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छिंदवाड़ाः दिव्यांग बेटियों ने सामान्य बच्चों के साथ पढ़कर प्रथम श्रेणी में किया दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण

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May 17, 2019

ललित साहू- कहते हैं जो अपनी मदद करता है, उसकी मदद फिर ऊपर वाला जरूर करता है। एक तरफ जहां सुख सुविधा से संपन्न बच्चे कोचिंग करने के बावजूद पढ़ाई में मन नहीं लगा पाते हैं, वहीं दूसरी तरफ शारीरिक कमजोरियों के बावजूद ये लड़कियां इतना कमाल कर गईं कि हैरत होती है। जब मन में कुछ करने का जज्बा हो तो कोई भी दीवार किसी को रोक नहीं सकती। यह चरितार्थ करने का प्रयास छिंदवाड़ा की बेटियों ने किया है। ये ऐसी बेटियां हैं, जिनमें से कोई सुन नहीं सकती, तो कुछ बोल नहीं सकती, कुछ के साथ तो यह स्थिति है कि वह बोल भी नहीं सकती और सुन भी नहीं सकती। अपनी बेटियों को हिम्मत उनके परिवार वालों ने, विशेषकर माताओं ने दी।

शिक्षिकाओं और अभिभावकों का भरपूर सहयोग मिला

दिव्यांग छात्रावास में पढ़ने वाली दसवीं कक्षा की 7 छात्राएं, जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन के दम पर प्रथम श्रेणी में परीक्षा उत्तीर्ण की। विशेष बात यह कि यह सारी बच्चियां सामान्य बच्चों के साथ पढ़ाई करती रही हैं। छात्रावास में रहते हुए उनकी शिक्षिकाओं ने और शाला में पढ़ाने वाली शिक्षकों ने जो मेहनत और लगन की है, उनके कारण इन्होंने कक्षा 10वीं के परिणाम में सफलता प्राप्त की। इनके अभिभावकों के साथ-साथ इनकी शिक्षिकाओं की मेहनत भी इन बेटियों के साथ जुड़ी रही। एन बेटियों ने अपना ही नहीं बल्कि अपने माता-पिता, अपने शिक्षक, अपने स्कूल और अपने क्षेत्र का नाम भी रोशन किया है।

आगे की पढ़ाई करना चाहती हैं ये बेटियां

इन बच्चियों को दुख इस बात का है कि दिव्यांग  उनके आड़े तो नहीं आती है, मगर जिस छात्रावास में रहकर भी पढ़ रही थीं, वहां पर कक्षा दसवीं के बाद पढ़ने के लिए प्रशासन द्वारा कोई व्यवस्था नहीं है। राज्य शासन ने भी इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया। एक बच्ची तो ऐसी है जिसकी मां मजदूरी कर कर जैसे-तैसे उसे पढ़ा रही थी। अब उसे छिंदवाड़ा से बाहर भेजना उनके लिए परेशानी का कारण बन सकता है। उनकी हिम्मत उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही है।

राजनेताओं ने और प्रशासनिक अधिकारियों से सहयोग की अपेक्षा

केंद्र सरकार की योजना जिसमें दिव्यांग बच्चों को लेकर छात्रावास बनाया जा सकता था, राजनेताओं ने और प्रशासनिक अधिकारियों की नजरअंदाज के कारण यह  छात्रावास नहीं बन पाया। अगर यह बन जाता तो शायद यह बच्चियां आज जिले में रहकर ही अपनी पढ़ाई कर लेती और परिवार के लोगों को इनकी कोई चिंता भी ना होती। जिस तरीके का माहौल बच्चियों को लेकर बना है, डरती हैं, लेकिन फिर भी उनकी हिम्मत भोपाल से जबलपुर पढ़ाने के लिए भेजने को तैयार है। मुख्यमंत्री से भी इन की उम्मीद है कि कक्षा बारहवीं के साथ-साथ उच्च शिक्षा के लिए भी इनकी पढ़ाई की व्यवस्था अगर कर दी जाए तो वह भी किसी सामान्य बच्चे से कम नहीं होगी।