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नई दिल्लीः अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला, विवादित जमीन रामलला की

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Nov 9, 2019

देश के सबसे लंबे चले मुकदमे यानी अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि विवादित जमीन रामलला की है। कोर्ट ने इस मामले में निर्मोही अखाड़े और शिया वक्फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ की वैकल्पिक जमीन दी जाए। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को भी वैकल्पिक ज़मीन देना ज़रूरी है। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार तीन महीने में ट्रस्ट बना कर फैसला करे। ट्रस्ट के मैनेजमेंट के नियम बनाए, मन्दिर निर्माण के नियम बनाए। विवादित जमीन के अंदर और बाहर का हिस्सा ट्रस्ट को दिया जाए।' कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ की वैकल्पिक ज़मीन मिले या तो केंद्र 1993 में अधिगृहित जमीन से दे या राज्य सरकार अयोध्या में ही कहीं दे।

फैसला सुनाने से पहले सुप्रीम कोर्ट ने कही ये बातें.....

कोर्ट ने कहा, ''नीचे विशाल रचना थी, वह रचना इस्लामिक नहीं थी। वहां मिली कलाकृतियां भी इस्लामिक नहीं थी। एएसआई ने वहां 12वीं सदी में मंदिर होना बताया। हिन्दू अयोध्या को राम भगवान का जन्मस्थान मानते हैं। मुख्य गुंबद को ही जन्म की सही जगह मानते हैं। अयोध्या में राम का जन्म होने के दावे का किसी ने विरोध नहीं किया। विवादित जगह पर हिन्दू पूजा करते रहे थे। गवाहों के क्रॉस एक्जामिनेशन से हिन्दू दावा झूठा साबित नहीं हुआ।'' कोर्ट ने कहा, ''रामलला ने ऐतिहासिक ग्रंथों, यात्रियों के विवरण, गजेटियर के आधार पर दलीलें रखीं। चबूतरा, भंडार, सीता रसोई से भी दावे की पुष्टि होती है। हिन्दू परिक्रमा भी किया करते थे। लेकिन टाइटल सिर्फ आस्था से साबित नहीं होता।''

मुसलमान अंदर के हिस्से में 1856 से पहले का कब्जा साबित नहीं कर पाए

कोर्ट ने कहा, ''1856 से पहले हिन्दू भी अंदरूनी हिस्से में पूजा करते थे, रोकने पर बाहर चबूतरे की पूजा करने लगे। फिर भी मुख्य गुंबद के नीचे गर्भगृह मानते थे, इसलिए रेलिंग के पास आकर पूजा करते थे। 1934 के दंगों के बाद मुसलमानों का वहां कब्ज़ा नहीं रहा। वह जगह पर अपना अधिकार साबित नहीं कर पाए हैं। जबकि यात्रियों के वृतांत और पुरातात्विक सबूत हिंदुओं के हक में हैं।'' कोर्ट ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि 6 दिसंबर 1992 को स्टेटस को का ऑर्डर होने के बावजूद ढांचा गिराया गया। लेकिन सुन्नी बोर्ड एडवर्स पोसेसन की दलील साबित करने में नाकाम रहा है। लेकिन 16 दिसंबर 1949 तक नमाज हुई। कोर्ट ने कहा कि सूट 4 और 5 में हमें सन्तुलन बनाना होगा, हाई कोर्ट ने 3 हिस्से किये, यह तार्किक नहीं था। कोर्ट ने कहा, ''हर मजहब के लोगों को एक जैसा सम्मान संविधान में दिया गया है। बाहर हिंदुओं की पूजा सदियों तक चलती रही। मुसलमान अंदर के हिस्से में 1856 से पहले का कब्जा साबित नहीं कर पाए।''