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बैगा आदिवासी की अनोखी नवरात्रि, जानकर दंग रह जाएंगे आप...

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Sep 28, 2017

बलरामपुर : नवरात्रि में सभी देवी स्थलों पर विधि-विधान से पूजा अर्चना हो रही हैं। वहीं बलरामपुर में यहां के आदिवासी अपने पारम्परिक रीतिरिवाजों से पूजा अर्चना करते हैं। बैगा पूजा यहां की अपनी एक अलग तरह की पूजा अर्चना हैं।

जिसमें बैगा देवार, देवी का दरबार लगाते हैं और लोहे की सलाखों से अपने गाल भेद कर देवी को खुश करते हैं। यहां के आदिवासियों की नवरात्र को लेकर आस्था हद दर्जे की हैं। जन श्रुतियां कहती हैं कि इस तरह से पूजा अर्चना करने से गांव में खुशहाली आती हैं और दूसरी ताकतों से गांव को निजात मिलती हैं।

नव दुर्गा भगवती की पूजा अर्चना वैसे तो कई रीति-रिवाजों से होती हैं, लेकिन छत्तीसगढ के बलरामपुर में यहां के आदिवासी बैगा रीति रिवाज से देवी का अनुष्ठान करते हैं। गांव के बैगा देवार अपने पूर्वजों के समय से चले आ रहे तौर तरीकों का अनुशरण करते हुए देवी का दरबार सजाते हैं और जन श्रुतियों के साथ-साथ इन बैगाओं की माने तो इस दरबार में देवी खुद आतीं हैं और खेलती हैं।

देवी पूजा का हर अनुष्ठान इनके परंपारिक रीति-रिवाजों के अनुसार ही होता हैं। देवी की आराधना करने वाले श्रद्धालु लोहे की सलाखें अपने गालों और जीभ में भेद कर देवी को प्रसन्न करते हैं। इन लोगों की आस्था ऐसी हैं कि इनका मनना हैं कि माता के दरबार में मांगी गई हर मुराद पूरी होती हैं और इसी लिए पूरा गांव नौ दिनों तक देवी की आराधना में जुटा रहता हैं।

ऐसा माना जाता हैं कि बैगा आदिवासियों की पूजा से देवी ज्यादा प्रसन्न होती हैं और इन पर देवी की खास कृपा होती हैं। आठ दिनों तक पूरे विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना जागराते के बाद नवमी के दिन बकरे की बलि दी जाती हैं। जिसके बाद पूरा अनुष्ठान पूरा होता हैं। बैगा आदिवासियों का मानना हैं कि देवी की पूजा अर्चना पूरे विधि-विधान के साथ करने से गांव में खुशहाली आती हैं और बुरी शक्तियां दूर भागती हैं।