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अभी-अभी:

'मार्ग दर्शकों ' की बदज़ुबानी की इन्तेहा ?

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Jan 30, 2020

कभी विश्व को मार्ग दर्शन देने जैसा स्वर्णिम अतीत रखने वाले हमारे देश में इन दिनों कथित 'मार्ग दर्शकों ' द्वारा ही देश व भारतीय समाज को विभाजित करने के सभी उपाय आज़माए जा रहे हैं। पूरे देश में किसी भी राज्य में किसी भी दल के किसी नेता द्वारा कोई न कोई बयान ऐसे ज़रूर दिए जाते हैं जो भारतीय राजनीति के गिरते व सबसे निचले स्तर का परिचायक हैं। यह स्थिति उस समय कुछ ज़्यादा ही मुखर रूप धारण कर लेती है जबकि देश किसी चुनाव से रूबरू हो रहा होता है। बस,जनमानस को वरग़लाने के लिए, मतदाताओं को भड़काने या उन्हें अपने पक्ष में करने के लिए,विपक्ष को बदनाम या कलंकित करने हेतु गोया कुल मिलाकर सत्ता हासिल करने के अपने दूरगामी लक्ष्य तक पहुँचने के लिए जिस नेता के मुंह में जो भी आता है, बड़ी ही बेशर्मी से बोल देता है। अब यदि उसके मुंह से निकलने वाले वाक्य या शब्द असंसदीय हैं,समाज में नफ़रत पैदा करते हैं,देश को धर्म या जाति के आधार पर तोड़ने का काम करते हैं,देश में साम्प्रदायिक तनाव पैदा करते हैं,देश में दंगा फ़साद फैलाने में सहायक होते हैं परन्तु इन सब संभावित दुष्प्रभावों के बावजूद ज़हरीले बयान दिए जा रहे हैं और बार बार दिए जा रहे हैं,और ऐसा भी कोई प्रमाण नहीं कि पूर्व में भी इस तरह की निम्नस्तरीय बयानबाज़ी करने वालों के विरुद्ध कोई कार्रवाई की गयी हो,फिर तो यक़ीनन इस निष्कर्ष पर आसानी से पहुंचा जा सकता है कि यह सब अनायास ही नहीं हो रहा बल्कि यह सुनियोजित षड़यंत्र का ही एक हिस्सा है।
                                             देश की राजधानी दिल्ली इन दिनों विधान सभा चुनावों का सामना कर रही है। इत्तेफ़ाक़ से देश इन्हीं दिनों एन आर सी,एन आर पी व सी ए ए जैसे विवादित मुद्दों को लेकर आंदोलनरत भी है। ज़ाहिर है केंद्र की मोदी सरकार एन आर सी,एन आर पी व सी ए ए को अमल में लाना चाहती है जबकि विपक्ष सहित सत्ता के कई सहयोगी दल भी इन क़ानूनों का विरोध कर रहे हैं। इसी वातावरण के मध्य हो रहे दिल्ली चुनाव में दिल्ली के विकास व दिल्ली की जनता की मुख्य समस्याओं की चर्चा करने के बजाए  एन आर सी,एन आर पी व सी ए ए जैसे विवादित मुद्दों को चर्चा का केंद्र बना दिया गया है। मुख्यमंत्री केजरीवाल का दावा है कि उनके शासनकाल में दिल्ली प्रदेश ने शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में वह नए आयाम स्थापित किये हैं जिससे दुनिया के कई देश भी सबक़ हासिल कर रहे हैं। कई देशों के प्रतिनिधिमंडल केजरीवाल सरकार की ऐसी कई उपलब्धियों को देखने के लिए भी आते रहे हैं। बिजली पानी निःशुल्क मुहैय्या कराने जैसी लोक लुभावन बातों को यदि छोड़ भी दिया जाए तो भी अकेले शिक्षा के ही क्षेत्र में केजरीवाल सरकार ने वह कर दिखाया जो दिल्ली की अब तक की कोई भी पिछली सरकार नहीं कर सकी। स्कूल भवन से लेकर,शिक्षा के सिलेबस तक,अनुशासन से लेकर उच्च कोटि के शिक्षण तक,प्रैक्टिकल प्रयोगशालाओं से लेकर खेलकूद की समुचित व्यवस्था तक,योग्य व शिक्षित अध्यापकों से लेकर  बच्चों को नैतिक ज्ञान दिए जाने तक,यहाँ तक की उच्च शिक्षा हेतु बच्चों को आर्थिक सहायता दिए जाने तक के प्रबंध दिल्ली सरकार द्वारा किये गए हैं। निश्चित रूप से शिक्षा व शिक्षित समाज देश का उज्जवल भविष्य निर्धारित करते हैं।
