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बैतूलः अज्ञात बीमारी से ग्रस्त एक ही परिवार के पांच युवा बच्चे तिल-तिल करके जीने को मजबूर

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May 17, 2019

युवराज गौर- कभी कभी समाज और सिस्टम कितना संवेदनहीन हो सकता है इसकी एक बानगी है जुगल विश्वकर्मा का तिल-तिल करके जीता ये परिवार। बैतूल में जुगल विश्वकर्मा का ऐसा परिवार है जो बड़े ही दर्दनाक तरीके से धीरे-धीरे मौत के मुंह मे जा रहा है। उस पर समाज द्वारा की गई उनकी उपेक्षा को देखकर रूह कांप उठती है। इस परिवार की मुखिया एक माँ है, जिसने किसी अज्ञात बीमारी के चलते अपने पति को 15 साल पहले खो दिया था, लेकिन सात साल पहले उसी अज्ञात बीमारी की चपेट में उसके अच्छे खासे नौजवान पांच बच्चे भी आ गए। जिनमें दो शादीशुदा बेटियां भी हैं और बीमारी के चलते उन्हें ससुराल वालों ने मायके में लाकर छोड़ दिया। इस अज्ञात बीमारी से घर के पांच सदस्य 18 साल की उम्र में ही कुपोषित होकर पूरी तरह दिव्यांग हो रहे हैं। अब ये बूढ़ी मां मज़दूरी करके किसी तरह अपने पांचों बीमार बच्चों का पेट भरती है। अब तक गांव की पंचायत, जनप्रतिनिधियों और प्रशासन की तरफ से इन्हें कोई मदद नहीं मिल सकी है।

15 साल पहले पति की इसी अज्ञात बीमारी से हुई मौत

घोड़ाडोंगरी विधानसभा क्षेत्र के पलासपानी गाँव में जुगल विश्वकर्मा का परिवार रहता है। 15 साल पहले जुगल की एक अज्ञात बीमारी से मौत हो गई। जुगल की पत्नी पर पांच जवान बच्चों की ज़िम्मेदारी आ गई, लेकिन इसके बाद जो हुआ वो बेहद दर्दनाक है। परिवार के पांच बच्चे भी एक-एक कर भरी जवानी में पिता की तरह उसी अज्ञात बीमारी की चपेट में आते गए। आज हालात ये है कि 18 से 25 साल उम्र के युवा बच्चे पूरी तरह से कुपोषित हो चुके हैं और इनका पूरा शरीर अकड़ गया है। इनका केवल एक ही सहारा है और वो है इनकी बूढ़ी माँ।

15 साल से संघर्ष कर रहा परिवार, किसी ने भी प्रशासन को सूचित नहीं किया

मल्लो बाई के पांच बच्चों में 4 बेटियाँ और एक बेटा इस बीमारी से पीड़ित हैं। दो बड़ी बेटियों को शादी के बाद ये अज्ञात बीमारी हुई, तो ससुराल वालों ने उन्हें मायके लाकर छोड़ दिया और दोबारा उन्हें देखने कभी नहीं आए। मदद के नाम पर इस परिवार को कहीं से कुछ नहीं मिलता। सबसे शर्मनाक बात ये है कि ये परिवार पिछले 15 साल से संघर्ष कर रहा है, लेकिन गाँव के सरपंच सचिव, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, किसी ने भी प्रशासन को इनकी बिगड़ती हालत को लेकर सूचित नहीं किया। जिससे आज तक इन्हें कोई मदद नहीं मिली। बीमार सदस्यों को विकलांग पेंशन नहीं मिलती। अपने 5 बच्चों का पेट भरने के लिए बूढ़ी मल्लो बाई एमडीएम का भोजन बनाकर 1000 या 1200 रुपए में गुज़ारा कर रही है। ग्रामीण अब इनके परिवार के लिए मदद मांगने आगे आ रहे हैं। अब देखना ये होगा कि प्रशासन और समाज मामला उजागर होने के बाद इनकी क्या मदद कर पाता है ।