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मुफ़्त की 'लोक लुभावन रेवड़ियां' बांटने से ज़रूरी है 'मुफ़्त शिक्षा'

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Nov 24, 2019

 देश का प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान, दिल्ली का जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, इन दिनों एक बार फिर चर्चा में है। दिल्ली की सड़कों पर आए दिन जे एन यू के छात्रों द्वारा अनेक छोटे बड़े धरने प्रदर्शन किये जा रहे हैं। इस बार छात्रों में आए उबाल का कारण है विश्वविद्यालय के छात्रावास नियमों में किया जाने वाला बदलाव तथा छात्रावास की फ़ीस में की गयी बेतहाशा वृद्धि । हालांकि इस विषय पर विश्वविद्यालय प्रशासन का यह कहना है कि चूँकि पिछले 14 वर्षों से छात्रावास  शुल्क के ढांचे में कोई बदलाव नहीं किया गया था इसलिए इतने लम्बे समय के बाद इसमें संशोधन किया जाना ज़रूरी हो गया था। विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा घोषित किये गए नए नियमों के अनुसार  छात्रावास की फ़ीस में भारी भरकम बदलाव किया गया है। इसके अंतर्गत छात्रावास के डबल सीटर कमरे का किराया जो पहले केवल 10 रुपये था उसे बढ़ा कर 300 रुपये प्रति माह किया गया। अर्थात इसमें अचानक 30 गुणा की वृद्धि कर दी गयी है।  इसी तरह छात्रावास के एकल (सिंगल) सीटर कमरे का किराया 20 रुपये से 30 गुणा बढ़ाकर 600 रुपये कर दिया गया है। इसी तरह एक बार एकमुश्त जमा की जाने वाली वन टाइम मेस सिक्यूरिटी फ़ीस 5500 रुपये से बढ़ा कर 12000 रुपये कर दी गयी थी। ख़बरों के अनुसार छात्रों के आंदोलन के दबाव में आकर इसे पुनः 12000 से घटाकर 5500 कर दिया गया है। वैसे भी यह रक़म किसी भी छात्र के छात्रावास छोड़ने के समय उसे वापस कर दी जाती है। अन्य नियम जो प्रशासन द्वारा लागू किये गए हैं उनके तहत छात्रावास में रहने वाले छात्रों को ज़्यादा से ज़्यादा रात11.30 बजे के बाद अपने हॉस्टल के भीतर रहना होगा इसके बाद वे बाहर नहीं निकल सकेंगे। कोई छात्र या छात्रा अपने छात्रावास के अलावा किसी अन्य  छात्रावास या कैंपस में किसी अन्य जगह पाया जाता है तो उसे छात्रावास से निष्कासित कर दिया जाएगा। इस पर छात्रों का कहना है कि पुस्तकालय में बैठने के लिए अथवा किताबों अथवा नोट्स के आदान प्रदान के लिए या फिर परीक्षा की तैयारी हेतु उन्हें कैम्पस में किसी भी समय निकलना पड़ता है। इसके अतिरिक्त  छात्रावास के नए नियमों  में छात्रों को डाइनिंग हॉल में ''उचित कपड़े'' पहन कर आने का निर्देश भी दिया गया है। इस विषय पर छात्रों का सवाल है कि 'उचित कपड़े' की आख़िर परिभाषा क्या है और कौन से लिबास उचित हैं कौन से अनुचित इसका निर्धारण कौन करेगा। इसके अतिरिक्त भी विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रावास में रह रहे छात्र-छात्राओं से छात्रावास के रखरखाव के लिए 1700 रुपये की फ़ीस प्रति माह वसूलने  का फ़ैसला भी लिया है। छात्रों में इस नए नियम को लेकर सबसे अधिक नाराज़गी है। इससे पहले विश्वविद्यालय में पानी, बिजली, रख-रखाव अथवा  सफ़ाई के नाम पर छात्रों से कोई पैसे वसूले नहीं जाते थे। छात्रों का कहना है कि ग़रीब परिवारों से आने वाले छात्र प्रति माह 1700 रूपये जैसी भारी भरकम रक़म हरगिज़ नहीं दे सकते। 

