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अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, सत्ता प्रतिष्ठानों की ज़िम्मेदारी

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Aug 23, 2020

- तनवीर जाफ़री

अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय से संबंध रखने वाले एक मात्र केंद्रीय मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी ने पिछले दिनों यह बयान दिया कि -"धर्मनिरपेक्षता और सद्भाव भारतवासियों के लिए एक फ़ैशन नहीं बल्कि जुनून है। यह हमारे देश की ताक़त है। इसी ताक़त में देश के अल्पसंख्यकों सहित सभी लोगों के धार्मिक,सामाजिक अधिकार सुरक्षित हैं। भारत मुसलमानों और सभी अल्पसंख्यक समुदायों के लिए स्वर्ग है। देश का माहौल ख़राब कर रहे लोग भारतीय मुसलमानों के दोस्त नहीं हो सकते।" मंत्री महोदय का उपरोक्त वक्तव्य निश्चित रूप से सराहनीय है। ख़ास तौर से वर्तमान दौर में जबकि देश की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा संरक्षित भारतीय जनता पार्टी की सत्ता के दौर में भारत में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न की अनेकानेक घटनाएँ हो चुकी हैं और आए दिन होती रहती हैं। उसके बावजूद बेशक यह 'भारतवासियों का जुनून' ही है जो नेताओं व राजनैतिक दलों के तमाम प्रयासों के बावजूद देश में धर्मनिरपेक्षता और सद्भाव को बरक़रार रखे हुए है। मंत्री जी के लिए तो वैसे भी  भारत वर्तमान दौर में स्वर्ग इसलिए भी है क्योंकि जब भारतीय जनता पार्टी ने किसी एक भी मुस्लिम अल्पसंख्यक को संसद या विधानसभा के चुनाव में उम्मीदवार नहीं बनाया तथा केवल मुस्लिम विरोध पर ही अपनी राजनैतिक सफलता की इबारत लिख रही है ऐसे में उनको केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री बनाया जाना उनके लिए स्वर्ग नहीं बल्कि 'स्वर्ग की राजधानी' जैसा है।

अब ज़रा अपने पड़ोसी देशों की चर्चा करते हैं। जब कभी पाकिस्तान या अफ़ग़ानिस्तान में वहां के अल्पसंख्यकों पर ज़ुल्म ढाया जाता है उस समय भारतीय मीडिया में ऐसी घटनाओं की ज़ोर शोर से चर्चा होती है। सम्पादकीय व आलेख लिखे जाते हैं। कुछ अति उत्साही लेखक व पत्रकार पाकिस्तान व अफ़ग़ानिस्तान के हिन्दू व सिख समाज के लोगों को भारत आने का निमंत्रण इस अंदाज़ में देते हैं गोया उन्होंने इनके लिए रोज़गार,पुनर्वास,सुरक्षा,तथा स्वास्थ्य की पूरी व्यवस्था स्वयं कर रखी हो। इसी तरह की मीठी मीठी बातें सुनकर अनेक लोग पाकिस्तान व अफ़ग़ानिस्तान से भारत आ भी चुके हैं। परन्तु भारत में,पाक व अफ़ग़ानिस्तान के कई हिन्दू व सिख शरणार्थियों के संबंध में जिस तरह की ख़बरें आती रही हैं उन्हें सुनकर कहा जा सकता है कि वे लोग भारत में भी चैन से नहीं रह पा रहे हैं। कई लोगों को तो अभी तक नागरिकता भी हासिल नहीं हुई है। पिछले दिनों तो एक ऐसी दर्दनाक घटना सामने आई जो शायद अब तक पाकिस्तान व अफ़ग़ानिस्तान में भी नहीं सुनी गयी। गत दिनों राजस्थान के जोधपुर ज़िले में एक पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी परिवार के 11 सदस्यों की रहस्मयी तरीक़े से मौत हो गयी। पाकिस्तान के सिंध प्रांत के रहने वाले ये शरणार्थी 2015 में भारत आए थे और तभी से यहां रह रहे थे। कुछ लोग इसे हत्या का मामला बता रहे हैं तो कुछ सामूहिक आत्महत्या बता रहे हैं। यह हत्या हो या आत्महत्या परन्तु यह तो तय ही कि यह परिवार यहाँ भी ख़ुश व सुरक्षित नहीं था इसी वजह से इतना बड़ा हादसा पेश आया।

