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पखांजुरः सरकारी योजनाओं से वंचित, अभावग्रस्त जीवन जीने पर मजबूर दुखुराम

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Jun 27, 2019

अमर मंडल- "तक़दीर बनाने वाले तूने कमी न की, किसको क्या मिला ये मुकद्दर की बात है" किसी शायर की कलम से निकले ये शब्द जवेली पंचायत के आश्रित ग्राम बल्लीगढ़ के दृष्टिहीन निवासी दुखुराम सलाम के जीवन संघर्ष की दास्तां को चरित्रार्थ करते हैं। आज से लगभग 45 वर्ष पूर्व जब दुखुराम सलाम का जन्म हुआ तो उसके परिवार में खुशियों की लहर दौड़ गयी थी। दुखुराम का जन्म एक धनो-धान्य से परिपूर्ण परिवार में हुआ था। मानो ईश्वर ने दुखुराम को सम्पूर्ण खुशियों से लादकर इस धरती पर भेजा था, पर आज हालत ने दुखुराम से सब कुछ छीनकर दाने-दाने का मोहताज़ कर दिया है।

16 साल की उम्र में खोई अपनी आँखे

दुखुराम जन्म से अंधा नहीं था। बचपन में इनके पास भी दूसरे बच्चों जैसी ही दो अनमोल आँखे थीं, जिससे वे दुनिया के रंगो में सपने बुना करते थे। दुखुराम अक्सर बांसों की कटाई करने जंगल जाया करते थे। जिस दौरान एक दिन अचानक इनकी आँखों में तेज़ दर्द शुरू हुआ और देखते ही देखते दुखुराम की रंगीन दुनिया अंधेरो में कहीं गुम होती चली गयी और फिर एक दिन उनकी ज़िन्दगी में हमेशा के लिए घोर अँधेरा छा गया और वे दृष्टिहीन हो गए।  

आँखों के इलाज़ में बिक गया सब कुछ, भीख मांग कर गुजारा करने को मजबूर

दृष्टिहीन होने से पूर्व दुखुराम के पास ज़मीन, घर, गाय, बैल, बकरी, मुर्गे आदि अच्छी-खासी संपत्ति हुआ करती थी। आँखों के इलाज़ के चलते दुखुराम को एक-एक कर अपनी संपत्ति गवानी पड़ी और आज दुखुराम एक टूटे-फूटे झोपड़े में अपने परिवार के साथ अभावपूर्ण ज़िन्दगी बसर कर रहा है। दुखुराम के परिवार में उनकी पत्नी श्रीमती डॉली सलाम के अलावा और दो मासूम बच्चे भी हैं, जिनके जीवन-यापन की सम्पूर्ण जिम्मेदारी दुखुराम पर ही है। जिसके चलते बच्चों का सहारा लेकर दर-दर जाकर भीख मांगने को आज दुखुराम मजबूर है। लोगों के कभी तिरस्कार तो कभी मदद पर आज दुखुराम की जीवन पहिया चल रही है।

शासन से नहीं मिल रही सार्थक मदद

शासन द्वारा मदद के नाम पर दुखुराम को केवल एक राशन कार्ड और 200 रूपए प्रतिमाह का पेंशन ही मिला है। दुखुराम की झोपड़ी कभी भी धराशाही होने के कगार पर है। वावजूद इसके अब तक प्रशासन द्वारा दुखुराम की कोई सार्थक मदद नहीं की गयी है। दुखुराम द्वारा कई मर्तवा शासन से मदद की गुहार लगायी जा चुकी है, पर अब तक शासन द्वारा कोई संतोषजनक मदद नहीं मिल पायी है। दुखुराम द्वारा क्षेत्र के कई अधिकारियों के पास कई दफ़े अपनी फ़रियाद लेकर जाया गया है पर अब तक किसी ने दुखुराम के दुःखों को दूर करने का प्रयास नहीं किया। दुखुराम के 2 बच्चे हैं जिनकी उम्र स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने की है, पर पैसों की कमी और शासन से मदद न मिलने के चलते बच्चे शिक्षा से वंचित हो रहे हैं। बच्चों द्वारा परिवार की देखभाल और पिता के आँख रूपी सहारा बनकर चलने के कारण बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं।

हालात ने बदल डाला नाम

दुखुराम का वास्तविक नाम सुखुराम सलाम हुआ करता था, पर जब हालात ने आँखे छीन ली और दर-दर का मोहताज़ बना दिया तो समाज के लोगों ने दुःखों के भँवर में फंसे सुखुराम को दुखुराम बना दिया। अब यही नाम ही उनकी पहचान बन चुकी है। जवेली पंचायत के सरपंच से जब हमने जानना चाहा कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आखिर दुखुराम को घर क्यों नहीं मिल पा रहा है तो उन्होंने कहा कि पंचायत से प्रस्ताव जनपद पंचायत में भेजा गया परंतु जनपद में बैठे जिम्मेदारों ने सिस्टम का सीरियल नम्बर का हवाला दे दिया और इस तरह दुखुराम को झोपड़ी में रहने को मजबूर किया। विपक्ष में रहते कांग्रेस, तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह को हमेशा आदिवासियों का विकास करने का पाठ पढ़ाते थे परंतु अब कांग्रेस की सरकार बनी 6 माह बीत गया, परंतु दूसरे को पाठ पढ़ाने वाले कांग्रेस की सरकार कुर्सी पर बैठते ही अपनी जिम्मेदारी क्यों भूल रही है।