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दिव्यांग बालिकाओं के सपनों को मिल रही नई दिशा

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Nov 28, 2017

रायपुर : राजधानी में विकलांग बालिका विकास गृह दिव्यांग बालिकाओं के सपनों को नई दिशा दे रहा है। इसकी स्थापना 1982 में महाराष्ट्र मंडल ने की थी। तब से लेकर आज तक कितनी ही दिव्यांग लड़कियों को इस संस्था ने नई जिंदगी दी है। वे यहां से पढ़-लिखकर बड़े-बड़े पर्दों पर पहुंच चुकी हैं। वहीं यहां छत्तीसगढ़ का पहला बैरियरलेस गार्डन भी बनाया गया है। जो खास दिव्यांगों के लिए है।  

दिव्यांग बालिकाएं किसी से भी कम नहीं हैं और तमाम शारीरिक बाधाओं की चुनौतियों को स्वीकार कर अपने सपनों को पूरा कर रही हैं। इसमें विकलांग बालिका विकास गृह इनकी मदद कर रहा है। इसकी स्थापना महाराष्ट्र मंडल ने 1982 में की थी। इसे खोले जाने का मकसद पोलियोग्रस्त निःशक्त और दृष्टिहीन बालिकाओं का इलाज था।

शिक्षित और उन्हें स्वावलंबी बनाने में ये संस्था पूरी तरह से कामयाब हुआ है। आज यहां से अब तक 129 दिव्यांग बालिकाएं निकल चुकी हैं और बड़े-बड़े पदों पर आसीन हैं। प्रदेश के अलग-अलग जिलों से यहां दिव्यांग बालिकाएं आकर पढ़ाई कर रही हैं। यहां इनके लिए लाइब्रेरी, कंप्यूटर रूम से लेकर तमाम सुविधाएं मौजूद हैं।

वहीं यहां छत्तीसगढ़ का पहला बैरियरलेस गार्डन बनाया गया है। ये गार्डन खासतौर पर दिव्यांगों के लिए बनाया गया है। यहां वे लोग भी आराम से खेल-कूद और अपना मनोरंजन कर सकते हैं, जो 100 फीसदी दृष्टिहीन हैं। गार्डन में चलने के लिए फुटपाथ भी है, जिस पर ब्रेल लिपि में लिखा हुआ है। इस पर चलकर आसानी से कोई भी दृष्टिहीन वहां पहुंच सकता है, जहां उसे जाना है।

वहीं महाराष्ट्र मंडल ने वाघोलीकर मेडिकल इक्विपमेंट योजना के तहत जरूरतमंदों को 10 रुपए की दर पर व्हील चेयर, वॉकर, मेडिकल एयर और वॉटर बेड, ऑक्सीजन सिलेंडर, बैसाखी देने की व्यवस्था की है।

इस संस्था को लेकर सराहनीय प्रयास के लिए करीब 2 साल पहले मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने महाराष्ट्र मंडल को सम्मानित भी किया। आज यहां से निकली दिव्यांग प्रतिभाओं पर पूरे प्रदेश को गर्व है।