पिछले दिनों पाकिस्तान व अफ़ग़ानिस्तान में कई ऐसी घटनाएं हुईं जिसके बाद इन देशों में अल्पसंख्यकों व उनके धर्मस्थानों की सुरक्षा को लेकर विश्वव्यापी चिंता ज़ाहिर की गयी। इसी वर्ष 25 मार्च को अफ़गानिस्तान की राजधानी काबुल में आतंकियों ने एक गुरुद्वारे को निशाना बनाया। इस फ़िदायीन हमले में 27 सिख श्रद्धालुओं की मौत हो गई। बाद में अफ़गानी सुरक्षाबलों ने गुरुद्वारे की घेराबंदी कर जवाबी कार्रवाई की और जिसमें चार आतंकी मारे गए । गुरुद्वारे पर हमला करने वाले 37 और आतंकी गिरफ़्तार किये गए। इसी तरह का  एक हादसा पाकिस्तान के ननकाना साहिब गुरद्वारे में उस समय हुआ जबकि पाकिस्तानी कट्टरपंथी मुसलमानों की सैकड़ों लोगों की उग्र भीड़ ने गुरुद्वारे पर पथराव एवं नारेबाज़ी की। इसी तरह पाकिस्तान के कराची शहर में इसी कट्टर मानसिकता वाली भीड़ ने हनुमान जी का लगभग 80 वर्ष प्राचीन एक मंदिर ध्वस्त कर दिया। इस मंदिर के आसपास करीब 20 हिंदू परिवार रहते थे। इनके मकान भी तोड़ दिए गए हैं। इसी क्षेत्र में रहने वाला मुस्लिम बलोच समुदाय मंदिर तोड़े जाने का विरोध कर रहा  है। बलोच नेता इरशाद बलोच ने एक बयान जारी कर कहा कि - "हम इस घटना से हम बहुत दुखी हैं। हम बचपन से इस मंदिर को देख रहे थे। यह हमारी विरासत का प्रतीक था"। इस तरह की तमाम घटनाएं अफ़ग़ानिस्तान व पाकिस्तान में पहले भी हो चुकी हैं तथा इस बात की भी कोई गारंटी नहीं कि वर्तमान में हुई घटनाएं इन देशों में इस तरह की होने वाली आख़िरी घटनाएं साबित होंगी।

सवाल यह है कि इस तरह की अंतहीन घटनाओं पर विराम लगाने का आख़िर उपाय क्या है। क्या सी ए ए के अंतर्गत उन देशों के प्राचीन मंदिरों व ऐतिहासिक गुरद्वारों को भी भारत में स्थानांतरित करने का प्रावधान है ? क्या भारत अपने मूल देशवासियों को वह सभी सुविधाएं मुहैय्या करवा पर रहा है जोकि प्रत्येक भारतीय का अधिकार है ? रोज़ी,रोटी,स्वास्थ्य शिक्षा,सुरक्षा आदि सभी ज़रूरी सुविधाएं प्रत्येक भारतीय तक पहुँच रही हैं? हरगिज़ नहीं। याद कीजिये जब कभी देश में दलितों पर अत्याचार होते हैं तो एक दो नहीं कई बार भारतीय दलित समाज मुखरित होकर मीडिया के सामने यह बोलता सुनाई देता है कि 'इस अत्याचार से अच्छा है कि हम पाकिस्तान चले जाएं'। यह बात किसी अल्पसंख्यक तबक़े से नहीं बल्कि स्वयं को हिन्दू कहलाने वाले बहुसंख्य समाज के ही एक वर्ग से आती है। बाबा साहब डॉक्टर भीम राव आंबेडकर से लेकर अब तक दलित समाज के ही करोड़ों लोग अपना धर्म परिवर्तन कर बौद्ध या ईसाई धर्म अपना चुके हैं। अनेक मंदिरों में आज भी उन्हें प्रवेश की अनुमति नहीं है। क्या इन समस्याओं का समाधान पलायन है ? क्या किसी दूसरे धर्म में शामिल होना या किसी शरणार्थी बनकर अन्य देश में रहना इस तरह की समस्या का स्थाई समाधान है ? मेरे विचार से तो हरगिज़ नहीं।

