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दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा- महिलाओं को शिक्षा और बच्चों के बीच चुनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता 

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May 31, 2023

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा- महिलाओं को शिक्षा और बच्चों के बीच चुनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता 


दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि महिलाओं को शिक्षा और बच्चों के बीच चुनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। इस अहम टिप्पणी के साथ ही कोर्ट ने एमएड की छात्रा को मातृत्व अवकाश का लाभ देने और आवश्यक हाजिरी पूरी करने के बाद परीक्षा में बैठने की अनुमति देने का भी निर्देश दिया है.

न्यायमूर्ति पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने हाल ही में एक एमएड छात्र की याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान एक समतावादी समाज की परिकल्पना करता है जिसमें नागरिक अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकें। समाज के साथ-साथ राज्य भी उन्हें ऐसा करने की अनुमति देता है। अदालत ने आगे कहा कि संवैधानिक मामलों की योजना में, किसी को शिक्षा के अधिकार और प्रजनन स्वायत्तता के अधिकार के बीच चयन करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।

महिला आवेदक ने दिसंबर, 2021 में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में दो वर्षीय एमएड कोर्स में प्रवेश लिया था। इसके बाद उन्होंने यूनिवर्सिटी के डीन और वाइस चांसलर को मैटरनिटी लीव के लिए अप्लाई किया। इसे 28 फरवरी को खारिज कर दिया गया था। विश्वविद्यालय प्रबंधन ने कक्षाओं में अनिवार्य उपस्थिति के मानदंडों को पूरा करने के आधार पर आवेदक को प्रसूति अवकाश का लाभ देने से इनकार कर दिया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की।

उच्च न्यायालय ने विश्वविद्यालय प्रबंधन के फरवरी 2023 के फैसले को रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता को 59 दिनों के मातृत्व अवकाश का लाभ देने पर पुनर्विचार करने को कहा। साथ ही निर्देश दिया कि इसके बाद कक्षा में आवश्यक 80 प्रतिशत उपस्थिति मानक पूरा करने पर ही उसे परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जाएगी। न्यायालय ने यह भी माना कि, विभिन्न निर्णयों में, यह माना गया है कि कार्यस्थल पर मातृत्व अवकाश का लाभ संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मान के साथ जीने के अधिकार का एक अभिन्न पहलू है।