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देशभर में अपनी अलग पहचान रखने वाला मांडरे वाली माता का मंदिर, जानिए इस मंदिर का इतिहास...

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Sep 29, 2019

धर्मेन्द्र शर्मा : ग्वालियर में प्राचीन मांडरे वाली माता का मंदिर ग्वालियर के अलावा भी देशभर में अपनी एक अलग पहचान रखता है। खासकर नवरात्रों के दौरान हजारो-लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां माता के दर्शन करने आते है और माता से मनोकामना मांगते है।

मंदिर की स्थापना आनंद राव मांडरे द्वारा की गई...
ग्वालियर में स्थित 177 साल प्राचीन माॅ मांडरे वाली माता का प्रसिद्ध मंदिर है जिसकी स्थापना के बारे में कहा जाता है कि मंदिर की स्थापना आनंद राव मांडरे के द्वारा की गई थी। आनंद राव मांडरे उस समय के सिंधिया राजवंश के राजा जीवाजी राव सिंधिया के यहां कर वसूली का काम किया करते थे और माता ने उनके सपने में आकर उनसे मंदिर स्थापित करने का आदेश दिया था। जिसके बाद महाराष्ट्र स्थित पूणे के पास मांडर गांव से ग्वालियर लाकर माता की स्थापना की गई। जिस वक्त मंदिर बनकर तैयार हुआ था। उस समय 40 रूपये पुजारी को दिये जाते थे। जिसको बडाकर अब 1000 रूपये किया गया है।

मंदिर स्थापना में सिंधिया राजवंश का योगदान
मंदिर की स्थापना में सिंधिया राजवंश का बहुत योगदान रहा और उन्होंने मंदिर का निर्माण भी इस खास ढंग से करवाया गया है कि सिंधिया महल के उपरी हिस्से में बने कमरो से सीधे दूरबीन के द्वारा माता के दर्शन किये जा सकते है वैसे तो सालभर ही भक्त माता के दर्शन के लिये आते है लेकिन खास तौर पर नवरात्र मे माता के नौ रूपों की पूजा यहां की जाती है व हजारों लाखों की संख्या मे लोग यहां देशभर से दर्शन के लिये पहुंचते है। नवरात्र में नौमी व दशहरा के दिन सिंधियावंश की ओर से मंदिर मे विशेष् पूजा की जाती है और सिंधिया महाराज की ओर से दान दिया जाता है साथ महाराज के हाथो से सोना लूटने की रस्म भी निभायी जाती है।

श्रृद्धालुओं की आस्था का केन्द्र है ये मंदिर..
मांडरे वाली माता मंदिर कई सालों से श्रृद्धालुओं की आस्था का केन्द्र बना हुआ है और लोग अपने मन की मुरादे पाने के लिये माता के चरणो मे दर्शन पाने के लिये देशभर से खिंचे चले आते है और अपनी मन्नते मांगते है। नवरात्र के आखरी दिन मंदिर में बकरो की बली चढाई जाती है। साथ ही पूडी,सब्जी का भी प्रसाद यहां हजारो भक्तो में वितरित किया जाता है और माता को पालकी मे बैठाकर बैन्ड बाजो के साथ मंदिर के आसपास की मुख्य सडको पर से जुलूस के रूप मे निकाला जाता है।