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अम्बिकापुरः आवश्यकता अविष्कार की जननी को चरित्रार्थ कर रहे ग्रामीण बने दशरथ मांझी

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May 7, 2019

राम कुमार यादव- आप में से कईयों ने दशरथ मांझी का नाम सुना होगा। दशरथ मांझी एक ऐसे शख्स थे जिन्होंने पहाड़ का सीना चीर कर कई किलोमीटर सड़क का निर्माण किया था। चुनाव होते रहते हैं। सरकार आती जाती रहती हैं। विकास के तमाम दावे और वादे भी होते है, लेकिन जमीन पर ना विकास दिखता है और ना चुनाव के बाद नेता नजर आते हैं। ऐसा हम नहीं बल्कि आदिवासी बाहुल्य सरगुजा जिला का एक गांव कह रहा है। जो इतना पहुंचविहीन है कि बीमार लोग अस्पताल पहुंचने से पहले दम तोड़ देते हैं। सामान्य लोगों को अपने ब्लाक मुख्यालय पहुंचने के लिए बिना सड़क के पहाड़ और बिना पुल की नदी पार करनी पड़ती है। भौगोलिक स्थिति और प्रशासनिक उदासीनता की मार झेल रहे सरगुजा के कंदरई गांव के ग्रामीण प्रशासन से लगातार गुहार लगाये जा रहे हैं, पर कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही।  

कंदरई गांव आज भी पहुंचविहीनता का दंश झेल रहा

कहने को सरगुजा जिला में आदिवासी इलाकों के लिए कई परियोजनाओं में अब तक अरबों रुपए खर्च किए जा चुके हैं। लेकिन सरगुजा जिले के मैनपाठ विकासखण्ड का कंदरई गांव आज भी पहुंचविहीनता का दंश झेल रहा है। मैनपाट पहाड़ी की तराई पर बसे इस गांव में एक तरफ पहाड़ी तो दूसरी ओर नदी है। मतलब अगर किसी के घर में अगर कोई बीमार हो गया तो ये मानिए कि उसने बीमार होकर कोई अपराध कर दिया है, क्योंकि एक तरफ बतौली स्वास्थ्य केन्द्र पहुंचने के लिए पहाड़ी नदी के तेज बहाव का सामना करना पड़ा है, तो दूसरी ओर कमलेश्वपुर स्वास्थ्य केन्द्र पहुंचने के लिए कठिन पहाड़ी रास्ता।

ग्रामीणों ने खुद मेहनत करके पहाड़ी में रास्ता बनाने का काम किया शुरु

गांव वालों के मुताबिक उन्हें अपने दैनिक दिनचर्या, राशन पानी या तहसील के काम से अगर नदी पार करके सड़क मार्ग से अपने ब्लाक मुख्यालय जाना है तो 70 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। जबकि पहाड़ी रास्ते से ये दूरी महज 25 किलोमीटर है, लेकिन जिस पहाड़ी रास्ते से दूरी कम है, उसमे सड़क नहीं है। इसलिए लोगों ने क्षेत्रीय विधायक के साथ प्रशासन को कई बार आवेदन भी दिया कि पहाड़ी रास्ते में सड़क बनने से उनका जीवन सरल हो जाएगा, लेकिन किसी ने नहीं सुनी। लिहाजा अब ग्रामीणों ने खुद मेहनत करके पहाड़ी में रास्ता बनाने का काम शुरु कर दिया है और फिलहाल उन्होंने करीब 2 किलोमीटर सड़क बना भी ली है। इतना ही नहीं पहुंचविहीनता का दंश झेल रहे गांव के सरपंच भी प्रशासनिक उदासीनता से इतना परेशान हो गए हैं कि वो भी अपने गांव के लोगों के साथ इन दिनों पहाड़ी रास्ते को बेहतर बनाने में जुट गये हैं। जिससे कम से कम मोटरसाईकिल से कम दूरी वाले रास्ते से अपने ब्लाक मुख्यालय पंहुचा जा सके।