                                          परन्तु आम आदमी पार्टी से सत्ता छीनने के लिए भारतीय जनता पार्टी व उनके नेताओं द्वारा जिस भाषा का इस्तेमाल किया जा रहे है और चुनाव जीतने के लिए जो हथकंडे अपनाए जा रहे हैं वे बेहद शर्मनाक तो हैं ही साथ साथ सामाजिकता एकता व समरसता के लिए भी अत्यंत घातक हैं। अफ़सोस की बात यह भी है कि इस तरह का ग़ैर ज़िम्मेदाराना खेल छुटभैय्ये नेताओं,विधायक या सांसद स्तर तक के नेताओं द्वारा ही नहीं बल्कि केंद्रीय मंत्री स्तर तक के नेताओं द्वारा भी खेला जा रहा है। दिली चुनाव में प्रचार के दौरान केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने  दिल्ली के रिठाला विधानसभा क्षेत्र में एक चुनावी रैली के दौरान यह नारे लगवाए कि -'देश के ग़द्दारों को-'गोली मारो सालों को'। बाद में भी उन्होंने यही कहा कि ग़द्दारों को भगाने के लिए नारे भी लगने चाहिए। इसके पहले भाजपा का ही कपिल मिश्रा दिल्ली की ही सड़कों पर गत  दिसंबर में यही भड़काऊ नारे लगवाता  देखा गया था। अब चुनाव आयोग ने केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर को नोटिस भेजा है और 30 जनवरी को दोपहर 12 बजे तक जवाब देने को कहा है। यदि पार्टी  के आला नेताओं ने कपिल मिश्रा के 'गोली मारो'  वाले हिंसक व भड़काऊ नारे पर संज्ञान लिया होता तो शायद अनुराग ठाकुर वही भड़काऊ व आपत्तिजनक नारे न लगवाते। परन्तु गिरिराज सिंह से लेकर दिल्ली के सांसद प्रवेश वर्मा तक जिस तरह की आपत्तिजनक बयानबाज़ियां कर रहे हैं और जनता को भड़काने व वरग़लाने के लिए जिस भाषा व शैली का इस्तेमाल किया जा रहा है वो अत्यंत चिंतनीय है।
                                        क्या राजनैतिक विरोध का अब यही पैमाना रह गया है कि अपने आलोचक या विरोधी अथवा विपक्षी को देश का ग़द्दार कहकर उसे नीचे दिखाया जाए ? कौन पाकिस्तानी है कौन टुकड़ेटुकड़े गैंग का सदस्य है यह क्या अब भाजपा के नेतागण तय करेंगे? राष्ट्रभक्त होने का प्रमाण पत्र क्या अब भाजपा के नेतागण दिया करेंगे? देश का ग़द्दार कौन है? सामाजिक समरसता व सर्वधर्म समभाव की बातें करने वाले या देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने का स्वप्न दिखने वाले ? जो लोग सड़कों पर 'गोली मारो सालों को' जैसे आपत्तिजनक व हिंसा भड़काने वाले नारे लगाएं वे राष्ट्रवादी हैं और जो संविधान व तिरंगे को अपनी छाती से लगाकर उसकी रक्षा की दुहाई दें वे ग़द्दार? जब तीन तलाक़ विषय पर भाजपा तीन तलाक़ पीड़ित मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में खड़ी होकर उनके सशक्तीकरण का दावा करे तो वह 'मुस्लिम महिला सशक्तिकरण की झंडाबरदार' और जब वही महिलाएं सशक्तीकृत होकर देश के संविधान की रक्षा के लिए भारतीय समाज के साथ सड़कों पर उतरें तो वे 'धर्म विशेष' की महिलाओं के रूप में चिन्हित की जाएं? जब स्वयं देश के गृह मंत्री यह कहें की 'बटन यहाँ दबाओ तो करंट वहां तक जाए' तो समझा जा सकता है कि हमारे 'मार्ग दर्शकों' ने देश को किस रास्ते पर ले जाने की ठान रखी है। बेशक यह हालत इस नतीजे पर पहुँचने के लिए काफ़ी हैं कि देश के समक्ष आदर्श व प्रेरणा प्रस्तुत करने वाले तथाकथित 'मार्गदर्शकों' की बदज़ुबानियां अपनी इन्तेहा पर पहुँच चुकी हैं।  

- निर्मल रानी