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संस्कारित है "गोडसे प्रेम"

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Dec 9, 2019

नाथू राम गोडसे ने महात्मा गाँधी की हत्या क्यों की, इस बात को लेकर गांधी की हत्या के समय से ही दो मत रहा है। दरअसल देश की स्वतंत्रता के समय भी हिंदुत्ववादी विचारधारा के लोग महात्मा गाँधी को अच्छी नज़रों से केवल इसलिए नहीं देखते थे क्योंकि वे सर्वधर्म समभाव के ध्वजावाहक थे तथा भारत में सभी धर्मों व समुदायों के लोगों के मिलजुलकर रहने के पक्षधर थे। दूसरी ओर वह विचारधारा थी जो गाँधी जी की इस नीति की विरोधी थी। उस हिंदूवादी राजनीति करने वाले वर्ग का मत था कि जब देश का बंटवारा हो गया और पाकिस्तान, भारत से अलग होकर मुस्लिम देश बन ही गया तो भारत को दो धर्म दो राष्ट्र के सिद्धांत पर हिन्दूराष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए। जबकि गाँधी जी भारत को विश्व के एक बड़े धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में देखना चाहते थे। इसका मुख्य कारण यह था कि अधिकांश कांग्रेस समर्थक भारतीय मुसलमान भारत को विभाजित करने के ख़िलाफ़ थे जबकि मोहम्मद अली जिन्नाह के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग के समर्थक अलग मुस्लिम राष्ट्र चाहते थे। अंग्रेज़ों ने देश छोड़ने से पहले अपनी कुटिल चाल चलते हुए बंटवारे का बड़े पैमाने पर विरोध करने के बावजूद देश को विभाजित करने में अपना अहम किरदार अदा किया। ग़ौरतलब है कि विभाजन से पूर्व कांग्रेस पार्टी के मौलाना अबुल कलाम आज़ाद,ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान जैसे अनेक बड़े मुस्लिम नेता देश के धर्म आधारित विभाजन का ज़बरदस्त विरोध कर रहे थे परन्तु इसके बावजूद भारतवर्ष एक बड़ी पश्चिमी साज़िश का आसानी से शिकार हो गया तथा 1947 में रक्तरंजित विभाजन का इतिहास लिख दिया गया। इसके बाद जिन अधिकांश मुसलमानों ने अपना देश छोड़कर नवनिर्मित पाकिस्तान जाने से इंकार किया,महात्मा गाँधी उन्हें भारत का पहले जैसा ही सम्मानित नागरिक स्वीकार किये जाने के पक्षधर थे। विचारधारा के इसी टकराव की परिणिति गाँधी जी की हत्या के रूप में हुई। पूरे विश्व ने गाँधी की हत्या की घोर निंदा की। पूरा विश्व आज तक गाँधी की उदारवादी नीतियों का समर्थक है। दुनिया के अनेक देशों में स्थापित गाँधी जी की विशाल प्रतिमाएं इस बात का प्रमाण हैं कि गाँधी केवल भारतवासियों ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लोगों के दिलों पर राज करते थे और आज भी करते हैं।

 गाँधी जी की इस अंतर्राष्ट्रीय लोकप्रियता व उनकी उदारवादी नीतियों की विश्वस्तरीय स्वीकार्यता के बावजूद नाथूराम गोडसे नाम के एक आतताई ने 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली स्थित बिड़ला हाउस में महात्मा गाँधी की हत्या कर डाली। हत्यारे नाथू राम गोडसे की शिक्षा व उसके संस्कार ने उसे संकीर्ण हिंदूवादी सोच सिखाई थी। यह सोच मुसलमानों से नफ़रत करने वाली तथा देश को हिन्दूराष्ट्र बनाने वाली सोच थी। गोडसे ने गाँधी जी की छाती में गोलियां दाग़ कर यह सन्देश दे दिया था कि भले ही गाँधी पूरी दुनिया में लोकप्रिय हों,या उनकी उदारवादी नीतियां वैश्विक स्तर पर स्वीकार्य हों परन्तु कट्टर हिन्दूवादी मानसिकता रखने वालों की नज़रों में गाँधी क़ुसूरवार थे,क्योंकि वे भारतीय मुसलमानों के सम्मानित तरीक़े से भारत में ही रहने के पक्षधर थे। ज़ाहिर है यह संकीर्ण व हिंदूवादी विचारधारा दिन प्रतिदिन और अधिक प्रसारित होती गयी। इस विचारधारा ने पूरे भारत में सैकड़ों सामाजिक व राजनैतिक संगठनों के रूप में अपना जनाधार बढ़ा लिया। और आज की स्थिति पूरे देश व दुनिया के सामने है। आज यह स्थिति इतनी विकराल हो चुकी है कि गाँधी का विरोध करने वाले गाँधी समर्थकों पर हावी होने लगे हैं। कहीं नाथू राम गोडसे की प्रतिमा स्थापित हो रही है तो कहीं गाँधी का पुतला बनाकर उसपर गोलिया दाग़ी जा रही हैं और साफ़ तौर पर यह सन्देश दिया जाने लगा है कि गांधी के हत्यारे व वैसी मानसिकता रखने वाले लोग आज भी ज़िंदा हैं। जगह जगह संकीर्ण सोच रखने वाले गोडसेवादियों द्वारा गाँधी जी के विचारों के विरोध में तथा हत्यारे गोडसे के समर्थन में सेमिनार व गोष्ठियां आयोजित की जा रही हैं।