                                  जे एन यू छात्र संघ द्वारा छात्रावास की फ़ीस बढ़ोत्तरी के इस नए नियमों  को वापस लिए जाने की मांग को लेकर आंदोलन किया जा रहा है। अनेक  छात्र-छात्राओं का कहना है यह 'काला-ड्राफ़्ट' न केवल छात्रों के मौलिक अधिकारों का हनन है बल्कि यदि बढ़ाई गयी यह फ़ीस की नई रक़म घटाई नहीं जाती तो वे पढ़ाई छोड़ने तक के लिए मजबूर हो सकते हैं। जे एन यू में लगभग 20 दिनों से चल रहे इस आंदोलन में पुलिस भी अपनी दमनकारी नीति अपना चुकी है। कई लहूलुहान छात्रों के चित्र सोशल मीडिया पर वॉयरल होते देखे गए। जे एन यू में फ़ीस बढ़ोत्तरी के विरुद्ध छात्रों के आंदोलनरत होने का एक कारण यह भी है कि यहाँ ग़रीब परिवारों के लगभग 40 प्रतिशत छात्र-छात्राएं दाख़िला लेते हैं और वे बढ़े हुए नए शुल्क को दे पाने में स्वयं को असमर्थ महसूस कर रहे हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि देश की जो सरकारें अथवा राजनैतिक दल शिक्षा हासिल करने को हर भारतीय नागरिक का मौलिक अधिकार बताने की दुहाईयाँ दिया करते थे वही आज शिक्षा को इतना मंहगा बनाने पर क्यों तुले हुए हैं? ख़ासतौर पर प्रायः जे एन यू ही सरकार के निशाने पर क्यों रहती है। जे एन यू का चरित्र हनन किये जाने का प्रयास प्रायः दक्षिणपंथी शक्तियों द्वारा किया जाता रहा है। वर्ष 2016 में जब यहाँ के छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को देशद्रोह के झूठे मामले में गिरफ़्तार किया गया था उस समय भी जे एन यू के कई 'पारम्परिक अशिक्षित विरोधियों' द्वारा कैम्पस को बदनाम करने के उद्देश्य से  उपयोग में लाए गए निरोध से लेकर बकरे व मुर्ग़े की चबाई गयी हड्डियां,बियर व शराब की बोतलें,अधिया व पौव्वे तथा सिगरेट व बीड़ी के जले हुए टोटे तक की गिनती एक विधायक द्वारा बताई गयी थी। बुरी नज़र से कैम्पस को देखने वाले इन पूर्वाग्रही लोगों ने यह सब तो गिनकर मीडिया को ज़रूर बताया था परन्तु उन्होंने यह नहीं बताया कि यह विश्वविद्यालय देश को कितने भारत रत्न,कितने नोबल पुरस्कार विजेता,कितने आई ए एस टॉपर,कितने मंत्री व उच्चाधिकारी तथा कितने न्यायाधीश आदि दे चुका है?

                                   निश्चित रूप से देश का यह सर्वप्रतिष्ठित विश्व विद्यालय देश के कर दाताओं के पैसों से चलता है। इसकी सब्सिडी का भुगतान भी देश करता है। परन्तु देश का यह पैसा यदि ग़रीब या मध्यम परिवारों से आने वाले छात्रों की शिक्षा पर लगे तो उसमें क्या हर्ज है? क्या सरदार पटेल की मूर्ति पर 500 करोड़ रूपये से अधिक की जनता की रक़म ख़र्च करना ज़्यादा  ज़रूरी है ? आज देश के सैकड़ों शहरों में अनेक निर्माण कार्य ऐसे हो रहे हैं जो बिल्कुल ग़ैर ज़रूरी हैं परन्तु लोकलुभावन ज़रूर हैं। उदाहरण के तौर पर कहीं बने  बनाए घंटाघर को तोड़ कर नए डिज़ाइन का स्मारक या प्रतीक बनाया जा रहा है। कहीं पार्क या तालाबों का पुनर्निर्माण किया जा रहा है। पार्कों व तालाबों जैसे सार्वजनिक स्थलों पर मंहगे पत्थर लगवाए जा रहे हैं तथा उन्हें मंहगी डिज़ाइन से आकार दिया जा रहा है। इस प्रकार के निर्माण के पीछे बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हो रहा है। गुजरात के मुख्यमंत्री महोदय अपने लिए नया विमान ले रहे हैं तो प्रधानमंत्री के लिए नई अत्याधुनिक कार ली जा रही है। देश को बुलेट ट्रेन के सपने दिखाए जा रहे हैं।अयोध्या के दीपोत्सव और कांवड़ियों पर पुष्प वर्षा,हरियाणा में प्रत्येक वर्ष होने वाला गीता महोत्सव जैसे अनेक आयोजनों पर जनता के हज़ारों करोड़ रूपये ख़र्च किये जा सकते हैं परन्तु उस शिक्षा के लिए पैसे क्यों नहीं ख़र्च किये जा सकते या सरकार उस शिक्षा पर सब्सिडी क्यों नहीं दे सकती जिस शिक्षा से न केवल एक पूरे का पूरा परिवार आत्मनिर्भर व शिक्षित बनता है बल्कि देश भी शिक्षित होता है और आगे बढ़ता है? अतः देश की सरकारों को सबसे अधिक धन शिक्षा व स्वास्थ पर ही ख़र्च करना चाहिए न कि लोकलुभावन रेवड़ियां बांटने अथवा धर्म या रक्षा से संबंधित ज़रूरतों पर। यदि कोई भी सरकार शिक्षा को किसी भी रूप से मंहगा या ग़रीबों की पहुँच से बाहर करने का प्रयास करती है इसका सीधा सा मतलब यही है कि यह देश के ग़रीब तबक़े के लोगों को शिक्षा से दूर रखने की बड़ी साज़िश है। और यह भी कि राजनैतिक लोग स्वयं को शिक्षित समाज से ही सबसे अधिक भयभीत महसूस करते  हैं।

- तनवीर जाफ़री