के लिए जब हम थाने पहुंचे तो यहाँ पर वरिष्ठ अधिकारी के बात करने का हवाला देकर बात टाल दिया गया । हमने जब पीड़िता से बात शुरू की तो वहां 50 की संख्या में लोग सिर्फ भीड़ बढ़ाने नहीं आ गए बल्कि ये बताने आ गए की इस क्षेत्र में रसूखदारों ने एक महिला या उसके परिवार को तंग नहीं किया है बल्कि उन सभी लोगों को परेशां कर रखा है जो इस भीड़ का हिस्सा है। जमीन की दलाली से लेकर आदिवासियों की जमीने बेचने के साथ साथ, सड़क पर मारपीट करने तक की घटना इनके साथ घट चुकी है, शिकायतों का पुलिंदा है, सबके हाथों में शिकायतों की एक फ़ाइल है पर जाँच और कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति। क्या कीजियेगा आख़िर यही तो राजकाज़ है। वैसे तो सरगुजा आदिवासी बहुल है, पर राज आज भी यहाँ पर उन लोगों की चलती है जो इन पर हावी हों, अपने रसूख के दम पर आदिवासियों की जमीने बेचने का काम करने वाले महारथियों की सेटिंग इतनी तगड़ी है इनका पुलिस कुछ कर सके इसकी उम्मीद बेमानी होगी , क्योंकि अगर कोई इस तरह के काम कर पुरे क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम कर चूका है तो ये भी तय है की आज से नहीं बल्कि वर्षों से इस काम में प्रशासन ने पूरी तरह इन रसूखदारों के साथ मिल कर ही इन्हे सर पर चढ़ाया है शायद यही वजह है की अगर जांच पूरी ईमानदारी से हो जाये तो सरकार के जंग लगे सिस्टम के भीतर रह कर काम करने वालों का भी नाम सबके सामने आ जायेगा, इसलिए फिलहाल इन्तजार करना ही इस पीड़ित परिवार का अंतिम इलाज है और कुछ नहीं।