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अभी-अभी:

विकास के सिस्टम पर प्रताड़ित हो रहे आदिवासी

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Jan 16, 2018

रायपुर। छत्तीसगढ़ आदिवासियों का गढ़ और बिना आदिवासियों के यहां सियासत नहीं हो सकती। सत्ता की धुरी आदिवासियों के बिना अधूरी है। यही वजह है कि सत्ता आदिवासियों के आगे झुकती रही और आदिवासियों से ही चलते रही है। मतलब बिना आदिवासियों के राज्य में सरकार की कल्पना ही नहीं हो सकती। इसे संघ बखूबी समझने लगा। यही वजह है कि संघ को प्रमुख को कहना पड़ता है कि हम आदिवासियों के वंशज है। लेकिन सवाल तो ये है कि अपार विकास के बीच आदिवासियों को प्रताड़ित कौन कर रहा है। क्यों कर रहा। दरअसल ये सवाल भी संघ के मंच से उठे हैं। जी हाँ, तो सवाल यही है कि जब संघ प्रमुख कह रहे थे कि हम आदिवासियों के वंशज है और हमारा डीएनए एक है, तो फिर संघ प्रमुख के मंच से आदिवासी समाज क्यों कह रहा कि हमें प्रताड़ित किया जा रहा है। मतलब साफ है कि सत्ता के भीतर न तो सुनवाई आदिवासियों की हो रही है और न संघ की। तो सवाल ये है कि छत्तीसगढ़ में विकास की बयार के बीच आदिवासियों को प्रताड़ित कौन कर रहा है, क्यों कर रहा। मसलन बस्तर से लेकर सरगुजा तक वो कौन सिस्टम काम कर रहा जो आदिवासियों के खिलाफ है। दरअसल ये सवाल विकास के पैमाने पर इसलिए उठ खड़े हुए हैं क्योंकि संघ के मंच से शायद पहली बार आदिवासी समाज की ओर से ये कहा गया कि आदिवासी प्रताड़ित हो रहे हैं, उन्हें नक्सली बताकर मारा जा रहा है, उन पर अत्याचार हो रहे है। जाहिर था विपक्ष को संघ और सरकार को घेरने का मौका मिला प्रदेश कांग्रेस प्रभारी पीएल पुनिया ने भी कुछ इस तरह निशाना साध दिया। आदिवासियों की नाराजगी और सवाल के बीच संघ प्रमुख के नसीहत की इसे असर कहे या कुछ और आनन-फानन में एसटी मोर्चा की अहम बैठक आज बीजेपी ने बुलाई। बैठक में मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामविचार नेताम से लेकर सह संगठन महामंत्री सौदान सिंह और प्रदेश अध्यक्ष धरम लाल कौशिक भी मौजूद रहे। वैसे खबर ये भी है कि आदिवासियों को प्रताड़ित करने का सवाल उठाने वाले टेकाम से बीजेपी नेताओं ने मुलाकात की। लेकिन नेताओं आदिवासियों के प्रताड़ना पर कुछ न कहा, पलटवार हुआ तो पुनिया के बयानों पर। तीन बार सत्ता से बेदखल कांग्रेस की छटपटाहटी सियासत के बीच मूल विषय को भटकाने की कोशिश हो रही है। सवाल अब वही है जो विकास के बीच गुम है। सवाल वही जो आदिवासी समाज की ओर से उठाया गया है। सवाल ये भी है कि अगर विकास हो रहा तो इस विकास में आदिवासी प्रताड़ित क्यों? सवाल ये भी कि क्या संघ को भी ये लगने लगा है कि सत्ता अहंकार में डुब गई हैं। आदिवासियों की नाराजगी को क्या अपने वंशज बताकर ही दूर किया जा सकता है। या ये एक तरह से सत्ता के लिए चेतावनी है कि रुठे आदिवासियों को नहीं मनाया गया तो सत्ता बदल जाएगी। जैसा संघ प्रमुख ने कहा सत्ता तो आते-जाते रहती है।