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क्रोध सभी अच्छाईयों को कर देता है भस्म

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Jun 24, 2019

आज के समय में लोगों की सहनशीलता कम हो गई है। वे क्रोध बहुत अधिक करते हैं। गौतम बौद्ध ने कहा था कि क्रोध को पाले रखना गर्म कोयले को किसी और पर फेंकने की नीयत से पकडे रहने के समान है और इसमें आप ही जलते हैं। क्रोध की प्रचंडता को आइये जानते हैं इस कहानी के जरिए। 

आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच शास्त्रार्थ

बहुत समय पहले की बात है। आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच सोलह दिन तक लगातार शास्त्रार्थ चला। शास्त्रार्थ में निर्णायक थी मंडन मिश्र की धर्म पत्नी देवी भारती। हार-जीत का निर्णय होना बाक़ी था, इसी बीच देवी भारती को किसी आवश्यक कार्य से कुछ समय के लिये बाहर जाना पड़ गया, लेकिन जाने से पहले देवी भारती ने दोनों ही विद्वानों के गले में एक-एक फूल माला डालते हुए कहा, ये दोनों मालाएं मेरी अनुपस्थिति में आपके हार और जीत का फैसला करेगी। यह कहकर देवी भारती वहाँ से चली गई। शास्त्रार्थ की प्रकिया आगे चलती रही। कुछ देर पश्चात् देवी भारती अपना कार्य पुरा करके लौट आई। उन्होने अपनी निर्णायक नजरों से शंकराचार्य और मंडन मिश्र को बारी-बारी से देखा और अपना निर्णय सुना दिया। उनके फैसले के अनुसार आदि शंकराचार्य विजयी घोषित किये गये और उनके पति मंडन मिश्र की पराजय हुई थी।

क्रोध ने सुखा दी फूलों की माला

सभी दर्शक हैरान हो गये कि बिना किसी आधार के इस विदुषी ने अपने पति को ही पराजित करार दे दिया। एक विद्वान ने पूछा- हे! देवी आप तो शास्त्रार्थ के मध्य ही चली गई थीं, फिर वापस लौटते ही आपने ऐसा फैसला कैसे दे दिया? देवी भारती ने मुस्कुराकर जवाब दिया- जब भी कोई विद्वान शास्त्रार्थ मे पराजित होने लगता है, और उसे जब हार की झलक दिखने लगती है तो इस वजह से वह क्रुध्द हो उठता है और मेरे पति के गले की माला उनके क्रोध के ताप से सूख चुकी है जबकि शंकराचार्य जी की माला के फूल अभी भी पहले की भांति ताजे है। इससे ज्ञात होता है कि शंकराचार्य की विजय हुई है। विदुषी देवी भारती का फैसला सुनकर सभी दंग रह गये, सबने उनकी काफी प्रशंसा की।

क्रोध के मूल कारण को समझ उसे सुधारने का प्रयत्न करें

कहने का मतलब ये है कि क्रोध हमारी वो मनोदशा है जो हमारे विवेक को नष्ट कर देती है और जीत के नजदीक पहुँच कर भी जीत के सारे दरवाजे बंद कर देती है। क्रोध न सिर्फ हार का दरवाजा खोलता है बल्कि रिश्तों में दरार का भी प्रमुख कारण बन जाता है। लाख अच्छाईयाँ होने के बावजूद भी क्रोधित व्यक्ति के सारे फूल रूपी गुण उसके क्रोध की गर्मी से मुरझा जाते हैं। क्रोध पर विजय पाना आसान तो बिलकुल नहीं है लेकिन उसे कम आसानी से किया जा सकता है, इसलिए अपने क्रोध के मूल कारण को समझें और उसे सुधारने का प्रयत्न करें, आप पाएंगे की स्वतः आपका क्रोध कम होता चला जायेगा।