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“किसानों की व्यथा” गरियाबंद के 50 से अधिक किसान मजदूरी करने की कगार पर

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Dec 29, 2018

पुरुषोत्तम पात्रा - भाठीगढ का रानू साहू कुछ साल पहले तक ढाई एकड का किसान हुआ करता था अपनी उसी जमीन पर फसल उगाकर वह अपने परिवार का पालन पोषण करता था मगर अब पुरी मजदूर बन गया है ऐसा नही है कि अब उसने अपनी जमीन बेच दी हो या फिर अब उसे खेती करना पंसद ना हो बल्कि जमीन होते हुए भी वह अपनी उस जमीन पर खेती करने में असमर्थ हो गया है उसकी जमीन अब नाले में तब्दील हो गयी है रानू साहू अकेला ऐसा किसान नही है जिसकी ये हालत हुयी हो बल्कि हरदीभाठा, गोपालपुर, भाठीगढ और नाहरगिरी के 50 से ज्यादा किसानों की 200 एकड़ जमीन नाले में तब्दील हो गयी है।

भू-संरक्षण विभाग की लापरवाही

पीडित किसानों का दावा है कि भुसंरक्षण विभाग की लापरवाही के कारण उनकी ये हालत हुई है उऩ्होंने बताया कि विभाग द्वारा 2005 में पैरी नदी उदगम स्थल के पास हरदीभाठा में बिना किसी लेआउट के एक स्टापडैम बना गया था स्टापडैम तो उसके अगले ही साल पहली बारिश में बह गया मगर उसके कारण नदी का रुख बदल गया, पैरी नदी की धार उनके खेतों से होकर बहने लगी देखते ही देखते उनके खेत नाले में तब्दील हो गये खेतों के कटाव का ये सिलसिला पिछले 12 साल से चल रहा है खेतों का कटाव लगातार बढता जा रहा है।

किसान अपनी ही जमीन पर नहीं कर पा रहा खेती

अब हालात ऐसे हो गये है कि किसान अपनी इस जमीन पर खेती नही कर पा रहे है, पीडित किसान इसकी शिकायत जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों से करते थक चुके है यहीं नही प्रधानमंत्री को भी चिट्टी लिख चुके है, प्रधानमंत्री कार्यालय से मिले जबाव में कहा गया है कि प्रदेश के मुख्य सचिव को मदद के लिए निर्देशित किया गया है मगर इसके डेढ साल बाद भी किसी ने पीडित किसानों की सुघ नही ली प्रदेश में किसानों की समस्या कोई नयी बात नही है बल्कि अहम बात तो ये है कि प्रधानमत्री के निर्देश के बाद भी जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों ने पीडित किसानों की सुघ लेने की कौशिश नही की पीडित किसानों में अब नयी सरकार से न्याय की उम्मीद जगी है।