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बारहवी शताब्दी से चली आ रही परंपरा को निभा रहे लोग, किन्नर नृत्य के साथ निकाली जाती है माता की पालकी

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Feb 21, 2019

दिनेश शर्मा - जहां राजा भृतहरि व गुरु गोरक्षनाथ ने की तपस्या उसी प्रसिद्द धार्मिक  शक्ति पीठ बीजासन के दरबार भैंसवा माताजी में आज पूर्णिमा के अवसर पर  माता की पालकी निकाली गई प्राप्त जानकारी अनुसार  बसन्त पंचमी से प्रारम्भ हुए भैंसवा माताजी मेले में जो कि लगातार एक माह चलता है में बारवी शताब्दी से माता बिजासन की यह पालकी निकालने की परंपरा चलती आ रही है  इसके  संकेत यह देवास रियासत से प्राप्त ताम्रपत्र के द्वारा की गई नियुक्तियु से मिलती है।

भक्तों का उमड़ा हुजूम

आस्था, विश्वास, उमंग से सराबोर माता के भक्तों का यह जनसैलाब का संगम इस अवसर पर देखने को मिला परम्परा अनुसार पहाड़ी पर स्थित माता के मुख्य मंदिर से पालकी दो किलोमीटर के क्षेत्र में चल समारोह के रूप में निकली पालकी में रियासत काल से ही किन्नरों का नृत्य आकर्षक का केंद्र रहा  करीब आठ घण्टे यह चल समारोह सतत चला। रातभर चलने वाले इस भक्ति मय आयोजन में करीब एक लाख जनता शामिल हुई  काफी तादाद में यह महिला भक्तों का हुजूम भी उमड़ता हुआ देखने को मिला।

ऐसे-ऐसे मिलते है वरदान

प्राचीन  भैंसवा माताजी मंदिर में विराजित माता बिजासन की जो मूर्ति यह विराजित है किदवंती है कि यह विग्रह में विराजित माता की मूर्ति स्वतः ही धरती से प्रकट हुई है उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य के भाई राजा भृतहरि ने यह तपस्या की व साथ उनके गुरु गोरक्षनाथ भी आये ये यह जल रही उनके ही हाथों की जलाई गई अखण्ड ज्योति से मिलता है यह पर निसन्तान दम्पति को भी सन्तान प्राप्ति का वरदान मिलता है।

जानें उल्टे स्वास्तिक की मान्यता

गोबर से बनाये जाने वाले उल्टे स्वास्तिक से पटी दीवारों पर सन्तान प्राप्ति पश्चात वही दम्पति पुनः सीधा सिंदूर से करती है हजारो सीधे स्वास्तिक भी इस बात की पुष्टि करते है कि यह से हजारों निसन्तान घरों में सन्तान प्राप्ति से घर जगमगाते है। माता के दर्शन को आने वाले भक्तों की सुरक्षा व्यवस्था के पुलिस विभाग द्वारा व्यापक इंतजाम किए जाते है मंदिर विकास हेतु जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में ट्रस्ट कार्य करता है।