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हम तुम्हें यूं भूला न पायेंगे

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Jul 31, 2019

आज मोहम्मद रफी की पुण्यतिथि है। दुनिया उन्हें रफ़ी साहब के नाम से बुलाती है, हिन्दी सिनेमा के श्रेष्ठतम पार्श्व गायकों में से एक थे। अपनी आवाज की मधुरता और परास की अधिकता के लिए इन्होंने अपने समकालीन गायकों के बीच अलग पहचान बनाई। इन्हें शहंशाह-ए-तरन्नुम भी कहा जाता था। मोहम्मद रफ़ी एक बहुत ही समर्पित मुस्लिम, व्यसनों से दूर रहने वाले तथा शर्मीले स्वभाव के आदमी थे। आजादी के समय विभाजन के दौरान उन्होने भारत में रहना पसन्द किया। उन्होंने बेगम विक़लिस से शादी की और उनकी सात संतान हुईं-चार बेटे तथा तीन बेटियां।

महज 13 साल की उम्र में ही उन्होंने अपनी पहली परफॉर्मेंस दी

आवाज के जादूगर लिजेंडरी सिंगर मोहम्मद रफी के गाने सुनकर आज भी लोग भावुक हो जाते हैं और मन को इसे काफी शांति भी मिलती है। रफ़ी ने हिंदी सिनेमा को कई यादगार गाने दिए हैं। रफी आज ही के दिन इस दुनिया को अलविदा कह गए थे। जहां चाह है वहीं पर तो राह है। रफी पर ये लाइनें बिलकुल सटीक बैठती हैं। किसी प्रोफेशनल गुरु को चुनने की बजाय रफी ने गांव के फकीर की नकल कर गाना सीखा था और महज 13 साल की उम्र में ही उन्होंने अपनी पहली परफॉर्मेंस दे दी थीं और फिर इसके बाद उन्होंने उस्ताद अब्दुल वहीद खां, पंडित जीवन लाल मट्टू और फिरोज निजामी से शास्त्रीय संगीत का ज्ञान लिया था। रफी ने असमी, कोंकणी, पंजाबी, उड़िया, मराठी, बंगाली, भोजपुरी के साथ-साथ उन्होंने पारसी, डच, स्पेनिश और इंग्लिश भाषा में भी गाने गाए थे।

'बाबुल की दुआएं लेती जा' के लिए जीता नेशनल अवॉर्ड

मोहम्मद ने किशोर कुमार की फिल्मों के लिए भी गीत गाये हैं जिनमें फिल्म 'बड़े सरकार', 'रागिनी' और कई फिल्‍में शामिल है। रफी द्वारा किशोर कुमार के लिए करीब 11 गाने गाए गए हैं। फिल्म 'नील कमल' का गाना 'बाबुल की दुआएं लेती जा' को गाते वक्‍त बार-बार रफी की आंखों में आंसू आ जाते थे और ख़ास बात यह है कि रफ़ी को इस गीत के लिए 'नेशनल अवॉर्ड' मिला था। वहीं उन्हें अपने काम के लिए 6 फिल्मफेयर, 1 नेशनल अवार्ड और भारत सरकार द्वारा 'पद्म श्री' सम्मान से भी सम्मानित किया गया था।