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कश्मीरी पंडित भय और असुरक्षा के चलते जाने के लिए हुए मजबूर

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Feb 7, 2018

हाल ही में जम्मू कश्मीर में रहने वाले पंड़ितों की स्थिति पर सीएम महबूबा मुफ्ती सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने अपने बयान में कहा है कि कश्मीरी पंडित असुरक्षा और भय के माहौल के चलते घाटी में अपने घर बार छोडऩे को बाध्य हुए है।

जावेद मुस्तफा मीर जो आपदा प्रबंधन, राहत, पुनर्वास और पुनर्निर्माण मंत्री है उन्होंने मंगलवार को विधानपरिषद में कहा कि मैं अपने दिल की गहराई से यह बात कहना चाहता हूं और सदन में यह रिकार्ड में रखना चाहता हूं कि कश्मीरी पंडित भय और असुरक्षा की एक स्थिति के चलते यहां से जाने के लिए मजबूर हुए है।

आपको बता दें कि मीर बीजेपी के विधानपरिषद सदस्य गिरधारी लाल रैना की ओर से पेश नोटिस पर चर्चा का समापन कर रहे थे। मीर ने कहा कि कश्मीरी पंडित भागे नहीं। कुछ लोग आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने अपने घर छोड़ दिए। मैं इस मुद्दे को स्पष्ट करना चाहता हूं और इसे विराम देना चाहता हूं।

वहीं इस स्थिति के बारें में अगर विस्तृत तरीके से बात की जाए तो पता चलेगा कि सच में किसी जगह से ड़र के मारे पलायन कर जाना क्या होता है। लखनऊ में विस्थापित जीवन जी रहे कश्मीरी पंडित रविन्द्र कोत्रू के चेहरे पर अविश्वास की सैकड़ों लकीरें पीड़ा की शक्ल में उभरती हुईं बयान करती हैं कि यदि आतंक के उन दिनों में घाटी की मुस्लिम आबादी ने उनका साथ दिया होता जब उन्हें वहां से खदेड़ा जा रहा था, उनके साथ कत्लेआम हो रहा था तो किसी भी आतंकवादी में ये हिम्मत नहीं होती कि वह किसी कश्मीरी पंडित को चोट पहुंचाने की सोच पाता। लेकिन तब उन्होंने हमारा साथ देने के बजाय कट्टरपंथियों के सामने घुटने टेक दिए थे या उनके ही लश्कर में शामिल हो गए थे।

लखनऊ में रह रही कश्मीरी पण्डितों की नौजवान पीढ़ी के हस्ताक्षर प्रकाश कौल अपने दर्द और उम्मीद को साझा करते हुये कहते हैं कि रातों-रात वह पूरी कौम सड़क पर आ गई जो कश्मीर की अर्थव्यवस्था और प्रशासनिक व्यवस्था की रीढ़ थी। और ताज्जुब यह था कि पूरे देश से मदद के लिए कोई आवाज नहीं आई थी। जो अखरोटों और बादाम के बागों के मालिक थे वह टेण्ट में दो किलो चावल के तलबगार थे और जो वादी के मुसलमान उन्हीं बागों में नौकर थे वह आज करोड़ों के साहूकार हैं। दर्द और उपेक्षा के घटाटोप अंधकार में अभी तक मदद और अपनेपन की कोई शमा जलती नहीं दिख रही है। कश्मीरी पण्डितों के हिस्से में दर्द और उपेक्षा के तवील अंधेरों की रात कितनी काली और लंबी है यह जानने के लिये हमें वक्त के पन्नों को पलटना होगा।