 इंतेहा तो यह है कि गोडसे के महिमांडन का ज़िम्मा अब अनेक सांसदों व विधायकों ने ले रखा है। ऐसी ही एक सांसद प्रज्ञा ठाकुर हैं जो स्वयं कई बड़े आपराधिक मामलों में लम्बे समय तक जेल में रह चुकी हैं और अभी भी उनपर मुक़द्द्मे विचाराधीन हैं। स्वयं को साध्वी बताने वाली प्रज्ञा ठाकुर नाम की इस सांसद को भी बचपन से ही मुस्लिम विरोधी,गांधी विरोधी तथा कट्टर हिंदूवादी संस्कार हासिल हैं। वे सड़क से लेकर संसद तक अपने बयानों में गाँधी जी के हत्यारे गोडसे को राष्ट्रभक्त बता चुकी हैं। यह बात और है कि उन्होंने पार्टी दबाव में आकर बार बार अपने इस प्रकार के विवादित बयान के लिए 'औपचारक खेद' भी व्यक्त किया। प्रज्ञा ठाकुर ने जब सबसे पहले गोडसे को देशभक्त बताया था उस के बाद प्रधानमंत्री ने हालांकि यह कहा था कि साध्वी प्रज्ञा ने महात्मा गांधी और नाथूराम गोडसे को लेकर जो भी बातें कही हैं, वो बातें पूरी तरह से आलोचना के लायक़ हैं। 'सभ्य समाज में इस प्रकार की बातें नहीं चलती हैं। उन्होंने माफ़ी मांग ली है, लेकिन मैं अपने मन से उन्हें कभी माफ़ नहीं कर पाऊंगा'। परन्तु निश्चित रूप से देश यह भी ज़रूर जानना चाहेगा कि जब प्रज्ञा ठाकुर ने प्रधानमंत्री की नज़रों में अक्षम्य अपराध किया था फिर आख़िर उसे रक्षा मंत्रालय की उस संसदीय सलाहकार समिति में बतौर सदस्य क्यों शामिल किया गया जिसके अध्यक्ष रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह हैं ? और उसपर मालेगांव बम धमाकों में शामिल होने का भी आरोप है? ग़ौर तलाब है कि रक्षा मंत्रालय की इस संसदीय सलाहकार समिति में कुल 21 सदस्य हैं। इस समिति की सदस्या होते हुए भी प्रज्ञा ने लोकसभा में हत्यारे गोडसे को देशभक्त बता डाला। परन्तु इसबार उनको सरकार ने उनके ऐसे विवादित बयानों के चलते रक्षा मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति से हटा दिया। ऐसा कर सरकार ने यह सन्देश देने की कोशिश की है कि देश हत्यारे गोडसे के साथ नहीं बल्कि गाँधी के साथ खड़ा है।

गोडसे के हत्यारे का महिमांडन करने वाली प्रज्ञा ठाकुर के विरुद्ध की गयी कारवाई सांकेतिक कार्रवाई तो ज़रूर है परन्तु दरअसल गाँधी विरोध एवं गोडसे महिमामंडन की जड़ें सांस्कारिक शिक्षाओं में छुपी हैं। बड़ी आसानी से देश में इनलोगों को पहचाना जा सकता है जो अलग अलग क़िस्म के मुखावरण धारण कर कभी भारतीय मुसलमानों से अपनी संस्कारित नफ़रत का इज़हार करते हैं तो कभी गाँधी जी की उदारवादी व सत्य अहिंसा की नीतियों का विरोध करते हैं। कभी यही शक्तियां हिन्दूराष्ट्र  की बात करती हैं तो कभी देश के उन स्मारकों को या उनके नाम मिटाने की कोशिश करती हैं जो मुस्लिम नामों या शासकों से जुड़े हुए हैं। इन शक्तियों को सर्वधर्म समभाव व अनेकता में एकता जैसे राष्ट्र को जोड़ने व विकसित करने वाले सूत्र रास नहीं आते। वैचारिक रूप से संचालित ऐसे ही शिक्षण संस्थाओं में गाँधी विरोध व गोडसे महिमामंडान के संस्कार बचपन से ही परोसे जाते हैं। लिहाज़ा यह सोचना ग़लत होगा कि गोडसे का महिमामंडन या उस हत्यारे को राष्ट्रभक्त बताने वाले चंद लोगों मात्र हैं। बल्कि यह मान लिया जाना चाहिए कि गोडसे प्रेम एक संस्कारित विषय है और जिन लोगों को भी यह संस्कार मिले हैं  वे  हत्यारे व देश के इस पहले आतंकवादी का महिमामंडन करते रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे।

-तनवीर जाफ़री