अपने घर की समस्या को अपने ही घर में सुलझाने के न केवल पुख़्ता उपाय करने चाहिए बल्कि इसके लिए सत्ता प्रतिष्ठानों के द्वारा ठोस,ईमानदाराना व पारदर्शी तरीक़े अपनाने चाहिए। भारत में न जाने कितने दलित मंदिर,मस्जिद,दरगाहें व चर्च आदि तोड़े जा चुके परन्तु फिर भी भारतीय गर्व से अपने देश में रहते हैं क्योंकि बक़ौल केंद्रीय मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी "धर्मनिरपेक्षता और सद्भाव भारतवासियों के लिए एक फ़ैशन नहीं बल्कि जुनून है"। भारत उन कट्टरपंथी तत्वों के दम पर आगे नहीं बढ़ रहा जो मस्जिद,दरगाह या दलित मंदिरों में तोड़ फोड़ करते हैं या मस्जिद की मीनारों पर भगवा लहराते हैं। बल्कि भारत धर्मनिरपेक्षता व सद्भाव का जुनून रखने वाले उन भारवासियों के दम पर आगे बढ़ रहा है जो ऐसी शर्मनाक घटनाओं का प्रतिकार करते हैं तथा हिन्दू धर्मस्थानों की रक्षा मुस्लिमव मुसलमानों के धर्मस्थानों की रक्षा हिन्दू भाई करते दिखाई देते हैं। कहीं बारिश के चलते गणेश चतुर्थी के पंडाल में नमाज़ ए जमाअत अदा होती है तो कहीं बाढ़ पीड़ित हिन्दू भाई बहनों व उनके बच्चों को शरण देने के लिए मस्जिद के द्वार खोल दिए जाते हैं और वहां अदा की जाने वाली नमाज़ स्थगित कर दी जाती है।

पूरी दुनिया इसी 'धर्मनिरपेक्षता व सद्भाव के जूनून' से चल रही है। और जहाँ कहीं इसमें गिरावट आ रही है या सत्ता प्रतिष्ठानों द्वारा संकीर्ण व कट्टरपंथी ताक़तों को प्रश्रय दिया जा रहा है वहां से ही ऐसे मानवता विरोधी नकारात्मक समाचार प्राप्त हो रहे हैं। लिहाज़ा ज़रुरत इस बात की है कि  जहाँ भी समाज का न केवल अल्पंसख्यक बल्कि बहुसंख्यकों का भी कोई वर्ग पीड़ित या प्रताड़ित किया जा रहा है उसे सत्ता प्रतिष्ठानों द्वारा सुरक्षित व संरक्षित किया जाए। इतना ही नहीं बल्कि सामाजिक स्तर पर भी मानवता के दुश्मनों का प्रतिकार किये जाने की ज़रुरत है ताकि कोई वर्ग अपने को अल्पसंख्यक,अकेला कमज़ोर या पीड़ित न महसूस कर सके। और यदि इन सब कोशिशों के बावजूद किसी वर्ग को या उसके धर्मस्थानों को कुछ पूर्वाग्रही संकीर्ण,साम्प्रदायिक सरफिरों द्वारा किसी भी तरह से परेशान किया जाता है तो वैश्विक स्तर पर इससे निपटने का एक विश्वव्यापी तंत्र तैय्यार करना चाहिए। पलायन या शरणागत हो जाना इन समस्याओं का निदान हरगिज़ नहीं। वैसे भी ऐसा करना इन साम्प्रदायिक आतताइयों की जीत ही कही जाएगी जो कभी भी हरगिज़ नहीं होनी चाहिए।