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मामा के राज में बैलों की जगह भांजिया जोत रही खेत

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Jul 17, 2018

बेटियां बेटे से कम नही होती। यह बात तो हमने कई बार सुनी है हर बार साहसी व बहादुर लडकियो ने यह बात सिद्ध करके बताई भी है। आगर से 5 किलोमीटर दूर ग्राम तारबर्डी में बेटी की ऐसी ही साहस व मेहनत का नजारा देखने को मिला। गांव मे रहने वाले 40 वर्षीय महिपाल सिंह के पास मात्र 5 बीघा जमीन है। इतनी कम जमीन मे परिवार का गुजारा नही होता है इस लिए महिपाल कम्बल बेचने का काम करते है। गत दिनो ही वो कम्बल बेचने जोधपुर राजस्थान गया है। 

बारिश के पहले उसकी पत्नि राजुबाई ने ट्रेक्टर से खेत की हकाई जुताई कराने के बाद बारिश होने पर सोयाबीन की भी बुआई करवा दी थी। पति के बाहर रहने के कारण खेती का पूरा काम राजुबाई ही सम्भालती है। फसल जब बडी हुई तो उसमे खरपतवार व घास फूंस होने लगी समय पर यदि खरपतवार नष्ट न की जाए तो फसल बढ़ नही पाती तथा उपज भी बहुत कम होती है। ऐसे में किसान घास व खरपतवार नष्ट करने के लिए खेतो मे कुल्पा (डोरा) चलाते  है। कुल्पा समान्य रूप से बैल खिंचते है और किसान उसे पीछे दबा कर खेत मे चलाने का काम करता है। 

राजुबाई ने देखा की खेत मे डोरे चलाना जरूरी है। गांव में लोगो से बेल मांगे तो उन्होंने अपने खेत में काम चलने की बात कह कर देने में असमर्थता व्यक्त कर दी। तब राजुबाई की 14 साल की लडकी पूजा ने बैल की जगह खुद जुत कर मां का सहयोग किया। राजुबाई व पूजा सोमवार सुबह से ही खेत मे डोरे चलाने का काम करती रही।