Loading...
अभी-अभी:

एप्को परिसर में हुई मिट्टी के गणेश प्रशिक्षण की शुरूआत

image

Aug 2, 2017

भोपाल : पीओपी से बनी मूर्तियों और उन पर किये गये रंग के दुष्प्रभाव से विसर्जन स्थल का जल भी विषाक्त हो जाता है। इस जल के उपयोग से लोगों को किडनी और फेफड़ों की बीमारी होने की संभावना बनी रहती है। पीओपी मूर्ति लम्बे समय तक जल में नहीं घुलती जिससे देवी-देवता की अवमानना भी होती है। यह जानकारी आज पर्यावरण नियोजन एवं समन्वय संगठन द्वारा एप्को सभागार में हुए संभाग स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में दी गई। कार्यक्रम में मास्टर ट्रेनर्स, मूर्तिकार, भोपाल के विभिन्न स्कूलों के छात्र-छात्राओं और अध्यापकों ने भाग लिया।

प्रमुख सचिव अनुपम राजन ने बताया कि एप्को द्वारा आज भोपाल सहित जबलपुर, इंदौर, उज्जैन और रीवा संभाग में मूर्ति प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये गये। इनमें मिट्टी तथा प्राकृतिक रंगों का उपयोग कर छोटे आकार की गणेश प्रतिमा बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। 'आओ बनाओ और घर ले जाओ' की अवधारणा पर बनाई गई यह मूर्तियाँ प्रतिभागियों को नि:शुल्क दी गई। भोपाल में गत वर्ष एप्को द्वारा लगभग 6000 मूर्तियाँ बनवाई गईं थीं। इससे विसर्जन के बाद अन्य वर्षों की अपेक्षा जल में विषाक्तता की कमी पाई गई थी।

कार्यक्रम में प्रतिभागियों को मूर्ति बनाने के पहले मिट्टी तैयार करने की कला भी सिखाई गई। प्रशिक्षणार्थियों को बताया गया कि काली मिट्टी में छनी हुई राख, ईट का चूरा या रेत मिला सकते हैं। इससे मूर्ति चटकेगी नहीं। रेतीली मिट्टी में गोंद-आटा आदि मिलाने की सलाह दी गई। रासायनिक रंगों के स्थान पर लाल रंग के लिये गेरू, सफेद के लिए चावल-खड़िया, पीले के लिए पीली मिट्टी, रामसरस आदि से बने प्राकृतिक रंगों को इस्तेमाल करने की सलाह दी।