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सूखे नहर, टूटी आस, प्यासी धरा का दर्द किसान किससे करें बयां

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Mar 7, 2019

विप्लव गुप्ता- जल संसाधन विभाग मरवाही  के लोअर सोन डाइवर्सन से लेकर ग्राम पंचायत बंशिताल तक घोषित नहर विगत 14  वर्ष पूर्ण होने के बाद भी, अभी तक किसानों को पानी देने में असमर्थ रही है। एक और जहां किसान अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं, वहीं दूसरी और जल संसाधन विभाग  देर से मिली  वन विभाग की अनापत्ति (एनओसी) को सिंचाई में हुई देरी के लिए जिम्मेदार बता रहा है। अब हालात यह है कि जगह जगह से नहर टूट चुकी है, समतल हो चुकी है और इन सब का परिणाम किसानों को भुगतना पड़  रहा है। 

किसानों की ज़मीन का अधिग्रहण कर,  निर्माण कार्य शुरू किया गया, फिर भी पानी नहीं मिला

वर्ष 2005  में ग्राम सुराज अभियान के दौरान तत्कालीन  मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह मरवाही विकासखंड के ग्राम बंशिताल पहुंचे। तब वहां  के ग्रामीणों ने उनको सिंचाई हेतु जल की समस्या से अवगत कराया। उसी सभा में तत्कालीन  मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने लोअर  सोन  से लेकर ग्राम पंचायत बंशिताल तक नहर की घोषणा की। जल संसाधन विभाग मरवाही के द्वारा ग्राम मटियाडांड़  तक आई नहर को ही लगभग 5 किमी बढ़ाकर ग्राम बंशिताल तक लाना, सुनिश्चित किया गया। सर्वे में किसानों की ज़मीन का अधिग्रहण कर,  निर्माण कार्य शुरू किया गया। लेकिन अभी तक  जल संसाधन विभाग नहर को पूरा करने में असमर्थ रहा है और किसान अपनी ज़मीन देने के बाद भी पानी न मिलने के कारण हताश हो चुके हैं। अब किसानों की पीड़ा यह है कि जिस पानी की आस में उन्होंने अपनी भूमि भी शासन को दे दी, वो ही एक दशक से ज्यादा समय होने के बाद भी अब तक उनको सिंचाई के लिए पानी नसीब नहीं हुआ।

नहर को बनने में अब तक 407 लाख रूपये लग चुके

ग्राम 2005  से स्वीकृत इस नहर से लगभग 300  हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होनी थी और बंशिताल के ही लगभग 200  किसान परिवारों को इसका लाभ मिलना था। लेकिन अभी तक इस नहर के शुरू न होने के कारन किसानों को लगातार परेशानी का सामना करना पड़  रहा है। अब तो किसानों ने उम्मीद भी छोड़ दी है। जल संसाधन विभाग मरवाही के एस डी ओ ने चर्चा में बताया की इस नहर को बनने में अब तक 407 लाख रूपये लग चुके हैं लेकिन अब तक नहर का पानी किसानों को नहीं मिला। वहीं देर होने  कारण  वन विभाग से मिली अनापत्ति को  बता रहे हैं। दूसरी ओर  जिस लोअर  सोन डाइवर्सन से नहर में पानी लिया जाना है, उसका प्लास्टर उखड़ रहा है, लेकिन जल संसाधन विभाग इसे पर्मिसबल लीकेज बता रहा है। उधऱ जिम्मेदार अधिकारी  कैमरे पर आकर कुछ भी कहने से बचते रहे हैं।

जल संसाधन विभाग द्वारा नहर निर्माण में वन विभाग से पहले 3 हेक्टेयर भूमि की अनापत्ति मांगी गयी। जिसके कारण मामला 10 वर्षो तक अटका रहा। फिर 1  हेक्टेयर भूमि में स्वीकृति लेकर कार्य को कर दिया गया। सवाल यह है कि जब 1 हेक्टेयर भूमि में ही कर योजना को अंजाम दिया जा सकता था, तो 3 हेक्टेयर भूमि की मांग क्यों की गयी। इस लेट लतीफी का पूरा भुगतान पानी की आस में अपनी कृषि भूमि को शासन को  सौंपने वाले किसानों को भुगतना पड़  रहा है।