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'पोकर और रम्मी जुआ नहीं , कौशल का खेल हैं - इलाहाबाद हाई कोर्ट

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Sep 5, 2024

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है, 'पोकर (ताश का खेल) और रम्मी जुआ नहीं हैं. लेकिन कौशल का खेल है.' मैसर्स डी.एम. गेमिंग प्राइवेट लिमिटेड के आवेदन पर न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और जस्टिस मंजीव शुक्ला की खंडपीठ ने यह आदेश दिया है.

जानिए क्या मायने रखता है

रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत मेसर्स डी.एम. गेमिंग प्राइवेट लिमिटेड की ओर से इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी. 24 जनवरी 2024 को डीसीपी सिटी, आगरा पुलिस कमिश्नरेट के कार्यालय द्वारा पारित आदेश से व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की. एक गेमिंग यूनिट संचालित करने की अनुमति के लिए आवेदक द्वारा किए गए आवेदन के संबंध में पारित किया गया था. डीसीपी कार्यालय ने पोकर और रम्मी के लिए गेमिंग यूनिट संचालित करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया. 

याचिकाकर्ता के वकील ने यह दलील दी

याचिकाकर्ता के वकील ने दलीलों को समर्थन देने के लिए आंध्र प्रदेश बनाम के.एस. का हवाला दिया. इसमें सत्यनारायण मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले और जंगल गेम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ मद्रास हाई कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए कहा गया, 'पोकर और रम्मी कौशल के खेल हैं, जुआ नहीं.' याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि अनुमति देने से इनकार केवल इस धारणा पर आधारित था कि ऐसे खेल शांति और सद्भाव को बिगाड़ सकते हैं या जुए के समान हो सकते हैं. 

अदालत के समक्ष प्राथमिक कानूनी मुद्दा यह था कि क्या पोकर और रम्मी को जुआ गतिविधियों या कौशल के खेल के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है. कोर्ट ने कहा, 'यह मानते हुए कि जुआ खेलना प्रतिबंधित है, अनुमति देने से इनकार कर दिया गया. इस पहलू के बावजूद कि कार्ड गेम यानी पोकर और रम्मी पूरी तरह से कौशल के खेल हैं और जुआ नहीं हैं.'

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आगे स्पष्ट किया कि पोकर और रम्मी खेलने वाली गेमिंग इकाइयों के संचालन की अनुमति देने से अधिकारियों को अवैध जुआ गतिविधियों की निगरानी करने से नहीं रोका जा सकता है. उच्च न्यायालय ने संबंधित अधिकारियों को कौशल आधारित खेलों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों के फैसलों पर विचार करके मामले पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया है. याचिका का निपटारा करते हुए हाई कोर्ट ने आदेश दिया, 'याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर प्रदान करने के बाद, प्राधिकरण निर्णय की तारीख से 6 सप्ताह के भीतर एक तर्कसंगत आदेश पारित करेगा.'

Report By:
Devashish Upadhyay.