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धनतेरस 2025: उज्जैन में कुबेर की नाभि में इत्र अर्पण से बरसेगा धन-ऐश्वर्य

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Oct 17, 2025

धनतेरस 2025: उज्जैन में कुबेर की नाभि में इत्र अर्पण से बरसेगा धन-ऐश्वर्य

धनतेरस 2025 का पर्व उज्जैन में एक अनूठी और प्राचीन परंपरा के साथ धूमधाम से मनाया जाएगा। सांदीपनि आश्रम और महाकालेश्वर मंदिर के समीप कोटितीर्थ कुंड के पास स्थित 1100 वर्ष पुरानी कुबेर प्रतिमा पर विशेष पूजा-अर्चना होगी। श्रद्धालु इस दिन कुबेर की नाभि में इत्र अर्पित कर धन, सौभाग्य और समृद्धि की कामना करेंगे। मान्यता है कि 'नाभी इत्रं समर्प्यत, लक्ष्मीकुबेर प्रसीदतु' के मंत्र के साथ यह पूजा लक्ष्मी और कुबेर दोनों को प्रसन्न करती है, जिससे घर में धन का स्थायित्व और शुभ संपत्ति की वृद्धि होती है। आइए, इस अद्भुत परंपरा और कुबेर के ऐतिहासिक महत्व को जानें।

कुबेर की नाभि में इत्र अर्पण की प्राचीन परंपरा

उज्जैन के सांदीपनि आश्रम में स्थित कुण्डेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में परमारकालीन कुबेर प्रतिमा स्थापित है। इस 1100 वर्ष पुरानी प्रतिमा में कुबेर बैठी मुद्रा में हैं, एक हाथ में सोम पात्र और दूसरा वर मुद्रा में। उनके कंधों पर धन की पोटलियां और अलंकारित शरीर उनकी ऐश्वर्यपूर्ण छवि को दर्शाते हैं। कथा के अनुसार, जब भगवान शिव ने कुबेर को धन के देवता का पद दिया, तब ब्रह्मा ने पूछा कि धन का संचय कहां होगा। कुबेर ने अपनी नाभि को धन का केंद्र बताया। तभी से कुबेर की नाभि में इत्र और पुष्प अर्पित करने की परंपरा शुरू हुई, जो धन और समृद्धि का आशीर्वाद देती है।

श्रीकृष्ण और कुबेर का सांदीपनि आश्रम से संबंध

सांदीपनि आश्रम में श्रीकृष्ण ने अपनी शिक्षा पूर्ण की थी। गुरु दक्षिणा के समय कुबेर धन लेकर पहुंचे, लेकिन गुरु सांदीपनि ने खजाना लौटा दिया और श्रीकृष्ण को शंखासुर से उनके पुत्र को मुक्त करने का आदेश दिया। इस कार्य के बाद गुरु-माता ने श्रीकृष्ण को 'श्री' का वरदान दिया, जिससे वे श्रीकृष्ण कहलाए। कहा जाता है कि कुबेर तब से इस आश्रम में विराजमान हैं।

देश के प्रमुख कुबेर मंदिर

मंदसौर (मध्य प्रदेश): 1300 वर्ष पुरानी कुबेर प्रतिमा, नेवले पर सवार, धन की पोटली और शस्त्र के साथ।

ओंकारेश्वर (मध्य प्रदेश): कुबेर ने यहां तपस्या कर शिवलिंग स्थापित किया, जो धनतेरस पर विशेष पूजा का केंद्र है।

वडोदरा (गुजरात): 2500 वर्ष पुराना मंदिर, नर्मदा तट पर धनतेरस और दीपावली पर भक्तों की भीड़।

जागेश्वर धाम (उत्तराखंड): 7वीं से 14वीं शताब्दी के मंदिरों में कुबेर की एकलिंग रूप में पूजा।

काशी विश्वनाथ (वाराणसी): भगवान शिव के साथ कुबेर की मूर्ति, धन और वैभव की रक्षा का प्रतीक।

 

Report By:
Monika