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भूपेश सरकार नें भू प्रभावित किसानों को जमीनें वापस करने का लिया फैसला, बस्तर के किसानों नें की खुशी जाहिर

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Dec 27, 2018

आशुतोष तिवारी - प्रदेश मे 15 साल बाद कांग्रेस की सरकार बनने और भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री पद की शपत लेते ही किसानों के हित मे बडा फैसला लेते हुए कर्ज माफी के साथ बस्तर के टाटा भू  प्रभावित किसानो को जमीने वापस करने की भी घोषणा कर दी है सरकार के इस फैसले का किसानो ने स्वागत किया है। और पिछले 10 सालो से अधिग्रहण की गई जमीन वापस मिलने की घोषणा से बस्तर के किसानो ने खुशी जाहिर की है।  

किसानों को मुआवजा राशि बांटने की प्रक्रिया शुरू

दरअसल  जून 2005 मे  टाटा स्टील लिमिटेड ने छत्तीसगढ़ शासन के  साथ बस्तर जिले के लोहंडीगुड़ा क्षेत्र में इस्पात संयंत्र स्थापना के लिए एमओयू पर साईन किया था लगभग बीस हजार करोड़ रुपये की लागत से साढ़े पचास लाख टन सालाना उत्पादन क्षमता का इस्पात संयंत्र लगाने के लिए राज्य सरकार ने लोहंडीगुड़ा क्षेत्र के दस गांवों की सरकारी, निजी और वन भूमि को मिलाकर 2043.450 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित करने ग्राम सभाएं आयोजित की थी और सन 2008 मे प्लांट स्थापना की घोषणा के साथ ही 1707 किसानो से जमीन अधिग्रहण कर मुआवजा राशि बांटने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई। प्रभावित किसानों में 1165 किसान मुआवजा प्राप्त कर जमीन देने को राजी हुए लेकिन जमीन पर कब्जा नहीं छोड़ा।

किसानों में खुशी की लहर

वहीं 542 किसानों ने जमीन देने से साफ इनकार करते हुए मुआवजा राशि लेने से साफ मना कर दिया किसानों के लगातार विरोध के कारण शासन मुआवजा बांटने के बाद भी जमीन का अधिग्रहण कर टाटा स्टील को उपलब्ध कराने में नाकाम रही साथ ही राज्य सरकार ने 2016 फरवरी में टाटा स्टील को बैलाडीला क्षेत्र में आवंटित लौह अयस्क की खान के लिए जारी प्रास्पेक्टिंग लाइसेंस भी निरस्त कर दिया था तभी टाटा की बस्तर से विदाई तय हो गई थी इधर किसानों का आंदोलन जारी रहा और  कांग्रेस व सीपीआई के नेतृत्व में लगातार आंदोलन बढ़ता रहा स्थानीय विधायक दीपक बैज ने भी समय-समय पर विधानसभा में मामले को उठाया अब जब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार आई तो किसानों को जमीन वापस देने की घोषणा हो गई जिससे प्रभावित किसानों में खुशी की लहर है।

किसान नहीं देना चाहते अपनी जमीन

किसानों का कहना है कि भूमि अधिग्रहण की बाद से लगातार कई समस्याओं से उन्हें रोज दो चार होना पड़ रहा था जिसमे मुख्य रूप से जमीन का पट्टा नही होने से उनके परिवार का जाति प्रमाण पत्र व निवास प्रमाणपत्र नही बन पा रहा था साथ ही इसके कारण उन्हें सरकारी सुविधाओं का लाभ भी नही मिल पा रहा था। कृषि संबधी भी उन्हे सरकार के कोई योजना का लाभ नही मिल पा रहा था। किसानों ने कहा  कि उनकी जमीन उनके पूर्वजों की है और पीढ़ी दर पीढ़ी उनका परिवार जमीन पर खेती किसानी कर अपने परिवार का पालन पोषण करते आ रहा है किसान अपनी जमीन टाटा को नही देना चाहते थे लेकिन उन पर जबरन दबाव बनाया गया।

जमीन मिलते ही किसान करेंगे खेती की शुरुआत

किसानो ने बताया कि जमीन नही देने का मुख्य कारण उनकी जमीनो को कौडी के दामों पर खरीदा जा रहा था साथ ही प्रभावित किसानो के परिवार मे से एक सदस्य को नौकरी देने की बात कही गई थी लेकिन टाटा कंपनी द्वारा इस ओर कोई ध्यान नही दिया जा रहा था। जिस वजह से  टाटा कंपनी द्वारा अध्रिग्रहण की गई जमीन को वापस पाने के लिए किसान पिछले 10 सालो तक संर्घष करते रहे कभी चक्काजाम तो कभी भुख हड़ताल कर किसान भाजपा सरकार को चेताते रहे लेकिन नतीजा सिफर रहा और आखिरकार स्थानीय कांग्रेसी विधायक और प्रदेश मे कांग्रेस की सरकार बनने के साथ ही जमीन वापस मिलने की घोषणा से किसानो मे जमीन वापस मिलने की उम्मीद जगी उन्होने कहा कि जमीन मिलने से फिर से खेती किसानी शुरू कर सकते है।

टाटा कंपनी को हुआ करोडो का नुकसान

1707 किसानों में से 1165 किसानों ने तो सरकार से मुआवजा ले लिया था और प्लांट बनाने की लिए हामी भी दे दी थी लेकिन 542 किसानों ने न ही मुआवजा लिया और ना ही प्लांट बनाने को समर्थन दिया और लगातार विरोध प्रदर्शन करते रहे जिसके बाद इस मामले को राजनीतिक हवा मिली और कोंग्रेस व कम्यूनिस्ट दोनो ही पार्टियों ने सरकार को घेरना शुरू किया और 2018 में चित्रकोट विधानसभा में भाजपा की हार का बड़ा कारण भी टाटा प्लांट बना और आखिरकार टाटा कंपनी को करोडो रू. का नुकसान उठाकर वापस लौटना पडा।