Sep 19, 2017
गरियाबंद : मौसम की बेरुखी और अधिकारियों के भ्रष्टाचार से किसान परेशान हैं। किसानों पर इस बार न भगवान मेहरबान हुए और न अधिकारियों ने ईमानदारी से योजनाओं का क्रियान्वयन किया। नतीजा ये निकला कि किसानों के पास अब अपनी किस्मत को कोसने के सिवाय और कोई चारा नहीं बचा।
मैनपुर विकासखंड की तुहामेटा पंचायत के आदिवासी किसान श्यामलाल के पास कुल मिलाकर 5 एकड़ जमीन हैं। इनका दावा हैं कि यदि फसल अच्छी हो जाए तो वे लगभग 100 क्विंटल धान मंडी में बेचते, मगर इस बार हालात ऐसे नहीं हैं कि वे धान मंडी में बेच सके।
मंडी में बेचना तो दूर इस बार शायद इनको अपने लिए भी धान खरीदकर खाना पड़ेगा। क्योंकि बरसात नहीं होने से इनकी फसल सूखने के कैगार पर हैं। वैसे मौसम की बेरुखी के बाद भी इनकी फसल को पानी उपलब्ध हो जाए, तो इनको आकाल की स्थिति का सामना न करने पड़े। इसके लिए जनहितैषी सरकार ने इनके खेतों में तीन साल पहले बोर किया था।
बोर का पूरा खर्चा शासन द्वारा वहन किया गया था, मगर ये बोर अधिकारियों के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। बोर से आज तक एक बूंद पानी नहीं निकला। मतलब ये कि सरकार की योजना का लाभ मिलने के बाद भी न तो श्यामलाल की फसल को पानी मिल सका और न ही सरकार की योजना श्याम को अकाल की स्थिति से उबारने में कामयाब हुई।
मौसम की बेरुखी के बाद भी यदि श्यामलाल को बोर का पानी मिल गया होता, तो उसकी फसल सूखने की बजाय हरी-भरी होती और इस साल भी वह मंडी में धान बेच पाता। वैसे 70 आदिवासी परिवारों की तुहामेटा बस्ती में श्यामलाल अकेले किसान नहीं हैं, जिनके खेतों में बोर होने के बाद भी फसल आकालग्रस्त हो गई हैं।
बल्कि टमारसिंह और सुखलाल जैसे कई किसानों के खेतों में बोर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए हैं। जिनसे आज तक एक बूंद पानी तक नहीं निकला। अधिकारियों ने अपनी जेब भरने के लिए किसानों के पेट पर लात मार दी।
नियमानुसार बोर चालू होने के बाद ही ठेकेदार को रकम का भुगतान करना था, मगर अधिकारियों ने अपना फायदा देखते हुए नियमों को ताक पर रख दिया। योजना पर सरकार के लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी ये गांव आज अकाल की स्थिति झेलने पर मजबूर हैं।
सरकार अपनी योजनाओं के जनकल्याणकारी होने का जितना दावा कर रही हैं, अधिकारी योजनाओं को उतना ही पलिता लगाने में जुटे हैं। तुहामेटा गांव और वहां के किसान श्यामलाल तो एक बानगी मात्र हैं।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में शामिल प्रदेश का एकमात्र जिला जो सिकासेर बांध, 48 लधु परियोजनाओं और 18 हजार से ज्यादा टयूबल होने के बाद भी यदि अकालग्रस्त हैं, तो ऐसे में कई सवाल खड़े होना लाजमी हैं। इसका सही हल तभी मिल सकता हैं जब सरकार योजनाओं के क्रियान्वयन की समीक्षा करें।