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मामूलिया विसर्जन के दौरान दर्दनाक हादसा: दतिया में छह बच्चे नदी में डूबे, पांच को बचाया गया, एक लापता बच्ची की तलाश तेज

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Sep 21, 2025

मामूलिया विसर्जन के दौरान दर्दनाक हादसा: दतिया में छह बच्चे नदी में डूबे, पांच को बचाया गया, एक लापता बच्ची की तलाश तेज

दतिया, मध्य प्रदेश। पितृपक्ष के पवित्र दिनों में श्राद्धकर्म और विसर्जन की धार्मिक परंपराओं के बीच एक ऐसी घटना घटी, जिसने पूरे इलाके को सन्नाटे में डुबो दिया। रविवार को जिले के सेवड़ा क्षेत्र के सनकुआ घाट पर मामूलिया विसर्जन के लिए पहुंचे छह मासूम बच्चे अचानक नदी के तेज बहाव की चपेट में आ गए। इनमें से स्थानीय लोगों की तत्परता से पांच बच्चों को सुरक्षित बचा लिया गया, लेकिन एक बच्ची अभी भी लापता बनी हुई है। घटनास्थल पर सन्नाटा पसर गया है, जबकि परिवारों का रो-रोकर बुरा हाल है। प्रशासनिक अमलों की लापरवाही ने इस हादसे को और गंभीर बना दिया, जिससे सवाल उठने लगे हैं कि धार्मिक आयोजनों के दौरान सुरक्षा के दावे कितने खोखले हैं। यह घटना न केवल एक परिवार का दर्द है, बल्कि पूरे समाज के लिए एक सबक है, जहां परंपराओं की आड़ में सुरक्षा को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।

घटना का पूरा विवरण

सनकुआ घाट पर पितृपक्ष के दौरान मामूलिया विसर्जन की परंपरा निभाने के लिए गांव के कई परिवार इकट्ठा हुए थे। दोपहर के आसपास छह बच्चे, उम्र 8 से 12 वर्ष के बीच के, उत्साह में नदी किनारे खेलते-खेलते आगे बढ़ गए। अचानक नदी का पानी गहरा हो गया और तेज धारा ने उन्हें लपेट लिया। चीख-पुकार सुनकर आसपास के ग्रामीण दौड़े और किसी तरह पांच बच्चों को खींचकर किनारे ला पाए। लेकिन सबसे छोटी बच्ची बहती धारा में गुम हो गई। ग्रामीणों ने तुरंत मदद के लिए चिल्लाया, लेकिन शुरुआती घंटों में कोई आधिकारिक सहायता न मिलने से अफरा-तफरी मच गई। बच्चे गांव के ही निवासी थे, जो पारिवारिक रस्म निभाने आए थे। यह दृश्य देखकर मां-बाप और रिश्तेदार बेहोश होने की कगार पर पहुंच गए। डॉक्टरों ने बचाए गए बच्चों को प्राथमिक उपचार दिया, लेकिन लापता बच्ची के परिवार का दर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा।

प्रशासन की लापरवाही ने बढ़ाई मुसीबत

इस हादसे में प्रशासन की बड़ी लापरवाही सामने आई है, जो लोगों के गुस्से का कारण बनी। पितृपक्ष के दौरान घाट पर सैकड़ों लोग आते हैं, यह बात अधिकारियों को अच्छी तरह पता है। फिर भी, न तो नगर पालिका का कोई प्रतिनिधि मौजूद था और न ही पुलिस की तैनाती। नदी किनारे लोगों को रोकने के लिए कोई रस्सी या बैरिकेडिंग नहीं की गई थी। सबसे शर्मनाक बात तो यह है कि घाट पर गोताखोर की व्यवस्था का नामोनिशान नहीं था। एसडीआरएफ की एक स्टीमर तो खड़ी थी, लेकिन उसमें डीजल तक नहीं भरा गया था। घटना की सूचना मिलने के चार घंटे बाद जाकर डीजल की व्यवस्था हो पाई। अगर समय पर संसाधन उपलब्ध होते, तो शायद यह हादसा इतना भयावह न होता। ग्रामीणों का आरोप है कि हर साल ऐसी घटनाओं की चेतावनी दी जाती है, लेकिन सुधार का नामोनिशान नहीं। अब स्थानीय लोग प्रशासन से मांग कर रहे हैं कि दोषियों पर कार्रवाई हो और भविष्य में ऐसी लापरवाही न हो।

बचाव कार्य और आगे की राह

घटना की सूचना मिलते ही एसडीआरएफ की टीम ने मौके पर पहुंचकर तलाश अभियान तेज कर दिया। ड्रोन की मदद से नदी के आसपास के क्षेत्रों की स्कैनिंग की जा रही है, जबकि गोताखोरों की टीम धारा के विभिन्न हिस्सों में छानबीन कर रही है। जिलाधिकारी ने व्यक्तिगत रूप से स्थिति का जायजा लिया और प्रभावित परिवारों को हर संभव सहायता का आश्वासन दिया। बचाव कार्य रात भर चला और सोमवार सुबह फिर से शुरू हो गया। विशेषज्ञों का कहना है कि नदी का बहाव तेज होने से तलाश में समय लग सकता है, लेकिन टीम हार नहीं मानेगी। इस बीच, गांव में सन्नाटा छाया हुआ है। मंदिरों में प्रार्थनाएं हो रही हैं और लोग बच्ची के सकुशल लौटने की कामना कर रहे हैं। यह घटना पूरे जिले में जागरूकता फैला रही है, जहां अब लोग स्वयं सुरक्षा उपायों पर जोर दे रहे हैं।

Report By:
Monika