Jun 20, 2024
नालंदा यूनिवर्सिटी इस दुनिया की सबसे प्राचीन यूनिवर्सिटी में से एक है जोकि 427इ.वी में बनाई गई थी। बता दें कि इसकी स्थापना के 7 शताब्दी बाद तक इस विश्वविद्धालय ने लाखों बच्चों को शिक्षित किया है, जिसमें दस हजार छात्र एक साथ पढ़ते थे और करीबन 1500 शिक्षक उन्हें शिक्षित करते थे। इस विश्वविद्दायल में स्वयं गणित के पिता कहे जाने वाले आर्यभट्ट ने कई वर्षों तक गणित और खुगोल पढ़ाकर अपनी सेवाऐं दी, ऐसे विश्वविद्दालय का इतिहास कैसे मामूली हो सकता है। आज जब एक बार फिर 815 वर्षों के बाद इसका उद्घाटन हुआ है, तो यह हमारा कर्तव्य है कि इसके विशालकाए इतिहास पर एक बार नजर डाले ।
नालंदा यूनिवर्सिटी दुनिया के लिए कैसे थी वर्दान
इस यूनिवर्सिटी का इतिहास लगभग 1600 साल पुराना है, जब यूनिवर्सिटी की स्थापना 5वीं शताबदी के करीब की गई थी। जब देश में यूनिवर्सिटी का निर्माण हुआ तो यह दुनियाभर के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया। यहां पर एक साथ 10 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स पढ़ते थे। 1500 से ज्यादा टीचर उनको पढ़ाने का काम करते थे। बता दें कि नालंदा यूनिवर्सिटी को दुनिया की पहली आवासीय यूनिवर्सिटी कही जाती है। इस यूनिवर्सिटी में चीन, इंडोनेशिया,जापान,ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, भूटान, लाओस, मॉरीशस, समेत 17 देशों की भागीदारी थी और इन सभी देशों से हजारों बच्चे यहाँ पढ़ने आते थे।
नालंदा का समृद्ध भंडार
नालंदा पुस्तकालय में 90 लाख से ज्यादा हस्तलिखित पुस्तकें मौजूद थीं, साथ ही भारी संख्या में ताड़ पत्र पर रचित लीपीयों से घिरी हुई थी। ये सभी बौद्ध विद्या का सबसे समृद्ध भंडार था। यह परिसर इतना विशाल था कि हमलावरों द्वारा लगाई गई आग तीन महीने तक जलती रही। खुदाई के दौरान 23 हेक्टेयर में फैला हुआ हिस्सा पाया गया जोकि नालंदा यूनिवर्सिटी का केवल छोटा सा हिस्सा है।
किस-किस ने की थी तबाह करने की कोशिश
ज्यादातर लोगों को पता है कि केवल बखतियार खिलजी ही था, जिसने भारत की इस धरोहर को नष्ट करने का प्रयास किया था। लेकिन बता दें कि नालंदा विश्वविद्दालय पर तीन बार हमलावरों ने हमला किया है। सबसे पहला हमला पाँचवी शताबदी में मिहिर कुल के द्वारा नालंदा पर किया गया था।दूसरा हमला आँठवी शताबदी में बंगाल के राजा गौड़ ने किया था, लेकिन दोनों ही बार मकसद लूटपाट का था जिससे यूनिवर्सिटी की मरम्मत कराकर एक बार फिर यूनिवर्सिटी में अध्यन की शुरूआत की गई थी।
खिलजी का असहाय विध्वंस
1109 के समय बखतियार खलजी ने नालंदा पर ऐसा हमला किया जिससे भारत की इस धरोहर को भारी संख्या में क्षति पहुँची थी। बता दें कि नालंदा में पढ़ने से भारत में बौद्ध और हिन्दुओं पर बहुत प्रभाव पड़ रहा था। खिलजी हिन्दू और बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार नहीं चाहता था, जिसके चलते पहले तो उसने इसलाम धर्म का लोगों पर दबाव डाला और जब लोग नहीं माने तो उस समय में उपस्थित सभी किताब, ग्रन्थ और बौद्ध धर्म से जुड़े सभी प्रमाणों को जलाकर राख कर दिया था। यह आग इतनी भीषण थी की लगभग तीन महीनों तक जलती रही थीय़ यही नहीं खिलजी ने लायब्रेरी में आग लगाने के साथ कई बौद्ध भिक्षु और छात्रों को भी मार डाला था।
नालंदा एक खण्डहर
आज यही नालंदा यूनिवर्सिटी, Nalanda Ruins या नालंदा का खंडहर के नाम से मशहूर है। बता दें कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा उद्घाटन किए गए नालंदा यूनिवर्सिटी भी इसी खण्डहर की कुछ दूरी पर उपस्थित है।