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जमानत में आधार कार्ड को योग्य प्रतिभूति मानने केंद्रीय सरकार हुई गंभीर

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Oct 30, 2017

इंदौर : मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय खंडपीठ इंदौर के शासकीय अधिवक्ता एवं विधि व्याख्याता पंकज वाधवानी द्वारा हाल ही में जमानत में आधार कार्ड को योग्य प्रतिभूति व दस्तावेज मानते हुए कम गंभीर अपराधों में आरोपियों को रिहा किए जाने संबंधी सुझाव को केंद्रीय सरकार ने गंभीरता से लिया है।

न्याय विभाग ने केंद्रीय गृह मंत्रालय एवं विधि आयोग को इस संबंध में आवश्यक कार्यवाई के निर्देश जारी करते हुए पत्र लिखे हैं।  पिछले दिनों शासकीय अभिवक्ता वाधवानी ने प्रेषित सुझावों में कहा गया था कि विश्व के सभी राष्ट्रों की विधि में व्यक्ति की दैहिक स्वतंत्रता को अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, किंतु व्यवहारिक रूप से यह देखा जा रहा है कि हमारे देश में पुलिस एवं अधीनस्थ न्यायालयों में इस अधिकार के प्रति कितनी उदासीनता एवं कड़ी औपचारिकताएं व्याप्त है, विशेष रुप से उन मामलों में जहां की आर्थिक रुप से विपन्न एवं गरीब आरोपियों जिनके जमानत के आदेश हो जाने के उपरांत भी सक्षम प्रतिभूति अथवा अचल संपत्ति के अभाव में जमानत देने में अक्षम होने से उन्हें हिरासत में रहना पड़ता है। 

प्रेषित पत्र में वकील  के मुताबिक वर्तमान आपराधिक जमानत संबंधित व्यवहारिक कानूनी व्यवस्था के चलते आर्थिक रुप से सक्षम व्यक्तियों की शीघ्र जमानत हो जाने से और आर्थिक रुप से विपन्न व गरीबों की जमानत संबंधी व्यवस्था से देश के आपराधिक कानून के प्रति गरीब तबके के लोगों में अविश्वास की भावना उत्पन्न होने लगी है, जो देश के लिए अत्यंत हानिकारक स्थिति है। इसमें सुधार की आवश्यकता है। 

वहीं विधि का सामान्य सिद्धांत है कि "बेल एक नियम है और जेल अपवाद" किंतु यह सिद्धांत आर्थिक रुप से संपन्न एवं शक्तिशाली वर्ग के लिए कार्य कर रहा है। वहीं गरीब एवं आर्थिक रुप से कमजोर लोगों के लिए एक अलग कानून व्यवस्था का जन्म हो गया है।

जिसमें योग्य प्रतिभूति अथवा जमानत के लिए आवश्यक अचल संपत्ति दस्तावेजों के अभाव में अपराध में विचारण के दौरान ही निर्दोष एवं दोषमुक्त होने वाले व्यक्ति को भी जेल में रहना पड़ता है। जमानत लेने का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि आरोपी की उपस्थिति को विचारण के दौरान सुनिश्चित करना और यही कार्य आधार कार्ड के जरिए बखूबी हो सकता है। 

आर्थिक अपराध, सामाजिक, राज्य के विरुद्ध अपराध, दिव्यांगों, बालक व महिलाओं संबंधित अपराध वह अन्य गंभीर अपराधों को छोड़कर सामान्य अपराधों में प्रथम दृष्टया साक्ष उपलब्ध न होने पर विचारण के आरोपियों को जमानत हेतु अधिक औपचारिकताओं एवं दस्तावेजों के नियमों में शिथिलता किए जाने की अत्यंत आवश्यकता है।

जहां एक ओर आधार कार्ड को अत्यंत ही महत्वपूर्ण दस्तावेज माना जा रहा है। जिसमें बायोमेट्रिक निशानों के जरिए किसी भी व्यक्ति की पहचान एवं उसकी अवस्था पता लगाई जा सकती है। ऐसे में क्यों न आर्थिक रुप से विपन्न एवं गरीब आरोपियों की जमानत हेतु आधार कार्ड को महत्वपूर्ण दस्तावेज मानकर जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए। 

यह सही है कि व्यक्ति की स्वतंत्रता एवं सामाजिक हित की रक्षा में एक उचित संतुलन बनाए रखना आवश्यक है, किन्तु सामाजिक सुरक्षा के नाम पर व्यक्ति की स्वतंत्रता का अतिक्रमण करना सीधे-सीधे मानव अधिकारों का उल्लंघन है। 

वर्तमान में जेलों में बंद कैदियों का 67 प्रतिशत विचारित (अंडर ट्रायल) होने वाले आरोपी हैं। ऐसी दशा में कम गंभीर अपराधों के तहत जेलों में बंद कैदियों के लिए ऐसा संशोधन किया जाना न सिर्फ न्याय हित में होगा, बल्कि जेलों में बढ़ती अनावश्यक भीड़ का दबाव भी कम होगा व समाज हित में भी होगा।

इस प्रकार के संशोधन से लाखों निरपराधी व विचारण के दौरान हिरासत में रह रहे आरोपियों के मौलिक अधिकारों की रक्षा हो सकेगी। हमारी न्याय व्यवस्था का आधार "सौ अपराधी छूट जाए किंतु एक निरपराधी को सजा न हो" के सिद्धांत का पालन भी हो सकेगा।