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एकल परदे वाले सिनेमाघर गिन रहे अपनी अंतिम सांसे, पढिए पूरी खबर!

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Feb 12, 2018

आजकल देश में मल्टीप्लेक्स का कब्जा इस कदर बरकरार है कि एकल परदे की जगह अब मल्टीप्लेक्स ने ले ली है। एकल परदे वाले सिनेमाघरों का ट्रेंड लगभग खत्म ही हो गया है। और मल्टीप्लेक्स के चलते एकल परदे घाटे के बढ़ते बोझ के तले दबते जा रहे है। और लम्बे समय तक चलने वाली सुपरहिट फिल्मों के अभाव के कारण ऐसे अधिकांश सिनेमाघर अपने खत्म होने की कगार तक पहुंच गया है।

आपको बता दें कि शहरी क्षेत्रों में जमीनों के दामों में बड़े इजाफे से एकल परदे वाले सिनेमाघर बंद किये जा रहे हैं और इनके स्थान पर बहुमंजिला इमारतें तथा शॉपिंग मॉल खड़े किये जा रहे हैं। फिल्म उद्योग की प्रमुख संस्था फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष जयप्रकाश चौकसे ने बताया, कुछ साल पहले देश भर में एकल परदे वाले करीब 12,000 सिनेमाघर थे। लेकिन अब इनकी तादाद घटकर 8,000 के आस-पास रह गयी है।

मशहूर फिल्म समीक्षक ने एकल परदे वाले सिनेमाघरों के बंद होने की एक और वजह गिनाते हुए कहा, मुझे लगता है कि खासकर हिन्दी फिल्म उद्योग इन दिनों ऐसे मनोरंजक शाहकार नहीं बना पा रहा है जो सभी वर्गों के दर्शकों को हर स्थान पर आकर्षित कर सकें। एकल परदे वाले सिनेमाघरों को चलाने के लिये लम्बे समय तक चलने वाली सुपरहिट फिल्में जरूरी हैं।उन्होंने कहा, मल्टीप्लेक्स के मालिकों की असली कमाई टिकट काउंटर से नहीं, बल्कि फूड काउंटरों से हो रही है। चौकसे ने मांग की कि एकल परदे वाले सिनेमाघरों को बचाने के लिये सरकार को इन्हें मनोरंजन कर और अन्य करों में बड़ी राहत देनी चाहिये।

इसके साथ ही, नियमों को आसान बनाते हुए ऐसे नये सिनेमाघरों के निर्माण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि बढ़ते घाटे के कारण एकल परदे वाले सिनेमाघरों के बंद होने से हर साल बड़ी तादाद में रोजगार खत्म हो रहे हैं।  इसके साथ ही, गरीब तबके के लोगों से मनोरंजन का सस्ता साधन छिन रहा है। चौकसे का मानना है कि दक्षिण भारत के मुकाबले उत्तर भारत में एकल परदे वाले सिनेमाघर ज्यादा दुश्वारियों का सामना कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि देश में एकल परदे वाले जो 8,000 सिनेमाघर बचे हैं, उनमें से करीब 5,000 दक्षिण भारत में हैं। तमिलनाडु और दक्षिण भारत के अन्य राज्यों की सरकारों ने इन सिनेमाघरों को बचाने में ज्यादा दिलचस्पी दिखायी है।