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अनोखा है कोंडागांव का वार्षिक मेला, ग्रामीण देवी-देवताओं का होता है महासंगम

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Feb 28, 2020

कोंडागांवः बस्तर संभाग के अन्य मेलों में जिला कोंडागांव के वार्षिक मेले का अपना अलग स्थान है। यूं तो बस्तर में मेले मंडई की ऐतिहासिकता सर्वविदित है। कोण्डागांव मेला भी इससे अछुता नहीं है। यहां माघ शुक्ल पक्ष में होली से ठीक 5 दिन पहले भरने वाले इस मेले में आस्था और संस्कृति की अवधारणा मूर्त रूप में नजर आती है। जहां तक मेले की ऐतिहासिकता की बात की जाये तो तत्कालीन बस्तर राजवंश की ओर से संभवतः अंचल के समस्त मांझी मुखिया परगना पटेलो में धार्मिक एकता बनाए रखने एवं उनमें समन्वय स्थापित करने के लिए ग्राम देवी-देवताओं का वार्षिक महा सम्मेलन आयोजन करने के निर्देश की चर्चा की होती है। इसके तहत क्षेत्र में बसने वाले सभी समुदाय वर्ग के लोग एकजुट होकर धार्मिक कर्मकांड एंव प्रथाओं का पालन करना सुनिश्चित करते है।

लोक नृत्यों का अनूठा उल्लास बांधता है समां

कुल 5 दिनों तक चलने वाले इस मेले का एक अन्य आर्कषण जिला मुख्यालय के आसपास के ग्रामों के नृतक दलों की ओर से पारम्परिक लोक नृत्यों की बेहतरीन प्रस्तुतियां भी है। इनमें प्रचलित आदिम नृत्य जैसे कोंकरेग, रेला, हूल्की, माटी मांदरी, गेडी, गौर नृत्य शामिल है, जिन्हे स्थानीय ग्राम कोकोड़ी, किबई बालेंगा, पाला, तेलंगा, खरगांव, गोलावण्ड के नर्तक दल प्रमुखता से प्रदर्शित करते हैं। इन नृत्यों में प्रचलित लोक धुन धार्मिक विश्वास उत्साह और उन्माद परिलक्षित होता है। खुले मैदान में रात्रि को वनांचल के युवक-युवतियों की ओर से ढ़ोल, मांदरी की धुन पर सामुहिक नृत्य उपस्थित लोगों को भी झूमने पर मजबूर कर देता है। अंत में सभी नर्तक दलों को परम्परानुसार पारतोषिक दिए जाने का भी प्रचलन है।